यंग जनरेशन को डिप्रेशन से लड़ने की ताकत दे रहे ये युवा, ऐसे करते हैं मदद
युवाओं में डिप्रेशन यानी अवसाद एक बेहद गंभीर समस्या है। खासकर पढ़ाई करने वाले युवा अक्सर डिप्रेशन के चलते खतरनाक कदम उठा लेते हैं। मनोवैज्ञानिक भी डिप्रेशन को बड़ी चुनौती मानते हैं। तमाम कोशिशों के बावजूद इस समस्या से छुटकारा पाना आसान नजर नहीं आता। एक रिपोर्ट की बात करें तो देश में वर्ष 2015 में 01 लाख 33 हजार से ज्यादा लोगों ने खुदकुशी की थी, जिसमें 32 प्रतिशत युवा थे। इस समस्या से निपटने के लिए देश के 02 युवाओं ने एक बेहद ही सकारात्मक पहल की है। पुणे के यह युवा सोशल नेटवर्किंग साइट्स के जरिए डिप्रेशन से जूझ रहे युवाओं को काउंसिलिंग देने का काम कर रहे हैं। उनकी इस पहल को काफी सराहा जा रहा है।
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फेसबुक पेज से करते हैं मदद
पूरे विश्व में अधिकतर युवा सोशल नेटवर्किंग साइट्स का भी प्रयोग करते हैं। इसी सोशल मीडिया के प्लेटफॉर्म का फायदा उठाते हुए पुणे के निखिल काले और इंदौर के सत्यम शास्त्री युवाओं को फेसबुक पर हिम्मत न हारने की सीख देते हैं। दोनों का फेसबुक पेज 'नो वन केयर्स' डिप्रेशन के शिकार युवाओं को काउंसिलिंग देने का काम करता है। इस पेज के जरिए वह युवाओं में डिप्रेशन, चिंता व आत्महत्या जैसी गंभीर समस्याओं के प्रति आगाह करते हैं। दोनों के इस पेज को अभी तक 26 मिलियन से ज्यादा लाइक्स मिल चुके हैं।
ऐसे की थी शुरुआत
निखिल और सत्यम बताते हैं कि दोनों की मुलाकात ऑनलाइन हुई थी। बाद में दोनों की दोस्ती हो गई। निखिल के पिता जहां वकील हैं। वहीं सत्यम के पिता एक प्राइवेट कंपनी में काम करते हैं। दोनों ने मिलकर युवाओं में बढ़ते डिप्रेशन को रोकने के लिए कुछ करने का फैसला किया था। इसके लिए उन्होंने फेसबुक पेज 'नो वन केयर्स' बनाया, जिसके मकसद से वह ऐसा कंटेंट पोस्ट करते थे, जिससे युवाओं को डिप्रेशन से लड़ने में मदद मिल सके।
दोनों बताते हैं कि इस काम के लिए उन्होंने 15 हजार रुपये से पेज के प्रमोशन के लिए खर्च किए थे। प्रमोशन के रुपये खर्च होने के बाद उनके मन में इसे बंद करने का ख्याल भी आया। लेकिन दोनों ने हिम्मत नहीं हारी और ऐसे कंटेट पोस्ट करने शुरू किए जो युवाओं को खासे पसंद आए। उनके पोस्ट इतने पसंद किए गए कि एक ही दिन में उनके रिकॉर्ड 02 लाख फॉलोअर्स बढ़ गए। वह बताते हैं इस पेज के लिए लोग भी मदद करते हैं। यह एक सपोर्ट सिस्टम की तरह काम कर रहा है।
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युवाओं में गंभीर है आत्महत्या की प्रवृत्ति
एक रिपोर्ट की बात करें तो देश में 2015 में 01 लाख 33 हजार से ज्यादा लोगों ने खुदकुशी की थी, जबकि 2000 में ये आंकड़ा केवल 01 लाख 08 हजार का था। आत्महत्या करने वालों में 33 प्रतिशत की उम्र 30 से 45 साल के बीच थी, जबकि आत्महत्या करने वाले करीब 32 प्रतिशत लोगों की उम्र 18 साल से 30 साल के बीच थी। आत्महत्या करने वालों में सबसे ज्यादा संख्या महाराष्ट्र के युवाओं की थी। इन आत्महत्याओं का प्रमुख कारण बेरोजगारी, परीक्षाओं का दबाव व प्रेम-प्रसंग रहा था।
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