पराली की समस्या का इन युवाओं ने ढूंढा हल, बना रहे यह सामान

देश में अक्सर पराली (फसल काटने के बाद खेत में बचा अपशिष्ट) जलाने की घटनाएं सामने आती हैं। इससे होने वाले प्रदूषण को लेकर सरकार काफी सख्त रुख अपना चुकी है। यहां तक कि इसे जलाने को अपराध भी घोषित कर दिया गया है, लेकिन उसके बावजूद किसानों ने पूरी तरह से पराली जलाना बंद नहीं किया है। इससे होने वाला प्रदूषण इतने व्यापक स्तर होता है कि देश के कई भागों में इसका काफी दिनों तक असर रहता है, लेकिन अब आईआईटी के छात्रों ने इस समस्या के हल के लिए कुछ बेहतरीन प्रयास किए हैं। आईआईटी दिल्ली के छात्रों अंकुर, कणिका व प्राचीर दत्ता ने एक स्टार्टअप शुरू किया है, जिसमें वह पराली से इको फ्रेंडली कप-प्लेट बनाने जा रहे हैं।
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पराली से पेस्ट बनाकर बनाते हैं कप-प्लेट
इन छात्रों ने एक ऐसी टेक्नोलॉजी विकसित की है। जिससे यह पराली से बायोडिग्रेडेबल कटलरी जैसे कप-प्लेट आदि बनाते हैं। अपने इस स्टार्टअप प्रोजेक्ट के बारे में अंकुर बताते हैं कि उन्होंने एक क्रिया लैब्स कंपनी शुरू की है। जिसके वह सीईओ हैं। हम किसानों से पराली लेकर उसे पेस्ट में बदल देते हैं। फिर हमारी मशीन नेचुरल केमिकल के जरिए पराली से आर्गेनिक पॉलीमर को सेल्यूलोज से अलग कर देते हैं। फिर इसकी नमी को खत्म किया जाता है और उच्च दबाव पैदाकर कप और प्लेट बनाए जा सकते हैं। अंकुर ने बताया कि यह कप-प्लेट की कीमत भी आम मैलामाइन से बनने वाली क्रॉकरी से कम होगी।
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साल के आखिर में लगाएंगे प्रोसेसिंग यूनिट
इस बारे में लैब्स के सदस्य बताते हैं कि हम पर्यावरण के लिए नुकसानदायक पराली को एक कॉमर्शियल वैल्यू दे रहे हैं। हम इसके बदले किसानों को फायदा देंगे, अगर ऐसा होगा तो वह पराली को नहीं जलाएंगे। इससे एक बड़े स्तर पर ग्रामीण रोजगार भी पैदा होगा। क्रिया लैब्स में चीफ ऑपरेटिंग ऑफिसर प्राचीर दत्ता बताते हैं एक यूनिट लगाने में करीब 1.5 करोड़ रूपये का खर्चा आ रहा है। इससे एक दिन में रोजाना 4-5 टन पराली पेस्ट तैयार हो सकता है। हम किसानों को एक किलो पराली के बदले करीब 3 रुपये का भुगतान करेंगे। हम कुछ बड़े किसानों को पराली इकट्ठा करने का काम देंगे। यह अन्य किसानों से पराली जमा करके हमारे पास पहुंचाएंगे।
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बेहद खतरनाक है पराली
पराली की समस्या से देश के कई शहर प्रदूषण का शिकार होते हैं। पराली के जलने से बड़ी मात्रा में कार्बन डाई ऑक्साइड, नाइट्रोजन ऑक्साइड, मीथेन जैसे हानिकारक गैसों का उत्सर्जन होता है। यह हवा में घुलकर उसे जहरीला बना देती हैं, जिसका असर मनुष्य के शरीर पर पड़ता है। पराली के धुएं से दमा, खंसी, ब्रोंकाइटिस व स्नायु तंत्र से जुड़ी हुई गंभीर बीमारी हो सकती है। एक सर्वे के अनुसार देश में हर साल करीब 80 टन पराली जलाई जाती है। इससे उठा जहरीला धुआं देश के कई शहरों में पहुंच जाता है। दिल्ली में भी पराली से प्रदूषण एक बड़ी समस्या है।
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