ये बात सच है कि बदलाव एक दिन में नहीं आता लेकिन एक दिन शुरूआत करना भी तो जरूरी है। भारतीय समाज में पर्दा प्रथा आज भी महिलाओं के लिए एक बोझ बना है। यूपी, राजस्थान, हरियाणा समेत कई राज्यों के गाँवों में आज भी घूंघट को आन बान शान माना जाता है। इसे पुरुषों के प्रति उनके सम्मान दिखाने का तरीका समझा जाता है जबकि ये रिवाज सम्मान नहीं बल्कि पुरुष सत्ता को और मजबूत बनाता है।
हिंदू धर्म ही नहीं बल्कि इस्लाम में भी पर्दा प्रथा को लेकर कई लोग पाबंद हैं। देश के कई राज्यों के जिले और गाँवों की महिलाएं इस प्रथा को ढो रही हैं। शहरों में ये रिवाज भले ही अब कम हो गया है लेकिन गाँवों में आज भी इसे लेकर नियम सख्त है। घर की सभी महिलाएं खासकर नई बहुओं को पर्दा करना जरूरी है। हरियाणा राज्य की एक महिला ने इसी रिवाज के खिलाफ जंग छेड़ी है। मंजू यादव हरियाणा के ही एक स्कूल में पढ़ाती हैं और उन्होंने घूंघट के खिलाफ एक कैंपेन शुरू किया है जिसके तहत वो महिलाओं को पर्दा न करने के लिए जागरूक करती हैं। इस कैंपेन में शामिल होने वाली महिलाएं एक साथ कसम खाती हैं कि वो पर्दा नहीं करेंगी और दूसरों को भी इसके लिए जागरूक करेंगी, अभी इस टीम में 47 से ज्यादा महिलाएं हैं।
मंजू ने बीबीसी को दिए अपने इंटरव्यू में कहा, “महिलाओं को नियंत्रण में रखने के लिए हमसे घूघंट करवाया जाता है, आप किसी पुरूष से एक दिन घूघंट करके रहने को कहें,उससे कहे इसी घूघंट में आप दुनिया देखिए घर के काम करिए, तब वह किसी कीमत पर ऐसा नहीं करेगा। मेरी लड़ाई आजादी को लेकर है। ”
मैं इस कैंपेन के पुरुषसत्ता को चुनौती देने निकली ये महिला
हरियाणा जहां खाप पंचायतों के फरमान है, रूढ़िवादी मान्यताएं हैं वहां की कुछ महिलाओं ने हिम्मत की अपनी पहचान को सााबित करने की। मंजू यादव टीचर हैं और इस कैंपेन की शुरुआत उन्होंने ही की थी और धीरे-धीरे महिलाएं इससे जुड़ती गईं। मंजू का मकसद है एक दिन ऐसा आएगा जब पूरे देश में कोई भी महिला घूंघट नहीं करेगी। घूंघट गुलामी का प्रतीक है, ये बंदिश है जो समाज के पुरूषों ने महिलाओं पर डाली है जिससे वो उनके नियंत्रण में रहे और इस रिवाज को कायम रखने का श्रेय बुजुर्ग महिलाओं को जाता है, जिन्होंने कभी इसका विरोध नहीं किया। मंजू के इस साहसिक कदम में अब कई महिलाएं उनके साथ हैं।
कई लोग हुए मंजू के खिलाफ
मंजू के इस जंग का साथ देने वाले सामने आए तो कुछ ऐसे भी थे जो विरोध में खड़े हुए। कुछ ऐसे पुरुष जो घूघंट को अपना मान-सम्मान मानते हैं, उन्हें ये पहल बिल्कुल पसंद नहीं आई। हालांकि मंजू के परिवार व रिश्तेदार उनके साथ थे। उनका यही मानना था कि महिलाओं को पढ़ाने लिखाने का भी फिर फायदा ही क्या जब वो इस तरह की गुलामी को ढोती रहेंगी। मंजू के इस कैंपेन में उन्हें जिला कंमीश्नर चंद्रशेखर का भी सपोर्ट मिला जिन्होंने ज्यादा से ज्यादा लोगों को इससे जुड़ने के लिए कहा। मंजू के प्रयासों के बाद अब इस गाँव में आपको कई महिलाएं बिना घूंघट के घूमते दिख जाएंगी, यही बदलते देश की तस्वीर है।