पुणे का ये पठान परिवार गौसेवा कर पेश कर रहा अनूठी मिसाल

गौरक्षा के नाम पर आजकल देश में सियासी पारा सातवें आसमान पर है। सभी राजनीतिक दल अपनी-अपनी 'सियासी सुविधा' के अनुसार गौरक्षा की परिभाषा गढ रहे हैं। दूसरी तरफ हिंदू आस्था का प्रतीक माने जाने वाली गाय की हत्या के विरोध में तमाम गौरक्षा संगठन आवाज भी बुलंद कर रहे हैं।
गौरक्षा को लेकर उत्तर प्रदेश के दादरी व राजस्थान के अलवर में घटी घटना को मुसलमानों के खिलाफ पेश किया जा रहा है। लेकिन आज हम आपको पुणे के एक मुस्लिम परिवार से रूबरू करवाते हैं, जो चार पीढ़ियों से गायों की सेवा कर एक नजीर पेश कर रहा है। ये परिवार बेसहारा गायों की देखभाल करने के साथ-साथ देसी गायों की नस्ल को बेहतर बनाने में जुटा है। ये परिवार व्यावसायिक लाभ के लिए गौसेवा नहीं करता, बल्कि गायों की देखभाल करना इस परिवार का शौक है।
बेसहारा गायों का सहारा है 'रचना गौशाला'
ये परिवार गायों पर अपनी जेब से पैसे खर्च कर, उनके भोजन, पानी व दवा आदि का इंतजाम करता है। इस पठान परिवार की गौशाला का नाम 'रचना गौशाला' । इसकी शुरुआत 40 साल पहले जब्बार खान पठान और उनकी पत्नी ने की थी, तब उनके पास 6 गायें थीं। अब इस गौशाला में गायों की संख्या 376 हो गई है। इस परिवार को आसपास जो भी बेसहारा गायें दिखती हैं उसे ये अपनी गौशाला में ले आते हैं।
गायों के लिए है हाईटेक ट्रीटमेंट का इंतजाम
चालीस एकड़ जमीन में बनी इस गौशाला में गायों के इलाज के लिए हाईटेक ट्रीटमेंट का इंतजाम है। दस एकड़ में गायें रहती हैं और बाकी 30 एकड़ पर चारा उगाया जाता है। गौशाला की गायें हर रोज करीब 400 लीटर दूध देती है, जिसमें से दो सौ लीटर गाय के बछड़ों के लिए छोड़ दिया जाता है।
बाकी दूध से होने वाली आमदनी गौशाला के रखरखाव पर खर्च की जाती है। पठान परिवार की नई पीढ़ी अब गायों की नस्ल सुधारने के लिए वैज्ञानिक तरीकों का इस्तेमाल कर रही है।
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