एक लड़की की कोशिश ने बदल दी पूरे गाँव की तस्वीर
मैं जब पास के गाँव के स्कूल में पढ़ने जाती थी तो वहां के बच्चे मुझे चिढ़ाते थे क्योंकि मेरे गाँव का नाम कूड़ामऊ था। मुझे बिल्कुल अच्छा नहीं लगता था, मैं क्लास 11वीं में थी और ये भी नहीं जानती थी कि क्या गाँव का नाम भी बदला जा सकता है। मेरे गाँव की लड़कियां स्कूल के बाद पढ़ाई छोड़ देती थीं क्योंकि उन्हें कोई बताने वाला ही नहीं था कि पढ़ाई कितनी जरूरी है।
ये कहना है लखनऊ के गोसाईंगंज की अंजलि का। अंजलि का भी मन करता था कि उसके गाँव का कोई अच्छा सा नाम हो, स्कूल,कॉलेज हों जिससे उन्हें पढ़ने के लिए बहुत दूर न जाना पड़े। लड़कियां भी लड़कों की तरह पढ़ने जाएं लेकिन समस्या ये थी कि ये सब होगा कैसे। इस काम में अंजलि की मदद की एक गैर सरकारी संस्था ब्रेकथ्रू ने। ब्रेकथ्रू का साथ पाकर अंजलि ने 10 लड़कियों का एक ग्रुप बनाया और अपने गाँव के प्रधान के पास जाकर गाँव का नाम कूड़ामऊ से बदलकर सुंदरनगर कराने के लिए कहा।
जहां गाँव के बड़े बुजुर्गों ने कभी ध्यान नहीं दिया वहां बच्चों के इस ग्रुप ने ये ठान लिया था कि अब पूरे गाँव की तस्वीर को बदल कर ही रहेंगे। अंजलि ने बताया हमने गाँव को सुंदर बनाया, दिवारों पर पेंटिग्स बनाए। हमारे इस काम की प्रशंसा डीएम सर ने भी की और गाँव का नाम अब कूड़ामऊ से हटकर सुंदर नगर हा चुका था।
लड़कों के साथ लड़कियां भी जाने लगीं कॉलेज
दूसरी समस्या थी लड़कियों का पढ़ने न जाना। गाँव में लड़कियां आठवीं के बाद स्कूल जाना छोड़ देती थी लेकिन मैंने थोड़ी दूर के कॉलेज में अपना नाम लिखवाया। मैं आगे पढ़ना चाहती थी, मैंने गाँव की बाकी लड़कियों को भी समझाया कि उन्हें बीच में यूं पढ़ाई नहीं छोड़नी चाहिए। इस काम के लिए मैंने ब्रेकथ्रू संस्था के सदस्यों की मदद ली। अब लड़कियों की समझ में बात आने लगी थी और मुझे देखकर उनका भी कॉलेज में जाने का मन करने लगा। धीरे-धीरे सभी लड़कियां स्कूल और कॉलेज जाने लगीं। हमारे लिए ये सबसे खुशी की बात थी।
अंजलि और उनका ग्रुप अपने गाँव के विकास से जुड़े ऐसे कई काम करता है जिसकी जिम्मेदारी गाँव के प्रधान व अन्य अधिकारियों की है। ये ग्रुप आजकल कॉमिक्स बनाना सीख रहा है। इसके बाद ये बालगृहों में जाकर कॉमिक्स बांटते हैं और वहां के बच्चों को कॉमिक्स बनाना भी सिखाते हैं। इन बच्चों का प्रयास न केवल सराहनीय है बल्कि प्रेरित करने वाला भी है।
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