हैदराबाद शहर छोड़ ये 40 परिवार गांव में रहने लगा

क्या आज के दौरा में एक ऐसे गांव की कल्पना आप कर सकते हैं, जहां मानवद्वारा निर्मित आरामदायक सामान मौजूद न हो। तकनीक अपकी पहुंच से दूर हो और प्रकृत अपके बहुत ही करीब हो। क्या आप ऐसी जगह को जानते हैं। अगर आपका जवाब नहीं है तो हम आपको बताते हैं, एक ऐसी जगह का नाम जहां सब कुछ प्रकृति का द्वारा दिया गया है। जहां के फसलों में कीटनाशक नहीं डलते हैं। यहां की हवाएं प्रदूषण से मुक्त हैं और ऊंचे-ऊंचे पत्थर के बिल्डिंग्स नहीं हैं। हां ऐसा ही कुछ है यहां।
शहर के दूर यह है प्रकृतिक गांव
इन लोगों ने हैदराबाद को छोड़ तक शहर के बाहर एक अपना एक स्थाई गांव बसाया है, ये लोग यहां बसने के लिए आत्मनिर्भर बनने का मॉडल अपनाया। इसके अनुसार ये लोग प्रकृतिक के अनुकूल बांस का घर और खाने के लिए खुद ही भोजन उपजाने लगे। इस गांव के संस्थापक सदस्यों में से एक राजेंद्र कुमार बताते हैं कि, 'यहां वहीं लोग रहते हैं जिन्हें प्रकृति के साथ लगाव है।'
400 लोगों को रोजगार भी मिलता है
राजेंद्र कुमार आगे कहते हैं कि यहां अधिकांस वहीं लोग हैं जो वास्तुशिल्प के अच्छे जानकार है। साथ ही ये लोग प्रकृति के सरंक्षण के प्रति बेहद गंभीर भी है। यह एक मिशन है, प्रकृति की तरफ लोगों के रुझान बढ़ाने का। इसलिए हमने जब महसूस किया हमें इस मिशन को पूरा करने के लिए भोजन का सामान खुद उगाना चाहिए तो हम लोगों ने सामूहिक खेती की पहल शुरू कर दी। आज हम अपने भोजन का उत्पादन खुद करते हैं। इतना ही नहीं हमने खेत के पास 4 छोटे गांवों को अपनाया है, जिसका भरन-पोषण हमलोगों के द्वारा होता है। हमने इस खेती के द्वारा 400 से ज्यादा किसानों को रोजगार भी मुहैया कराया है।
भोजन ही नहीं बिजली का भी किया जाता है उत्पादन
इनका काम सिर्फ भोजन उत्पादन तक सीमित नहीं है। ये लोग अपने लिए बिजली का भी उत्पादन करते हैं। ये अपने घरों के छत पर सौलर पैनल लगा कर अपने लिए बिजली का भी उत्पादन करते हैं। ये सौलर पैनल के माध्यम से प्रति घंटे 0.8 मेगावाट ऊर्जा का उत्पादन का उत्पादन करते हैं। राजेंद्र कुमार ने अपनी बातचीत में कहा कि, हम सिर्फ खाने-पीने का सामान ही नहीं बल्कि इसके साथ ही देसी नस्ल के पशुओं को भी पालते हैं। "अब हमारे पास लगभग 45 गायों और 30 से अधिक बकरियां हैं साथ ही, हमारे पास बहुत सारे मुर्गे और बतख हैं। ये मवेशी भी हमारे मिशन को सफल बनाने के लिए सहयाक हैं। सब मिल कर इस देश की मिट्टी को फिर से जीवंत बनाने में मदद करते हैं।
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