पढ़िए सोनाली बनर्जी के पहली महिला मरीन इंजीनियर बनने की पीछे की कहानी

हमारे समाज में कई ऐसे काम है जिसपर सिर्फ पुरुषों का आधिपत्य माना जाता है, मरीन इंजीनियरिंग भी इनमें से एक ऐसा ही प्रोफेशन है। इसमें महिलाएं कम ही अपना करियर बनाती हैं या यूं कहें सोचती ही नहीं थी। लेकिन सोनाली ने न सिर्फ लीक से हटकर इस प्रोफेशन को चुना बल्कि खुद को साबित करके भी दिखाया। 

सोनाली को बचपन से ही संमदर और जहाजों पसंद थे लेकिन इसमें करियर कैसे बनाएं इस बात की जानकारी उन्हें अपने अंकल से मिली। सोनाली के अंकल नौसेना में थे और उनसे ही प्रेरणा लेकर सोनाली ने भी मरीन इंजीनियरिंग में दाखिला लिया। सोनाली ने वर्ष 1995 में IIT का एंट्रेंस एग्जाम दिया और मरीन इंजीनियरिंग कोर्स में दाखिला लिया। उन्होंने कोलकाता के पास तरातला स्थित मरीन इंजीनियरिंग रिसर्च इंस्टीट्यूट (MERI) से ये कोर्स पूरा किया। 

इससे पहले 1949 में एक और महिला ने मरीन इंजीनियरिंग में दाखिला लिया था, लेकिन कुछ कारणों से उन्होंने बीच में ही ये कोर्स छोड़ दिया। सोनाली जिस वक्त मरीन इंजीनियर बनीं उस वक्त उनकी उम्र केवल 22 साल थी। सोनाली ने कॉलेज में एडमिशन तो ले लिया, लेकिन अकेली महिला स्टूडेंट होने के कारण कॉलेज के आगे भी परेशानी थी। कॉलेज प्रशासन को समझ नहीं आ रहा था कि वो एक अकेली महिला स्टूडेंट को आखिर रखेगी कहां। मीटिंग और बातचीत के बाद सोनाली को अधिकारियों के क्वार्टर में रहने की जगह दी गई। सोनाली 1500 कैडेट्स में अकेली महिला कैडेट थीं। 27 अगस्त, 1999 को वह भारत की पहली महिला मरीन इंजीनियर बनकर एमईआरआई से बाहर निकलीं।

कोर्स पूरा करने के बाद सोनाली का चयन मोबिल शिपिंग में छह महीने के प्री-सी कोर्स के लिए किया गया। इस दौरान उन्होंने सिंगापुर, श्रीलंका, थाईलैंड, हॉगकॉग, फिजी और ऑस्ट्रेलिया जैसे देशों में अपनी ट्रेनिंग पूरी की। भले इस सफर में तमाम मुश्किलें आई हों लेकिन सोनाली ने अपने सपने को पूरा करके न सिर्फ अपने घर वालों का नाम रोशन किया बल्कि पूरे देश के लिए गर्व बनीं। 

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