नोटबंदी: सच यहां पढ़िए, क्यों खत्म नहीं हो रही परेशानी?

देशभर में नोटबंदी का बुरा असर पड़ा है। काला धन वाले बेचैन हैं। कई राजनीतिक दल चाहते हैं कि फैसला वापस हो। कुछ कह रहे हैं कि वक्त और दिया जाए। आम आदमी भी बुरी तरह परेशान है। हालांकि, इसके दो पहलू हैं। पहला, परेशान हैं लेकिन मोदी सरकार के फैसले के साथ हैं और दूसरा, परेशानी हद पार कर रही है। ऐसे में क्या फैसला वापस ले लिया जाए? यह भी सोचा जाए कि आखिर असल वजह है क्या।
कई शहरों में पड़ताल
टीम इंडियावेव ने यूपी के कई शहरों में पड़ताल की और पाया कि कई 8 नवंबर को पीएम नरेंद्र मोदी द्वारा 500 व 1000 की नोटबंदी के ऐलान के बाद सिर्फ 24 घंटे में लखनऊ की एक छोटी सी रियल एस्टेट कंपनी को करीब 6 करोड़ रुपये का बिजनस मिल गया। इस कंपनी ने उन्हीं नोटों से पिछले कई महीने से सैलरी मांग रहे कर्मचारियों को भुगतान किया। बता दें कि यह कंपनी बंद होने की कगार पर थी।
इलाहाबाद, गोरखपुर समते प्रदेश के ज्यादातर शहरों के कई बैंकों में सराकारी और सियासी दबाव के चलते आम आदमी का काम भले न हो, सरकारी पैसा जोर-शोर से वाइट किया जा रहा है। शाहजहांपुर भले ही जिला हो, लेकिन यहां की हालत किसी गांव से कम बदतर नहीं है। बैंकों में कैश की इतनी किल्लत है कि लोगों को 2000 के बदले 200 रुपये की पेशकश की जा रही है। लखनऊ के सबसे पॉश इलाके हजरतगंज के ही दर्जनों एटीएम काम नहीं कर रहे। इनमें 99 फीसदी एटीएम सरकारी बैंकों के हैं।
ब्लैक मनी को सफेद करने में लगे हुए हैं गैंग
धड़ल्ले से 20 से 30 फीसदी लेकर एक बड़ा गैंग पूरे प्रदेश में ब्लैक मनी को सफेद करने में लगा हुआ है। पोस्ट ऑफिसों और बैंकों के कई कर्मचारी दलाल बन चुके हैं। सब लूटखोर बन चुके हैं। सवाल यह है कि क्या केंद्र सरकार ने यह फैसला लेने से पहले यह सब नहीं सोचा था। सवाल यह भी है कि सरकार किसके भरोसे कोई योजना लागू करती है। मीडिया से लेकर लोगों तक कोई ब्यूरोक्रेसी पर सवाल नहीं उठा रहा। कोई उस तंत्र पर सवाल नहीं उठा रहा, जो इस आपाधापी, इस अव्यवस्था के लिए जिम्मेदार है।
क्या बैंक अधिकारियों, पोस्ट ऑफिस के कर्मचारियों और सरकार के अफसरों को ऐसे वक्त में अपनी कमाई की चिंता होनी चाहिए? संभल में एक सपा के कैबिनेट मंत्री ने एक निजी बैंक का ताला रात के 7.30 बजे खुलवाया और बड़े आराम से अपने नोट बदलवा लिए। एबीपी न्यूज के कैमरे में यह पूरा वाकया कैद हुए लेकिन उन्हीं की पार्टी बड़ी-बड़ी बातें कर रही है। कन्नौज से सपा की सांसद और सीएम अखिलेश यादव की पत्नी डिंपल यादव ने कह दिया कि सरकार ने बगैर तैयारी के यह ऐलान कर दिया और सरकार को कुछ वक्त देना चाहिए था। क्या डिंपल को अपनी सरकार की इन करतूतों पर कभी शर्म नहीं आती?
देश ड्रामाकाल से गुजर रहा
जिस तरह आम आदमी पार्टी, समाजवादी पार्टी व अन्य राजनीतिक दल मोदी सरकार के इस फैसले का विरोध कर रहे हैं और अरविंद केजरीवाल आमरण अनशन की धमकी दे रहे हैं, क्या इससे समस्या का हल निकल आएगा? सच तो यह है कि देश ड्रामाकाल से गुजर रहा है। हर कोई ड्रामा कर रहा है। कोई नीयत से काम भी करना चाह रहा है, तो उसे भी फेल करने की हर मुमकिन कोशिश की जा रही है।
इसी दौरान, पेटीएम की कहानी भी कम चौंकाने वाली नहीं है। दिल्ली का पेटीएम चायवाला हो या लखनऊ के सिविल अस्पताल का चायवाला, लोगों को रास्ते खोजना बखूबी पता है। अब पेटीएम के जरिए वे पैसे ले रहे हैं और उन्हें कोई दिक्कत नहीं। जिन लोगों को दिक्कत वाकई झेलनी पड़ रही है, उनके लिए सरकार तो प्रयास कर ही रही है। आखिर उनकी साख जो दांव पर लगी है। यहां अहम यह है कि विपक्ष में बैठी सियासी पार्टियां क्या सिर्फ विरोध करके, एक सही फैसले को रोलबैक करवाकर ही अपना फर्ज अदा कर रही हैं? क्या वे लोगों की मदद करने का काम नहीं कर सकते थे? क्या देश एक बार के लिए एक साथ एक स्वर में भ्रष्टों के खिलाफ लड़ाई नहीं लड़ सकता?
एक बात समझ लीजिए। समस्याओं पर रोना सबसे आसान काम है। गरीब को बरगलाना शायद उससे भी आसान, लेकिन समस्याओं का समाधान खोजना सबसे कठिन और जरूरी भी है। मोदी सरकार भले ही कुछ न कर रही हो, कम से कम फैसले तो सही ले ही रही है। अगर नीयत खराब है तो क्यों नहीं ढाई साल में एक भी भ्रष्टाचार का मामला सामने आया?
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