दूर पिछड़े गांवों के मरीजों को दवा पहुंचाना है इस लड़की का मकसद

अगर आप किसी गांव या कस्बे के छोटे अस्पताल में जाकर देखें तो मरीजों की लाइन लगी रहती है, दवा की दुकानों में दूर दूर तक लोग पर्चें लेकर खड़े मिलेंगे। फरीदाबाद की प्रिया शर्मा इस तस्वीर को बदलना चाहतीं थीं वो नहीं चाहतीं थीं कि इलाज कराने के लिए मरीजों को दूर दूर तक भटकना पड़े। इस समाजसेवा के लिए प्रिया शर्मा ने अपनी नौकरी तक छोड़ दी।
लगभग आठ सालों तक हेल्थ सेक्टर में काम करने की वजह से प्रिया को अनुभव भी था और इसी के चलते उन्होंने जिम्मेदारी फाउंडेशन नाम के एनजीओ से जुड़कर उत्तराखंड के गांवों में जहां स्वास्थ्य सुविधाओं की स्थिति बहुत खराब है वहां फ्री में दवाएं बांटना शुरु किया। प्रिया ने बताया कि वो अक्सर अपने आॅफिस के काम से सरकारी अस्पतालों में जाती थीं वहां देखती थीं कि मरीज कैसे अपना नम्बर आने के लिए इंतजार करते हैं, बीमार होने के बाद भी दवा के लिए घंटों लाइनों में खड़े रहते हैं। कई मरीजों को महीने भर बाद नम्बर दिया जाता था तब तक उनकी बीमारी और बढ़ जाती थी इसलिए मैंने सोचा कि मैं अगर इनकी मदद कर सकूं तो ये मेरी लिए खुशी की बात होगी।
नौकरी छोड़कर शुरु किया दवा बांटने का काम
प्रिया की नौकरी अच्छी चल रही थी उसे समय समय पर प्रमोशन भी मिल रहे थे। हेल्थ सेक्टर में काम करने के बाद मैंने एक कंपनी में प्लानिंग मैनेजर की तरह काम करना शुरु किया। अच्छी सैलरी मिलने के बाद भी संतुष्टि नहीं मिल रही थी। मैनें सोचा अगर में कंपनी के लिए साल्यूशन डिजाइन कर सकती हूं तो इस समस्या का समाधान भी निकाल सकती हूं। प्रिया ने फैसला किया कि अब वो गांव में जाकर मरीजों के इलाज में मदद करेगीं।
प्रिया ने अपने एमबीए करने के दौरान एक जिम्मेदारी नाम के एनजीओ की नींव रखी थी। जिसे अब उन्होंने बढ़ाने का फैसला किया और इसकी शुरूआत उत्तराखंड के गांवों से हुई। उत्तराखंड को चुनने की वजह प्रिया बताती हैं कि उत्तर प्रदेश की तरह उत्तराखंड भी उन राज्यों में शमिल हैं जहां स्वास्थ्य सुविधाओं की हालत बहुत खराब है। सरकारी आंकड़ों के अनुसार भी ये उन राज्यों में था जो स्वास्थ्य मानकों के हिसाब से अभी भी बहुत पीछे हैं। इसलिए मैंने वहां से शुरूआत करने की सोची। शुरूआत में 10 गांवों का चुना और 1000 लोगों पर सर्वे किया तो वाकई स्थिति बहुत बदतर थी।

मोबाइल वैन के जरिए गांवों में पहुंचातीं हैं दवाएं
प्रिया ने आठ डॉक्टरों की टीम बनाई और गांव —गांव जाकर कैंप लगाना शुरु किया। कैंप में अच्छे खासे लोग चेकअप के लिए आए उन्हें दवाईयां भी दीं गई। हमने जब दोबारा जाकर इसका फीडबैक लिया तो पता चला कि गांव वाले ज्यादा खुश नहीं हैं क्योंकि डॉक्टर का न मिलना परेशानी नहीं है बल्कि उनकी लिखी दवाओं का न मिलना असल समस्या है। ये बात जानकर हमने मोबाइल मेडिकल बैंक लांच किया। हम गांवो में 15 दिन पहले ही बता देते थे कि फलां तारीख को आपके गांव में जिम्मेदारी की वैन आएगी आप अपने डॉक्टरों को दिखा कर पर्चा लेकर आ जाइए। हमारे फार्मासिस्ट आपको दवा दे देगें। इससे लोग काफी खुश हुए। हम अब तक करीब 35 लाख की दवाएं बांट चुके हैं।
हम देखते हैं कि जो दवाएं जून में एक्सपायर होने वाली होती हैं उन्हें अक्सर लोग जनवार से लेना बंद कर देते हैं। जब वो एक्सपायर हो जाती हैं तो कंपनियां उन्हें तोड़कर उनका पाउडर बनाकर फेंक देती हैं। ये बहुत ज्यादा बर्बादी है इसके लिए हम इन दवाओं को लेकर उन्हें तुरंत जरूरतमंद लोगों तक पहुंचा देते हैं] जिससे सही समय के अंदर उनका इस्तेमाल हो सके। इसमें सुरक्षा का पूरा ध्यान रखा जाता है। पिछले आठ महीनों में हम चार लाख मेडिसिन किट बांट चुके हैं।
कहां से आती हैं ये दवाएं
प्रिया बताती हैं हमारे दिल्ली में पांच हजार से ज्यादा फिजीशियनों से संपर्क हैं जिनके पास फार्मा कंपनी के फ्री सैंपल आते हैं हम उनसे ऐसे डॉक्टरों से मिलकर उनसे सहयोग करने के लिए कहते हैं। उनसे फ्री के सैंपल लेकर हमारे वालंटयिर उन्हें पूरी ईमानदारी से बांटते हैं। दवाईयों का पूरा रिकार्ड हम अपने पास रखते हैं। कुछ दावाएं हमें फार्मा कंपनीज दे देती हैं और कुछ मदद शहरी एनजीओ कर देते हैं।
प्रिया अब तक 55 गांवों में अपनी पहुंच बना चुकी हैं। वो सिर्फ उन गांवों में जाती हैं जो बहुत दूर व पिछड़े हुए हैं। वो कहती हैं कि जब मैं अकेले इतना बदलाव ला सकती हूं तो अगर आप लोग भी हमसे जुड़ेगें तो और तेजी से बदलाव आएगा।
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