भारत का अंतिम गांव! यहां के निवासियों की बदौलत चीन नहीं कर सका कब्जा

हिमालय की वादियों में बदरीनाथ से करीब 3 किलोमीटर आगे बसे हिंदुस्तान के इस अंतिम गांव (माणा) की कहानी जब आप जानेंगे तो आपको भी अपने भारतीय होने पर गर्व होगा।
इस गांव को भारत से जोड़ने में यहां के निवासियों का महत्वपूर्ण योगदान
समुद्र तल से 10,248 फीट की ऊंचाई पर स्थित यह भारतीय सीमा का अंतिम गांव है। माणा से 24 किमी दूर भारत-चीन सीमा है। 1962 के भारत-चीन युद्ध तक इस क्षेत्र के निवासियों के भारतीय नागरिक होने पर स्वयं भारत को संशय था और माणा के भोटिया जनजाति निवासी जो मंगोल जाति के वंशज हैं, वे चीनी नागरिक समझे जाते थे।
मंगोलियन मूल के होने के बावजूद यहां के निवासियों ने इस क्षेत्र को भारत से जोड़ने में महत्वपूर्ण योगदान दिया है। माणा के नागरिकों ने चीन के भारी दबाव और लालच के बावजूद इस समूचे क्षेत्र को चीन के प्रभुत्व में आने से बचाकर भारत में शामिल कराने में अहम भूमिका निभाई।
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वरना एक समय ऐसा भी था जब भारत की ओर से इसे अपने देश में बनाए रखने के प्रयास ही नहीं रह गए थे। माणा निवासियों को अपने पूर्वजों के इस निर्णय और उनकी भूमिका पर आज भी फख्र है।
इस गांव में चीन का था दखल
यहां के नागरिक बताते हैं कि तब भारत दूर और चीन नजदीक था और चीनी नागरिक खुलेआम यहां तक आते थे। यहां तक कि माणा के निवासी भी चीनी भाषा बोलते और समझते थे। यहां के निवासियों ने चीन के दबाव और प्रलोभन को दरकिनार कर भारतीय फौज का साथ दिया और क्षेत्र को भारत में बनाए रखने में भूमिका निभाई।
इसके बाद सरकार का ध्यान यहां के नागरिकों पर और इस क्षेत्र पर गया तथा उन्हें नागरिकता और अन्य अधिकार मिले। बाद में बदरीनाथ और माणा तक सड़क भी पहुंचाई गई और आईटीबीपी की चौकी स्थापित की गई। 1962 तक यह क्षेत्र उपेक्षित और सीमा पूरी तरह खुली और असुरक्षित थी। आर्मी तो दूर यहां कोई सुरक्षा बल भी तैनात न थे।
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यहीं से पांडव सशरीर स्वर्ग गए थे
माणा गांव का धार्मिक महत्व भी बहुत है। मान्यता है कि यहीं से होकर पांडव सशरीर स्वर्ग गए थे। वेद व्यास ने महाभारत की रचना भी यहीं की थी। माणा सरस्वती नदी का उद्गम भी है, जो मात्र 500 मीटर दूर माणा में ही केशव प्रयाग में अलकनंदा में मिल जाती है। मान्यता है कि इस नदी पर विशाल चट्टान का पुल बनाकर भीम ने रास्ता बनाया था।
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