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एक दरख्वास्त है। सात साल के देयान की यह कहानी पढ़ने से पहले लाचारी का भाव कुछ देर के लिए अलग रख दीजिए। वह दया का नहीं, सम्मान का हकदार है।
घटना मुंबई की है। अंधेरी मूल के देयान के मम्मी-पापा उसे ऑस्ट्रेलिया से भारत घुमाने लाए थे। सबने भारत घूमा। लेकिन जिस दिन सभी एयरपोर्ट के लिए निकलने वाले थे, देयान बेहोश हो गया। मां-बाप को लगा शायद मुंबई की हवा रास नहीं आई। असलियत तो यह थी कि जिंदगी को देयान रास नहीं आया।
उसके दिमाग में खून के थक्के जम गए थे। बचना मुश्किल था। पहले नानावती हॉस्पिटल और फिर पीडी हिंदुजा। 27 (जनवरी) को डॉक्टरों ने सर्जरी भी की, लेकिन देयान अभी इसके लिए तैयार नहीं था। टूट गया। खत्म हो गया। डॉक्टरों की भाषा में ब्रेन डेड।
अब ऐसे में आप होते तो क्या करते यह तो नहीं पता, लेकिन देयान के मां-बाप ने उसकी मुराद पूरी करने का फैसला लिया। अंगदान करना था देयान का सपना। अपनी मां से हासिल किया था उसने और एक रोज अपने पापा को भी इसके लिए मना लिया था।
देयान के मां-बाप ने उसका सपना पूरा किया। एक नहीं, दो नहीं, चार लोगों की जान बची। देयान ने बचाई। चमकती आंखों से उसकी मां बताती है, 'मेरे बेटे को बहुत पहले ही अपना सपना पूरा करने का मौका मिल गया।'
और इन चार में सात साल की एक बच्ची भी थी, जिसे देयान का दिल मिला। डॉक्टर बताते हैं कि उस बच्ची के दिल ने खून पंप करना 500 फीसदी कम कर दिया था। चंद दिन थे उसके पास लेकिन देयान उसे जिंदगी देकर चला गया। डॉक्टरों की डिक्शनरी में चमत्कार शब्द नहीं होता है, लेकिन इस बार ऐसा ही हुआ। डॉक्टरों ने भी माना।
किडनी गई 11 और 15 साल के दो बच्चों के पास और लिवर 31 साल की एक महिला के पास। मुंबई वाकई सपनों का शहर है। कितनों के टूटे पता नहीं, लेकिन देयान का पूरा हुआ।