देश के लिए पिता ने गंवा दी थी जान, अब बेटे बने सेना में अफसर
बीते दिनों भारतीय सैन्य अकादमी देहरादून से पास आउट छात्रों में ऐसे भी बच्चे शामिल है जो कि शहीद जवानों के घरों से है। जिन्होंने बचपन में अपने पिता को खो दिया और उनकी मां ने बेटों की खातिर संघर्ष किया। इसके बाद भी अपने बच्चों को देश की सेवा के खातिर तैयार किया और अब वह समय आ भी गया कि बेटा देश की सेवा के लिए तैयार हो गया।
बच्चों की खातिर किए गए संघर्ष के बीच से ही निकलकर आई खुशी। बेटों के कंधे लगे स्टार को देखकर मां का सिर ऊंचा हो गया। देहरादून में हुई पासआउट परेड में कारगिल में शहीद हुए लांस नायक बच्चन सिंह का बेटा हितेश कुमार व बीएसएफ के डिप्टी कमांडेंट रहे शहीद सुभाष शर्मा का बेटा क्षितिज भी निकले हैं। इन बच्चों को देश के लिए तैयार करने का उनकी मां ने जिस तरीके से प्रण लिया है उसकी हर तरफ तारीफ हो रही है।
जिस बटालियन में पिता थे सैनिक उसी में बेटा बना अधिकारी
देश की खातिर कारगिल की लड़ाई में शहीद हुए मुजफ्फरनगर के लाल लांस नायक बच्चन सिंह का बेटा अब सेना में भर्ती हो गया है। बच्चन सिंह ने कारगिल की जंग में 12 जून 1999 को तोलोलिंग में दुश्मनों से लड़ते हुए अपने प्राण न्योछावर कर दिए थे। राजपूताना राइफल्स की दूसरी बटालियन में लांस नायक बचन सिंह की शहादत की खबर जब घर में पहुंची, तो उनका बेटा हितेश कुमार महज 6 साल का था। 19 साल बाद उनका बेटा उसी बटालियन में लेफ्टिनेंट बनाकर अपने पिता को श्रद्धांजलि देने मुजफ्फरनगर पहुंचा तो लोगों का सीना गर्व से चौड़ा हो गया। हितेश का चयन भी उसी द्वितीय राजपूताना राइफल रेजीमेंट में हुआ है, जिसमें उनके पिता थे। अब वह उसी रेजीमेंट में अधिकारी के तौर है। भारतीय सैन्य अकादमी देहरादून से पास होकर भारतीय सेना में लेफ्टिनेंट के तौर पर जुड़ गए हैं।
जब उनसे बातचीत की गई तो हितेश ने कहा, ' जब पिता शहीद हुए थे तभी संकल्प लिया था कि एक दिन सेना में जाना है। 19 सालों तक मैंने केवल भारतीय सेना में भर्ती होने का सपना देखा। उन्होंने कहा कि यह मेरी मां का भी सपना बन गया था। पिता जी के शहीद होने के बाद भी मेरी मां ने मुझे हमेशा ही प्रेरणा दी। मैं पूरी ईमानदारी और गर्व के साथ देश की सेवा करना चाहता हूं। वहीं हितेश की मां के भारतीय सेना में भर्ती होने के बाद मां कमेश बाला के आंसू थमने का नाम नहीं ले रहे हैं। उन्होंने कहा कि 'बच्चन के शहीद होने के बाद जिंदगी बहुत कठिन हो गई थी। मैंने अपनी पूरी जिंदगी अपने दोनों बेटों का पालन-पोषण करने में समर्पित कर दी। अब उसी का फल मिल रहा है। बेटे को हमेशा ही सेना में भेजने की तमन्ना दी थी और आखिरकार बेटे ने वह सपना पूरा किया।'
बेटे की खातिर मां ने किया संघर्ष
कारगिल की ही लड़ाई में शहीद हुए बीएसएफ के डिप्टी कमांडेंट सुभाष शर्मा की पत्नी बबीता शर्मा की भी कहानी कुछ ऐसी ही है। शहीद कमांडेंट की पत्नी की संघर्षों की कहानी इस समय सोशल मीडिया पर छाई हुई है। आंतकियों से लोहा लेते हुए 16 जनवरी 1996 को कमांडेंट शहीद हो गए थे। 6 जनवरी 1996 को आतंकी जब जम्मू-कश्मीर के रास्ते देश में घुसने की फिराक में थे, तो बीएसएफ के डिप्टी कमांडेंट सुभाष शर्मा उन्हें रोकने के दौरान शहीद हो गए, लेकिन उनके मंसूबे कामयाब नहीं होने दिए। उनकी वीरता राष्ट्रपति ने पुलिस पदक शौर्य चक्र से सम्मानित किया था। जिस समय सुभाष शर्मा शहीद हुए थे उस समय उनका बेटा क्षितिज शर्मा महज 9 माह का था। पति की मौत के बाद अपने बच्चे को उन्होंने पाला और अपने बच्चे को भी सेना में भेजने का निर्णय लिया। तब से लेकर अब तक 22 वर्ष बीत गए, बबीता जी की आंखों में उनका कमिटमेंट हर पल जीवित रहा।
पति के शहीद होने पर किया गया उनका प्रण कुछ दिनों पहले तब साकार हो गया जब उनका 22 वर्षीय बेटा क्षितिज ने साकार किया। पिता की बहादुरी और देशभक्ति की कहानियां सुनकर जब क्षितिज बढ़ा हुआ तो 8वीं क्लास में ही उसने अपनी मां से सेना में जाने की इच्छा जताई। आखिरकार वह सपना साकार भी हुआ और क्षितिज ने 5 लाख अभ्यर्थियों के बीच में देश में 13वां स्थान हासिल किया। परेड पासआउट करने के बाद रविवार को वो सेना में लेफ्टिनेंट बनकर कोटा लौटा। उनकी मां बताती है कि नेशनल डिफेंस एकेडमी की तीन वर्षों की पढ़ाई और आईएमए (इंडियन मिलिट्री एकेडमी) की एक वर्ष की ट्रेनिंग पूरी कर क्षितिज अब देश की सेवा को तत्पर है। आईएमए में क्षितिज मिस्टर आईएमए व बीसीए (बटालियन कैडेट एडजुटेंट) भी रहा है। क्षितिज एमबीए की डिग्री भी हासिल कर चुका है। क्षितिज आर्मी में बेस्ट बास्केटबॉल टीम कैप्टन भी रहा है। जुलाई माह में पटियाला में अपनी पहली पोस्टिंग लेफ्टिनेंट के रूप में लेगा।
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