जानिए, ये युवक कैसे आदिवासी महिलाओं को बना रहा है आत्मनिर्भर

जीवन में हर व्यक्ति अपना एक लक्ष्य लेकर चलता है, लेकिन ये भी सत्य है कि कभी-कभी इंसान की जिन्दगी में अचानक ऐसा घटित होता है जब उसे रास्ता बदलना पड़ता है। आईटी सेक्टर के सुरक्षा सलाहकार विकास दास के जीवन की कहानी कुछ ऐसी ही है। साल 2013 में दुर्गा पूजा के मौके पर विकास अपने गृह जनपद ओडिशा के बालासोर गांव गये हुए थे। जहां उनके घर पर होने वाली दुर्गा पूजा में उनके गांव के अलावा आस-पास के लोग भी शामिल होते थे।
लोग आदिवासी समाज से दूरी बनाकर रहते थे
इसी पूजा के दौरान एक ऐसी घटना घटित हुई जिसने विकास की सोच को बदलकर रख दिया। उनके घर की इस पूजा में एक आदिवासी महिला सुकिमा मांझी भी वहां पहुंच गई। जिससे पुजारी को गुस्सा आ गया यह देखकर विकास के परिवार वालों ने सुकिमा मांझी को पूजा स्थल से भगा दिया। हालांकि विकास के माता-पिता उदारवादी स्वाभाव के थे। लेकिन बुजुर्गों के समय से वो लोग आदिवासी समाज से दूरी बनाकर ही रहते थे।
ये बात विकास को नागवार गुजरी, विकास को बचपन से ही सिखाया गया था कि पूरी दुनिया एक ही परिवार की तरह है। लेकिन परिवार का ये रवैया उन्हें पसंद नहीं आया। द बेटर इंडिया के मुताबिक, 'यह सब देखकर मुझे बहुत खराब लगा कि हम देवी की ही प्रार्थना कर रहे है वहीं दूसरी तरफ एक महिला का अपमान कर रहे हैं।'
जब विकास ने इसका मूल कारण जानने की कोशिश की तो पता चला कि उनसे इसलिये भेदभाव किया गया क्यों कि वो गरीब, अशिक्षित व कुपोषण के शिकार थे। विकास ने उन आदिवासी महिलाओं को सशक्त बनाने का निर्णय लिया। विकास ने कोईबानिया के आदिवासी गांव में दो महीने का वक्त भी गुजारा ताकि उनकी समस्याओं को पूरी तरह से समझा जा सकें। इन्होने इस काम के लिये अपने कारपोरेट दोस्तों की मदद ली और जल्द ही सात लोगों की एक टीम तैयार हो गई।
संस्था का नाम वट वृक्ष
टीम ने महिलाओं को व्यवसाय के क्षेत्र में लाने का प्रयास किया। शुरुआत में मुश्किल जरूर आई क्योंकि यहा मामला महिलाओें को सशक्त बनाने का था और उनके घर के पुरुषों ने बाहर निकलने व अजनबियों से बात करने के लिये मना कर रखा था। इसके अलावा एक कारण यह भी था कि सालों से उनका शोषण किया जा रहा था। 2014 में विकास ने अपनी नौकरी छोड़ दी और अपने बचत के पैसों से वट वृक्ष नाम की संस्था का शुभारम्भ किया। संस्था को वट वृक्ष नाम देने का भी एक कारण यह था कि शुरू में कोई कार्यालय न होने के कारण आदिवासी लोगों से चर्चा करने के लिये बरगद के पेड़ के नीचे बैठक की गई थी।
ग्रामीणों को दिया प्रशिक्षण
शुरुआत में 100 से 200 आबादी वाले छोटे से गांव से की गई। जो महिलाएं हस्तशिल्प कला, कार्बनिक फसलों, हर्बल आदि का काम जानती थी। उन्हें 3000 रुपये का बीज निधि देकर काम शुरू कर दिया। अब उनके सामने सबसे बड़ी चुनौती थी। महिलाओं द्वारा तैयार उत्पाद को बाजार तक पहुंचाना। इस प्रकार वट वृक्ष का पहला लक्ष्य उत्पादों को सही मूल्य दिलाना था। आदिवासी महिलाओें के साथ अन्य गांव की महिलाओं को भी जोड़ा गया और इन्हे कौशल विकास के तहत प्रशिक्षण दिया गया। वट वृक्ष की टीम ने तैयार उत्पाद को बाजारों के अलावा घर-घर जा कर बेचा और धीरे-धीरे बाजार तैयार हो गया।
बूंद-बूंद से भरा घड़ा
एक छोटे से गांव से शुरू की गई विकास की मुहिम अब चार राज्यों ओडिशा, पश्चिम बंगाल, झारखंड और छत्तीसगढ़ में बड़े नेटवर्क का रूप ले चुकी है। आज वट वृक्ष में 72 सदस्यों की टीम ने 17000 आदिवासी महिलाओं की मदद की है और यह काम लगातार जारी है। विकास कहते है हम अपनी संस्था में आदिवासी समाज के शिक्षित युवाओं को भी प्राथमिकता देते है ताकि उनके साथ संवाद करने में आसानी रहे। आदिवासियों द्वारा बनाये गये उत्पाद की ज्यादा से ज्यादा बिक्री हो इसके लिये विकास ने एक तरीका निकाला। अगर कोई भी ग्राहक इनके बनाये उत्पाद को खरीदता है तो आपको उत्पाद के निर्माण के पीछे की कहानी का वर्णन करने वाली पुस्तिका मुफ्त में दी जायेगी।
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