किसी की आर्थिक मदद कर देना आपको बेहतर इंसान तो बना सकता है, लेकिन अगर कोई ऐसी मुसीबत में हो जिसकी मदद करते हुए आप भी फंस सकते हैं! ऐसे में उसकी मदद कर देना शायद आपको उस मदद करने वाले का भगवान बना दे। हालांकि ऐसा हमेशा नहीं होता है, आज भी ऐसे लोग हैं जो अपनी जान पर खेलकर दूसरों की मदद करते हैं। ऐसी ही है इस समाजसेविका की कहानी।
आप सोच रहे होंगे समाजसेवा में क्या खतरा? तो आपको बता दें रेस्क्यू फाउंडेशन की संचालिका त्रिवेणी आचार्या सेक्स रैकेट के चंगुल में फंसी लड़कियों को छुड़ाने का काम करती हैं। इस काम में उन्हें हर दिन खतरा होता है, सेक्स रैकेट चला रहे दलाल और माफिया टाइप के लोगों की धमकी उन्हें हमेशा मिलती रहती है। फिर भी वो अपना काम करती आ रही हैं। त्रिवेणी इस काम को 1993 से कर रही हैं, वो अब तक हजारों लड़कियों को बचाने के साथ उनके बेहतर जीवन की व्यवस्था कर चुकी हैं।
कैसे और कब शुरू किया यह काम?
1993 में वो एक गुजराती अखबार में बतौर पत्रकार काम करते हुए मुंबई के कमाठीपुरा इलाके में गईं, ये इलाका उस समय एशिया का दूसरा सबसे बड़ा रेड लाइट एरिया माना जाता था। हालांकि वो वहां एक फिल्म अभिनेता के प्रेस कॉन्फ्रेंस को कवर करने गई थीं, पर उनके अंदर उस ‘बदनाम गली’ को देखने की उनकी इच्छा थी। प्रेस कॉन्फ्रेंस के बाद वो वहां गईं, और जो उन्होंने देखा उसके बाद वो बेहद विचलित हो गईं। उन्होंने इसका जिक्र अपने पति से किया और उसके बाद उन्होंने वहां की लड़कियों को बचाने का बीड़ा उठा लिया।
कैस करती हैं काम?
त्रिवेणी शुरू में जब इन इलाकों में जाती और लड़कियों को सजी-धजी देखने के बाद वो तय नहीं कर पातीं कि वो अपनी मर्जी से हैं या जबरजस्ती! हालांकि थोड़े दिनों बाद ही जब वो चीजों को समझने लगीं तो उन्हें इस बात का एहसास हुआ कि ज्यादातर मामलों में जबरजस्ती ही होती है। धीरे-धीरे उन्होंने वहां से लड़कियों को लीगल और अन्य तरीकों से वहां से निकालना शुरू किया। कुछ दिनों बाद ही उनके पास खुद ऐसे मामले आने लगे जिसमें उनकी दखल के बाद लड़की को छुड़ा लिया जाने लगा। इसके बाद त्रिवेणी ने उन लड़कियों को आगे की जिंदगी जीने में मदद करनी शुरू कर दी। यहीं नहीं इन लड़कियों से शादी करने के लिए युवा भी सामने आने लगे।
उनके इस काम को देखते हुए 2003 में एक आदमी ने त्रिवेणी को कांदीवली में एक सात मंजिला मकान दान में दे दिया, जिसमें आज भी वो बचाई गई लड़कियों को रखती हैं। 2005 में उन्होंने सोचा कि वो अब इस काम से रिटायर हो जाएं लेकिन अपनी पति की बात मानते हुए वो आज भी इस काम को उसी शिदद्त ये कर रही हैं। अब उनका फोकस देह व्यापार में धकेले जाने से पहले ही उन बच्चियों और युवतियों को बचाने का होता है। आज वो हर साल करीब 300 बच्चियों को इस दलदल में गिरने से बचा रही हैं। यही नहीं रेस्क्यु फाउंडेशन द्वारा हर साल इन लड़कियों को आगे के जीवन को अच्छे से जीने के लिए शादी भी कराई जाती है।