कश्मीर की युवा पीढ़ी के लिए मिसाल हैं समी

वर्ष 2001 में गांव वापसी के बाद एक दिन समी के दिमाग में अपने गांव के आसपास के दिव्यांगों की गिनती करने का ख्याल आया। इसके बाद जो हुआ उसने समी को हैरत में डाल दिया।
दिव्यांगों के पुनर्वास को प्रदेश भर में चला रहे मुहिम
आतंकवाद की आग में जल रहे कश्मीर के युवाओं के लिए एक मिसाल हैं समी वाणी। मैंगलौर से फिजियोथेरेपिस्ट का कोर्स करने के बाद बड़े शहर में रहकर सुनहरा करियर छोड़ गांव लौटे समी ने दिव्यांगों की मदद की जो मुहिम चलाई वह पूरे प्रदेश में फैल चुकी है।
परिवार ने भी बढ़ाया हौंसला
वर्ष 2001 में गांव वापसी के बाद एक दिन समी के दिमाग में अपने गांव के आसपास के दिव्यांगों की गिनती करने का ख्याल आया। इसके बाद जो हुआ उसने समी को हैरत में डाल दिया। पास के पांच गांवों में जाने पर वहां लगभग 300 दिव्यांग बच्चों की जानकारी मिली। इस जानकारी ने समी को अंदर तक चोट पहुंचाई। उसने इनकी मदद करने की ठानी तो परिवार ने भी उसका हौंसला बढ़ाया।
आसान नहीं थी शुरुआत
बचपन से कुछ अलग करने की इच्छा मन में लिए समी ने दिव्यांगों की मदद के लिए 'शी होप डिसैबिलटी सेंटर' की स्थापना की। श्रीनगर से 20 किलोमीटर दूर गंदरबाल जिले के वेइल स्थित अपने घर में 12 बाई 12 के एक कमरे से दिव्यांग के पुनर्वास व तीन से पांच बच्चों के लिए विशेष शिक्षा की व्यवस्था शुरू की। समी के मुताबिक, इस दौरान सुदूरवर्ती ग्रामीण इलाकों में जागरूकता की भारी कमी दिखी। गरीबी और महंगे इलाज के कारण इन इलाकों के लिए चीजें काफी मुश्किल थीं।
जागरूकता की कमी बीमारी का बड़ा कारण
समी बताते हैं कि एक बार वह पास के गांव में एक नाई से मिले जिसके दो बेटे थे और दोनों ही जन्मजात विकलांगता के शिकार थे। जब उससे दोनों के इलाज के लिए कहा तो नाई ने बताया कि मेरे दोनों बेटों को पोलियो है और यह बीमारी कभी ठीक नहीं हो सकती है। उसने कहा कि यह अल्लाह ने दी है, मैं दोनों को पीर-फकीर के पास ले गया, लेकिन सब बेकार गया। अब आप या डॉक्टर कैसे इन्हें ठीक कर सकते हैं। समी के मुताबिक, इसके बाद वह दोनों को हॉस्पिटल ले गए और इलाज करवाया। छह महीने की मेहनत के बाद दोनों बच्चे अपने पैरों पर चलने लगे। पिछले 11 वर्षों से 'शी होप डिसैबिलटी सेंटर' चला रहे समी फिजियोथेरिपी और सुधारात्मक सर्जरी के साथ कम कीमत में श्रवण यंत्र व कृत्रिम अंग उलपब्ध करा रहे हैं। समी का मानना है कि पिछड़ा सामाजिक परिवेश खासकर महिलाओं के मामले ज्यादा गंभीर हैं। वह बताते हैं कि गांववालों ने उसे एक बेहद खूबसूरत लड़की के बारे में बताया जो सुन नहीं सकती थी। लड़की परिवार से उसके इलाज को लेकर संपर्क किया गया, लेकिन उन्होंने बात मानने से इनकार कर दिया। हालांकि, कुछ दिन लड़की मां सेंटर पहुंचीं और इलाज को तैयार हुईं।
समय के साथ बढ़ता गया कारवां
कुछ समय काम करने के बाद समी को बेहतर संसाधनों की कमी का एहसास हुआ। इसके बाद संस्था के चेयरमैन अपने पिता गुलाम नबी वाणी के साथ मिलकर संसाधन जुटाए और पिता से मिली जमीन पर चार कमरों का निर्माण कराया। साथ ही दो फिजियोथेरिपिस्ट व अन्य लोगों को अपने साथ जोड़ा। शी होप वर्ष पर दिव्यांगों की पहचान और जागरूकता के लिए अभियान चलाती है। इतना ही नहीं बोलने और सुनने में असमर्थ बच्चों को यहां विशेष स्पीच थेरेपी भी दी जाती है, वहीं नेत्रहीन बच्चों को ब्रेल लिपि का ज्ञान भी कराया जाता है। शी होप अब तक प्रदेशभर के 14131 दिव्यांगों के पुनर्वास में मदद कर चुकी है। इसके अलावा 3216 लोगों को ट्राइसाइकिल, कैलिपर्स, श्रवण यंत्र दे चुकी है। लोगों की मदद के जज्बे के चलते जम्मू और कश्मीर के हर जनपद में संस्था के पुनर्वास केंद्र हैं। समी की मुहिम में इंटरनेशनल संस्थाएं जैसे MEND (न्यूजीलैंड स्थित संस्था), ALTSO,एबिलिस फाउंडेशन भी सहयोग कर रही हैं।
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