'जनधन' के जमाने में 'रोटी बैंक' है सबसे बड़ी जरूरत, क्या आपने बनाया?

राजेश खन्ना की फिल्म 'रोटी' का एक मशहूर डॉयलॉग है, 'इंसान को दिल दे, दिमाग दे, जिस्म दे पर कमबख्त ये पेट न दे'! इस एक लाइन के डॉयलॉग ने इंसान और इंसानियत की पूरी कहानी कह दी। रोटी और भूख का संबंध, जिंदगी और मौत की तरह है। रोटी की कीमत एक भूखे इंसान से बेहतर कोई नहीं जान सकता है। एक रोटी की आस में न जानें कितनी जिंदगियां खत्म हो जाती हैं। जिन्हें रोटी का एक टुकड़ा भी नसीब में नहीं होता उनके लिए तो एक पूरी रोटी, एक जिंदगी के समान होती है।
भगवान को किसी ने नहीं देखा है लेकिन दिल्ली में इन दिनों कुछ लोग भगवान के रूप में ही काम कर रहे हैं। जहां कुछ उदार लोगों ने बेबस और लाचार लोगों की मदद करने और उनकी भूख मिटाने के लिए एक टीम बनाई और 'रोटी बैंक' की स्थापना की। जहां गरीब, मजदूर लोग पहुंचकर अपनी भूख मिटा रहे हैं।
कैसे और कब हुई शुरुआत?
'रोटी बैंक' नाम ही अपने आप में अलग सिहरन पैदा कर देता है। इस काम को कुछ लोगों ने मिलकर इसे जमीन पर ऐसे उतारा कि हजरों लोगों की दुआ उन्हें मिलने लगी। इसकी शुरुआत कुछ समाजसेवी द्वारा सबसे पहले शुरुआत छत्तीसगढ़ और मध्यप्रदेश में की गई थी। इसी कांसेप्ट के आधार पर दिल्ली के आजादपुर मंडी के व्यापारी नेता राजकुमार भाटिया ने अपने कुछ मित्रों के साथ मिलकर करीब डेढ़ साल पहले इस रोटी बैंक की शुरुआत की है।
इसके लिए दिल्ली में जगह-जगह रोटी बैंक के बॉक्स लगाए गए। जिसका काफी अच्छा परिणाम देखने को मिला। डेढ़ साल में आज दिल्ली में रोटी बैंक की 24 शाखाएं खुल चुकी हैं। आजादपुर मंडी के व्यापारी, निवासी और मार्डन स्कूल शालीमार बाग के छात्र रोज इस बैंक में रोटी का तीन पैकट जमा करते हैं। नोटबंदी के बाद से यहां गरीबों की लाइनें लगी हुई हैं। अभी भी यहां भूखे और बेबस लोगों को लगातार खाना मिल रहा है।

रोटी बैंक ने बदली गरीब और अनाथों की जिंदगी
इसके संस्थापक राजकुमार भाटिया ने बताया कि 'जब हमने रोटी बैंक की शुरुआत की तब उस वक्त 7 पैकेट जमा हुए। धीरे-धीरे इस सामाजिक यज्ञ में काफी लोगों ने अपना योगदान देना शुरू किया।' सबसे अच्छी बात ये है कि इसे चलाने के लिए सरकारी अनुदान या वित्तीय सहयोग की जरूरत नहीं है। रोटी बैंक में रोटी जमा करने वाले लोग तीन रोटी, सूखी सब्जी या आचार के साथ पैकेट लाते हैं। जिससे मंडी में काम करने वाले गरीब, मजदूर और उनके बच्चे व अनाथ लोग यहां पहुंचकर भोजन करते हैं। भाटिया आगे बताते हैं कि डेढ़ साल के अंदर रोटी बैंक की दिल्ली में अब तक बहुत सारी शाखाएं खुल चुकी हैं। जिनमें गांधीनगर, लाजपतनगर रिंग रोड, कीर्ति नगर, सुभाष नगर, राजौरी गार्डन, द्वारका, लाजपतनगर, गीता कालोनी, निलौठी एक्सटेंशन, रोहिणी, शाहदरा जैसे इलाके शामिल हैं।
आप भी दे सकते हैं योगदान
इस तरह के प्रयास को तभी सफलता मिलेगी जब आप और हम मिलकर इसको और मजबूत बनाएं और अपना समर्थन दें। हालांकि हमारे समाज में ऐसे बहुत सारे लोग हैं, जो समाज बदलने के लिए काम कर रहे हैं। हम अगर कुछ नहीं सिर्फ उन्हें प्रोत्साहित ही करें तो बहुत बड़ा काम हो जाएगा। इसलिए अगर आप भी चाहते हैं कि ये लोग ऐसे ही काम करते रहे तो उन्हें प्रोत्साहित जरूर करें और इस कहानी को अपने दोस्तों में शेयर करें, ताकि हमारे समाज का कोई भी इंसान भूखा नहीं सोए।
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