बच्ची की मौत से थे परेशान, अपनी जमापूंजी से बनवा दिया पक्का पुल
अपनी मेहनत की कमाई खर्च करके सबकी सुविधा के लिए कोई काम करना हर किसी के बस की बात नहीं होती लेकिन उत्तर प्रदेश के कुशीनगर ज़िले के एक शख्स ने ये कर दिखाया। कुशीनगर के रहने वाले संतू प्रसाद ने जब बांस-बल्ली से बने अस्थाई पुल के टूटने से नाले में गिरी बच्ची की मौत देखी तो वह विचलित हो गए। उसी वक़्त उन्होंने तय कर लिया कि अब वो इसकी जगह एक पक्का पुल बनवाएंगे।
उन्होंने पुल बनवाने का फैसला तो कर लिया लेकिन इसके लिए पैसे कहां से आएंगे इस बात की चिंता थी लेकिन संतू प्रसाद ने अपने रिटायरमेंट में बाद मिली पीएफ की रकम से तीन लाख रुपये खर्चकर और ग्रामीणों के श्रमदान से उन्होंने वहां 70 फीट लंबा स्थाई पुल बनवा दिया। इस पुल के बन जाने से पांच किलोमीटर की दूरी एक किलोमीटर में सिमट गई है।
दरअसल, कुशीनगर ज़िले के कप्तानगंज ब्लॉक क्षेत्र के ग्राम भड़सर खास के माफी टोला से गुजरने वाले मौन नाले पर 2013 तक बांस - बल्ली से बना हुआ अस्थाई पुल था। इस पर से गुजरना हमेशा खतरे से भरा काम होता था। जुलाई 2013 में यह पुल अचानक टूट गया जिससे एक बच्ची नाले में जा गिरी और उसकी मौत हो गई।
उन्हीं दिनों संतू रेलवे पैटमैन की नौकरी से रिटायर होकर गांव लौटे थे। इस हादसे ने उन्हें गहरा सदमा लगा। उन्होंने बताया कि उन्हें रिटायरमेंट के बाद पीएफ के 13 लाख रुपये मिले थे। पेंशन 15,500 रुपये बनी लेकिन बच्ची की मौत से वह इतने दुखी थे कि उन्होंने अपनी जीवन भर की कमाई भी इसमें लगाने का फैसला कर लिया। पीएफ के रुपये में से 10 लाख रुपये वह बेटों को दे चुके थे। बाकी तीन लाख रुपये से काम शुरू कराया।
पांच पायों वाले पक्के पुल का निर्माण देख गांव के कई लोग साथ आए। किसी ने सीमेंट दी तो किसी ने लोहा। संतू के साथ तमाम लोगों ने श्रमदान भी किया। आखिर में पैदल और साइकिल-बाइक चलने लायक पुल बन गया।
डेढ़ बीघा जमीन के मालिक संतू की इस पहल से 12 गांवों के लोगों को राहत मिली है। इनमें सोमली, पेमली, बरवां, जमुनी, नारायन भड़सर, भड़सर के 14 टोलों समेत अन्य गांव शामिल हैं। करीब दस हजार लोगों की कप्तानगंज ब्लॉक मुख्यालय से दूरी अब पांच किलोमीटर से घटकर एक किलोमीटर रह गई है।
कई दशक से इस जगह बांस का पुल था। टोले के लोग समय-समय पर मरम्मत करके इसे चलने लायक बनाए रखते थे। कई सांसदों-विधायकों तक ग्रामीणों ने फरियाद की पर सुनवाई नहीं हुई। राजनीतिक लोगों से उन्हें बस आश्वासन मिलते रहे। संतू रोज पुल पर जाते हैं। कोई टूट-फूट दिखे तो खुद ठीक करते हैं। क्षेत्रीय विधायक रामानंद बौद्ध का कहना है कि वह संतू प्रसाद को उनके प्रयास के लिए सम्मानित करेंगे।
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