कमला देवी को जानते हैं आप ? गूगल भी दे रहा है सलामी


देश को आज़ादी दिलाने की जब भी बात होती है तो लोगों के दिमाग में सिर्फ पुरुष स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों के ही नाम आते हैं लेकिन देश में ऐसी कई महिलाएं हुई हैं जिन्होंने हमें आज़ादी दिलाने के लिए बहुत संघर्ष किया। ऐसी ही एक महिला थीं कमाल देवी। एक महान समाज सुधारक और स्वतंत्रता संग्राम सेनानी कमाल देवी का जन्म आज ही के दिन यानि 3 अप्रैल 1903 को मैंगलोर, कर्नाटका में हुआ था।
कमलादेवी ने हमें सिर्फ अंग्रेज़ों की गुलामी से ही आज़ाद नहीं कराया बल्कि महिलाओं के लिए समाज के दिमाग में भरे न जाने कितने दकियानूसी विचारों से भी उन्होंने हज़ारों लोगों को आज़ाद कराया। लोगों के मन से रूढ़ियों और अंधविश्वासों को दूर करने के लिए उन्होंने अपना पूरा जीवन लगा दिया।
इसके अलावा कमला देवी ने हस्तशिल्प के विकास में विशेष योगदान दिया और को-आपरेटिव बनाकर उनके विस्तार को गति दी । कमला देवी का सम्मान कला और थियेटर के साथ-साथ सक्रिय राजनीति में भी था । उनकी इसी सोच ने उन्हें स्वतन्त्रता आन्दोलनों की ओर प्रेरित किया और उन्होंने जेल की सजा भी काटी। कमला देवी के इस योगदान के लिए उन्हें साल 1966 का मैग्सेसे पुरस्कार भी दिया गया।

नेशनल स्कूल ऑफ ड्रामा, संगीत नाटक अकादमी, सेंट्रल कॉटेज इंडस्ट्रीज एम्पोरियम और क्राफ्ट्स काउंसिल ऑफ इंडिया जैसे देश के कई संस्थान उनके विज़न की वजह से ही स्थापित हुए। उन्होंने हैंडीक्राफ्ट और सहकारिता से जुड़े ज़मीनी आंदोलन को शुरू किया जिससे लोगों का सामाजिक और आर्थिक दोनों ही तरह से विकास हो। हालांकि इसके लिए उन्हें कई मुश्किलों का भी सामना करना पड़ा लेकिन उन्होंने हिम्मत नहीं हारी।
1974 में उन्हें भारत की राष्ट्रीय संगीत, नृत्य और ड्रामा की अकादमी, संगीत नाटक अकादमी की तरफ से उसके सर्वोच्च पुरस्कार संगीत नाटक अकादमी फेलोशिप से सम्मानित किया गया। देश के हस्तशिल्प और हथकरघा क्षेत्र को एकीकृत करने और उसे राष्ट्रीय स्तर पर एक नई पहचान देने वाली कमलादेवी चट्टोपाध्याय को महात्मा गांधी बहुत मानते थे और इस निर्भीक स्वतंत्रता सेनानी को उन दिनों गांधी जी ने ‘सुप्रीम रोमांटिक हिरोइन’ का खिताब दिया था।
वह ब्राह्मण कुल में जन्मी थीं। कमला देवी के पिता अनन्त धारेश्वर मैंगलोर के जिला कलेक्टर थे और उनकी माँ गिरिजा कर्नाटक के एक राजसी घराने की संतान थीं। इनकी दादी स्वयं प्राचीन भारतीय दर्शन की बहुत अच्छी जानकार थीं। अच्छे परिवार में परवरिश होने के कारण वह स्वयं भी तर्कशील और स्वावलंबी थीं, जो उनके जीवन में आगे चलकर काम आया। उनका विद्रोही स्वभाव भी शुरू से दिखने लगा था । उन्होंने अपनी माँ की सम्पत्ति के बँटवारे में राजसी प्रवृत्तियों पर बचपन में ही प्रश्न उठाए थे । उन्हें अपने नौकरों और उनके बच्चों के साथ हिल-मिलकर खेलना तथा उनके जीवन को जानना अच्छा लगता था।

कमला देवी केवल सात वर्ष की थीं, जब उनके पिता की अचानक मृत्यु हो गई थी। वह मरने से पहले अपनी कोई वसीयत नहीं लिख गए थे, जिससे उनकी सारी सम्पत्ति उस समय के क़ानून के अनुसार उनके सौतेले बेटे को मिल गई थी और गिरिजादेवी को केवल मासिक भत्ते की स्वीकृति दी गई थी। इस मासिक भत्ते को गिरिजादेवी ने ठुकरा दिया था और निर्णय लिया था कि वह अपने दहेज में पिता के घर से प्राप्त सम्पत्ति से ही अपनी बेटियों का पालन-पोषण करेंगी।
कमलादेवी की पहली शादी 1917 में सिर्फ 12 वर्ष की उम्र में कृष्णा राव के साथ हो गई लेकिन दो साल बाद ही 1919 में उनकी मृत्यु हो गई लेकिन विधवा की तरह ज़िंदगी जीने के बजाय उन्होंने 1919 में ही सरोजिनी नायडू के छोटे भाई हरेन्द्र नाथ चट्टोपाध्याय के साथ दूसरी शादी कर ली। हालांकि इसका काफी विरोध हुआ लेकिन उन्होंने किसी की नहीं मानी लेकिन दोनों का स्वभाव न मिलने के कारण कुछ साल बाद उनका तलाक़ हो गया।
वह पहली ऐसी भारतीय महिला थीं, जिन्होंने 1920 के दशक में खुले राजनीतिक चुनाव में खड़े होने का साहस जुटाया था, वह भी ऐसे समय में जब बहुसंख्यक भारतीय महिलाओं को आज़ादी शब्द का अर्थ भी नहीं मालूम था। नमक क़ानून तोड़ने के मामले में बॉम्बे प्रेसीडेंसी में गिरफ्तार होने वाली वह पहली महिला थीं। स्वतंत्रता आंदोलन के दौरान वे चार बार जेल गईं और पांच साल तक सलाखों के पीछे रहीं।
1926 में उनकी मुलाक़ात ऑल इण्डिया वुमेन कॉफ्रेंस (AIWC) की संस्थापिका मार्गेट ई कौंसिन्स से हुई जिन्होंने इन्हें मद्रास प्राविंशियल लेजिस्लेटिव असेंबली में स्थान दिया । इस तरह वह भारत की पहली महिला बनीं जिन्हें सदन में लेजिस्लेटिव सीट (सवैधानिक सीट) मिली । प्रकृति की दीवानी कमला देवी ने 1927 में ‘ऑल इंडिया वीमेन्स कांफ्रेंस’की स्थापना की। बाद में धीरे-धीरे विकसित होकर यह एक राष्ट्रीय संगठन बन गया जिसकी शाखाएँ देश भर में बन गई ।
आजादी के बाद इन्हें वर्ष 1952 में ‘आल इंडिया हेंडीक्राफ्ट’ का प्रमुख नियुक्त किया गया। ग्रामीण इलाकों में उन्होंने घूम-घूम कर एक पारखी की तरह हस्तशिल्प और हथकरघा कलाओं का संग्रह किया। जब वह गांवों में जाती थीं, तो हस्तशिल्पी, बुनकर, जुलाहे, सुनार अपने सिर से पगड़ी उतार कर इनके कदमों में रख देते थे। इसी समुदाय ने उनके अथक और निःस्वार्थ मां के समान सेवा की भावना से प्रेरित होकर इनको ‘हथकरघा मां’ का नाम दिया था। 1962 में कमला देवी ने बंगलौर में नाट्य इन्टीट्यूट ऑफ कथक एण्ड कोरियोग्राफी शुरू किया ।
समाज सेवा के लिए भारत सरकर ने उन्हें नागरिक सम्मान ‘पद्म भूषण’ से वर्ष 1955 में सम्मानित किया। वर्ष 1987 में भारत सरकर ने अपने दूसरे सबसे बड़े नागरिक सम्मान ‘पद्म विभूषण’से सम्मानित किया। सामुदायिक नेतृत्व के लिए वर्ष 1966 में कमलादेवी को ‘रेमन मैग्सेसे’पुरस्कार दिया गया। संगीत नाटक अकादमी की द्वारा ‘फेलोशिप और रत्न सदस्य’ से सम्मानित किया गया। संगीत नाटक अकादमी के द्वारा ही वर्ष 1974 में उन्हें ‘लाइफटाइम अचीवेमेंट’ पुरस्कार भी प्रदान किया गया था। यूनेस्को ने वर्ष 1977 में हेंडीक्राफ्ट को बढ़ावा देने के लिए सम्मानित किया था। शान्ति निकेतन ने अपने सर्वोच्च सम्मान ‘देसिकोट्टम’ से सम्मानित किया। 29 अक्टूबर, 1988 को कमलादेवी का 88 वर्ष की आयु में देहांत हो गया।
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