'पहचान' से गरीब बच्चों को शिक्षा की पहचान देने का नाम है अफसाना
कौन कहता है कि आसमान में सुराख़ हो नहीं सकता,
एक पत्थर तो तबीयत से उछालो यारों...
शेर पुराना है, लेकिन मुंबई की रहने वाली अफसाना की जिंदगी पर सटीक बैठता है। मार्केटिंग की अच्छी खासी नौकरी छोड़कर गरीब बच्चों के लिए 'पहचान स्ट्रीट स्कूल' चलाने वाली अफसाना उन लोगों में से हैं जो किसी परिवर्तन के लिए दूसरों की पहल का इंतजार करने की बजाय खुद ही शुरुआत करने में यकीन रखती हैं। आज वे मुंबई, दिल्ली और बिहार में गरीब बच्चों के लिए सड़कों पर ही स्कूल चला रही हैं। उनकी यह पहल वर्तमान व्यवस्था के सकारात्मक परिवर्तन की दिशा में एक उम्मीद की किरण की तरह है।
अशिक्षा ही अपराध का कारण
अपने स्कूल की शुरुआत के बारे में अफसाना बताती हैं कि दिल्ली के निर्भया कांड ने मेरी जिंदगी का मकसद बदल दिया। उस दर्दनाक घटना ने मुझे अंदर तक हिला दिया। मेरी तीन बहनें उस समय दिल्ली में रह रही थीं। रोजाना मुझे एक ही बात खौफजदा करती थी कि अब अगला निशाना कौन। क्योंकि आमतौर पर रेप जैसे अपराध के बाद लोग पीड़ित की ही गलती बताते हैं। हालांकि, कुछ समझदार लोग अपराध के खिलाफ भी आवाज उठाते हैं।
मगर, कितने लोग ऐसे होंगे जो इन अपराधों को रोकने के लिए कदम उठाते हैं। इन्हीं सब हालात को देख कर मुझे एहसास हुआ किया कि किसी को तो शुरुआत करनी ही होगी। अफसाना का मानना है कि ज्यादातर अपराधों का कारण अशिक्षा ही है, इसलिए अगर हम शुरुआत से ही बच्चों को अपराध और उसके बाद के दुष्परिणामों के प्रति जागरूक करेंगे तो काफी हद तक स्थितियां खराब होने से रोकी जा सकती हैं।
समय के साथ आया बदलाव
अफसाना के मुताबिक, इस समय मुंबई, दिल्ली और बिहार में पहचान स्कूल चल रहे हैं और जल्द ही यह एक गैर सरकारी संस्था की तरह काम करना शुरू कर देगी। वह बताती हैं कि फिलहाल शाम 7 से 9 बजे तक स्कूल चल रहे हैं। स्कूल की शुरुआत एक पुल के नीचे कुछ बच्चों को पढ़ाने से की थी। धीरे-धीरे इस सकारात्मक असर भी दिखने लगा। उन्होंने बताया कि पहले बस्तियों के लोग उनके सामने ही लड़ाई-झगड़ा करते व शराब पिया करते थे, लेकिन समय के साथ यह सब लगभग बंद हो गया।
युवा भी दे रहे सहयोग
वह बताती हैं कि मुझे अपने इस काम में युवाओं का जबरदस्त सहयोग मिल रहा है। समाज के लिए कुछ करने के जज्बे के लबरेज युवा अपनी नौकरी व अन्य कार्यों के साथ बच्चों को पढ़ाने के लिए लगातार समय देते हैं। इतना ही नहीं कई रिटायर्ड लोग भी टीवी देखने की बजाय हमारे साथ बच्चों का भविष्य बनाने में जुटे हैं। तीन वर्षों से चल रहे 'पहचान' में हर कोई अपनी क्षमता के हिसाब से बच्चों को पढ़ा रहा है।
छह वर्षीय धर्मेंद्र सिंह नाम के बच्चे के बारे में अफसाना बताती हैं कि उसकी मां का दो वर्ष पहले देहांत हो गया था और पिता टीबी से ग्रसित थे। आर्थिक तंगी के चलते उसे 10 हजार रुपये में बेचने जा रहे थे, लेकिन मेरे प्रयास वह बच गया। इसके बाद उसके पिता का मुझ पर इतना अधिक भरोसा हो गया कि कहने लगे कि टीचर (अफसाना) मेरे बेटे के लिए जो करेंगी वो ठीक ही होगा। बाद में धर्मेंद्र का बोर्डिंग में एडमिशन हो गया, लेकिन दुर्भाग्य से इसके दो दिन बाद ही उसके पिता का देहांत हो गया। अब कानूनी तौर से मैं ही उसकी अभिभावक हूं। वह आम लोगों से अपील करती हैं कि अगर अपने व्यस्त दिनचर्या से ऐसे बच्चों को सिर्फ दो घंटे भी दे दिए जाएं तो काफी बदलाव आ सकता है।
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