पुणे के स्टूडेंट्स की अनोखी मुहिम, दूसरे छात्रों के लिए कर रहे ये काम
पिछले पांच साल में महाराष्ट्र कई बार भयंकर सूखे की मार झेल चुका है। इसमें से 40 प्रतिशत सूखा मराठवाड़ा बेल्ट में पड़ा है। पिछले साल इस क्षेत्र के बीड़ जिले में आधी से भी कम बारिश हुई। यहां की स्थिति इतनी बुरी है कि किसान अपने बच्चों को पढ़ने के लिए मुंबई और पुणे जैसे शहरों में भेजने के बारे में सोच भी नहीं पा रहे। कुछ किसान हैं जो बच्चों के बेहतर भविष्य के लिए उन्हें बाहर भेज रहे हैं लेकिन उनके सामने भी कई चुनौतियां हैं।
स्वपनिल पवार की मां भी उनमें से एक हैं। हर सुबह पर बीड़ में अपने कपास के खेत में जाती हैं। तेज धूप में वहां काम करती हैं। सूरज उनकी सारी ऊर्जा खींच लेता है, लेकिन वह हार नहीं मानतीं और लगातार काम करती रहती हैं, क्योंकि अगर उन्होंने ऐसा न किया तो पुणे में पढ़ रहे उनके बच्चे को भूखे पेट सोना पड़ेगा। यह सिर्फ एक घर की कहानी नहीं है। महाराष्ट्र में कई परिवारों का यही हाल है। यहां के बच्चे बेहतर भविष्य की चाह में बड़े शहरों में जाते हैं और बच्चे व मां-बाप मिलकर जी जान से कोशिश करते हैं कि वे इन बड़े शहरों की महंगाई झेल सकें। इन छात्रों के दुख को दूसरे छात्रों से बेहतर कौन समझ सकता है।
यह भी पढ़ें : पुणे के दो लोगों ने किया कमाल, पुरानी बसों को लेडीज टॉयलेट में किया तब्दील
ऐसे बच्चों की मुश्किलें कुछ कम हो सकें, इसलिए यहां के कुछ छात्रों ने मिलकर एक ऐसा ग्रुप बनाया है जो इन बच्चों के खाने का इंतजाम करता है। स्टूडेंट हेल्पिंग हैंड (एसएचएच) नाम का यह ग्रुप कुछ बच्चों की फीस, बस पास और हॉस्टल फीस का भी जुगाड़ करता है। फरगुसन कॉलेज में कक्षा 11 में पढ़ने वाले स्वपनिल पवार पुणे मिरर से बात करते हुए कहते हैं, मुझे इस मुहिम के बारे में अपने एक दोस्त से पता चला और मुझे खुशी है कि इनकी वजह से मुझे खाना मिल रहा है। मेरी मां कपास के खेत में काम करती हैं और जितने पैसे वो कमाती हैं सब मुझे भेज देती हैं। मैं उन्हें ये कहते वक्त बहुत ज्यादा खुश था कि अब वह मुझे मेस के पैसे न भेजें, पुणे में मेरे दोस्त इसका खर्चा उठा रहे हैं।
एसएचएच की शुरुआत 2015 में हुई थी। उस वक्त वहां बहुत बड़ा सूखा पड़ा और सूखे की मार झेल रहे परिवारों की मदद के लिए इसकी शुरुआत हुई थी। कुलदीप अंबेडकर, गणेश चवन और संध्या सोनवाने ने अपने कुछ जान-पहचानवालों से फंड इकट्ठा करके स्टूडेंट्स की मदद शुरू की। पुणे मिरर से बात करते हुए सोनवाने कहते हैं, मैं चार साल पहले शहर आया था और तब मैंने देखा कि महाराष्ट्र के गांवों से जो बच्चे शहर में पढ़ने आते है उन्हें कितनी मुश्किलों का सामना करना पड़ता है। इन बच्चों को दो वक्त का खाना खिलाने से ये महीने में अपने 2200 से 2400 रुपये तक बचा सकते हैं। फिलहाल ये संस्था 200 बच्चों को फ्री खाना उपलब्ध करा रही है।
यह भी पढ़ें:- छोटी बहन के खातिर की सांड से भिड़ गया था यह भाई, अब मिला वीरता पुरस्कार
इन बच्चों की मदद करने के लिए एसएचएच को कई लोग फंड करते हैं। हाल ही में एक व्यक्ति ने छह महीने तक बच्चों के रहने के लिए जगह मुफ्त में दी है। इस शख्स का शहर में 2 बीएचके फ्लैट खाली है जिसे उन्होंने इन बच्चों के लिए खाली कर दिया।
इस सेक्शन की और खबरें पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें
संबंधित खबरें
सोसाइटी से
अन्य खबरें
Loading next News...