ये है चलता-फिरता मल्टीप्लेक्स, देश के 14 राज्यों के गांवों में पहुंचा रहा सिनेमा
एंटरटेनमेंट के लिए फिल्में ही हमारे पास सबसे सस्ता, सुलभ और अच्छा साधन हैं। वो फिल्में ही हैं जो उम्र, संस्कृति, धर्म और पसंद-नापसंद की बेड़ियों को तोड़कर हमें एक अलग दुनिया में ले जाती हैं। शायद इसीलिए दुनियाभर में लोग फिल्में बनाने से लेकर उन्हें देखने तक में इतना रुपया खर्च करते हैं।
धीमी रोशनी में, बेहतरीन पर्दे पर फिल्में देखना शायद हर किसी का शौक होता है। शहरों में तो लोगों का ये शौक पूरा हो जाता है लेकिन हमारे गांवों में अभी भी लोग इसका मजा नहीं ले पा रहे। रोटी, कपड़ा और मकान लोगों के लिए जरूरी हो सकता है, लेकिन एंटरटेनमेंट के बिना जिंदगी नहीं चलती, ये मानना है पेशे से इंजीनियर सुशील चौधरी का। और अपनी इसी सोच से लोगों के गांव के लोगों को शहर वाले मल्टीप्लेक्स में फिल्म दिखाने के लिए उन्होंने शुरू किया 'पिक्चर टाइम'।
ताकि गांव वालों को भी मिले मल्टीप्लेक्स का मजा
इंडियावेव से बात करते हुए सुशील चौधरी बताते हैं कि मेरे पापा का गांव यूपी के शहर इटावा के पास है और नानी का घर का घर फैजाबाद के पास। इन दोनों ही जगहों पर कोई अच्छा सिनेमा हॉल नहीं हुआ करता था। मेरे पापा आर्मी में थे तो मैं जबलपुर, पुणे के भी कुछ इलाकों में रहा। मेरा वहां का एक्सपीरियंस भी अच्छा नहीं था। वह कहते हैं कि साल 2000 में मैं टेक्नोलॉजी एन्टरप्रेन्योर बना और इसके बाद अमेरिका चला गया। 2012-13 में मैं वहां से जब वापस आया तब मुझे लगा कि कुछ नया करना चाहिए। इसके बाद मैंने एंटरटेनमेंट और रूरल इंडिया पर रिसर्च करना शुरू किया और इससे रिलेटेड प्रोजेक्ट शुरू करने के बारे में सोचा। यहीं से मेरे दिमाग में 'पिक्चर टाइम' का ख्याल आया।
2015 में शुरू हुआ पिक्चर टाइम, मोबाइल मूवी थिएटर के जरिए फिल्मों को भारत के सुदूर इलाकों तक पहुंचा रहा है। सुशील चौधरी बताते हैं कि केबल टीवी और डिजिटल रिवॉल्यूशन ने यकीनन भारत में सिनेमा के क्रेज को कम किया है लेकिन इसके पीछे का बड़ा कारण ये भी है कि छोटे शहरों और कस्बों के सिनेमा मालिकों ने बदलते समय के साथ खुद को नहीं बदला। मल्टीप्लेक्स ने मेट्रो और मिनी मेट्रो शहरों में अपना अच्छा खासा बाजार बना लिया लेकिन गांव और कस्बाई क्षेत्रों से इसकी पहुंच काफी दूर रही। वह कहते हैं कि मैं एक ऐसा प्लेटफॉर्म बनाना चाहता था जो मल्टीप्लेक्स में फिल्म देखने वाला मजा दे सके, पोर्टेबल हो, बाजार से स्वतंत्र हो और नई से नई फिल्में दिखा सके। पिक्चर टाइम यही है, गांव-कस्बों में मल्टीप्लेक्स का मजा लेने का परफेक्ट सल्यूशन।
सस्ती है टिकट की कीमत
कई लोगों के लिए मल्टीप्लेक्स में फिल्म देखना काफी लक्जरी होता है। एक तो इसका टिकट महंगा होता है, दूसरा उन्हें इसके लिए काफी लंबी दूरी तय करके भी जाना होता है, लेकिन सुशील चौधरी के मोबाइल डिजिटल मूवी थिएटर पिक्चर टाइम में आपको अपने घर के पास ही डॉल्बी साउंड और एसी और बेहतरीन हॉल में फिल्म देखने को मिलेगी।
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इंडियावेव से बात करते हुए सुशील चौधरी बताते हैं कि पिक्चर टाइम में टिकट की कीमत सिर्फ 30 से 50 रुपये है और हम पॉपकॉर्न भी सिर्फ 15 रुपये में देते हैं। यानि 4 लोगों का एक परिवार ज्यादा से ज्यादा 300 रुपये में मल्टीप्लेक्स में एक फिल्म का मजा ले सकता है।
साभार - सुशील चौधरी
इस तरह करता है काम
ये थिएटर क्लाउड बेस्ड सॉफ्टवेयर पर काम करता है। इसकी अपनी एक मोबाइल ऐप है जहां ऑडियो और वीडियो रिव्यूज दिए जा सकते हैं, साथ ही इससे ऑनलाइन मोबाइल टिकट भी बुक किए जा सकते हैं।
हिमाचल से आंध्र तक का सफर
इस प्रोजेक्ट को पूरा करने के लिए सुशील और उनकी टीम ने उत्तर में हिमाचल प्रदेश से लेकर दक्षिण में आंध्र प्रदेश तक का सफर किया। सुशील चौधरी ने बताया कि पिक्चर टाइम ग्रामीण भारत के लोगों को दोहरा फायदा दे रही है। एक तो सिनेमा का बढ़िया एक्सपीरियंस और दूसरा सोशल मैसेजिंग और प्राइवेट एडवर्टाइजिंग का मौका। वह कहते हैं कि सतीश कौशिक और कुलमीत मक्कर जैसे फिल्म इंडस्ट्री के एक्सपर्ट्स के साथ टाइअप करने के बाद मुझे लग रहा है कि हम सही दिशा में जा रहे हैं।
सुशील चौधरी फिलहाल महाराष्ट्र, आंध्र प्रदेश, हिमाचल प्रदेश, तेलंगाना, असम, छत्तीसगढ़, झारखंड, मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश, बिहार, राजस्थान जैसे 14 राज्यों में ये काम कर रहे हैं। इसके बाद अरुणाचल प्रदेश और मेघालय में भी जल्द ही इस प्रोजेक्ट की शुरुआत करने वाले हैं। वह कहते हैं कि हम इन राज्यों के टियर - 3 शहरों में हर दिन 4 शो चलाते हैं और सिनेमा प्रोजेक्शन के लिए 2k, ई-सिनेमा प्रोजेक्टर्स व क्यूब/UFO सर्वर्स का इस्तेमाल करते हैं।
मोबाइल थिएटर कैसे काम करते हैं इस बारे में बात करते हुए वह बताते हैं, ''लगभग ढाई घंटे में मोबाइल डिजिप्लेक्स सिनेमा थिएटर पूरे सीटिंग अरेंजमेंट और हाई डेफिनिशन डिजिटल प्रोजेक्टर्स व 5.1 डॉल्बी सराउंड के साथ पूरी तरह काम करने के लिए तैयार हो जाता है और पूरा थिएटर खोलकर एक ट्रक में फिट भी हो जाता है।
सोशल अवेयरनेस का भी कर रहा काम
मनोरंजन के लिए शुरू किया गया पिक्चर टाइम अब लोगों को शिक्षित करने का भी काम कर रहा है। खूबसूरत सा एसी मोबाइल थिएटर लोगों को खूब अट्रैक्ट करता है और चौधरी लोगों की इसी बात को ग्रामीणों में सामाजिक जागरूकता लाने के लाने के लिए इस्तेमाल करते हैं।
वह कहते हैं हमारा उद्देश्य तकनीक का इस्तेमाल करके लोगों को सिर्फ मनोरंजन देना ही नहीं है बल्कि हमारे मोबाइल डिजिप्लेक्स सिनेमा थिएटर के जरिएए हमें शिक्षा और सरकारी योजनाओं की जानकारी भी गांव-गांव पहुंचानी है, ताकि हम डिजिटल इंडिया, स्किल इंडिया और स्वच्छ भारत अभियान से सही मायनों में जुड़ सकें।
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वह कहते हैं कि इस फाइनेंशियल ईयर में हमारा उद्देश्य 120 यूनिट्स लगाने का है और मुझे पूरी उम्मीद है कि अगले तीन साल में हम 3000 यूनिट्स चलाएंगे।
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