जयपुर शहर का रामगंज मोहल्ला इस पूरे देश में चर्चा का विषय बना हुआ है। इसी मोहल्ले में रविवार को एक साथ 24 घंटे के अंदर ही 39 लोग कोरोना पॉजिटिव पाए गए। अब तक जयपुर में मिले कुल 110 मामलों में से 100 अकेले रामगंज क्षेत्र के हैं। यहां पर एक साथ में इतने सारे लोगों की पुष्टि होने के बाद अब राज्य सरकार की चिताएं बढ़ गई हैं। राजस्थान में रामगंज कोरोना का नया हॉट स्पॉट बन गया है। अब यहां पर भी भीलवाड़ा के तरीके से ही जंग लड़ने की तैयारी है। कहा जा रहा है कि रामगंज की ऐसी बनावट है कि एक-एक घर में बड़ी संख्या में लोग रहते हैं। ऐसे में यहां पर सोशल डिस्टेन्सिंग को मेंटेन कराने में समस्या आ रही है। इस इलाके में एक बिल्डिंग में 20 से 25 लोग रहते हैं। बीते कई दिनों से यहां पर सन्नाटा पसरा हुआ है। ऐसा लगता है जैसे रामगंज की जिंदगी थम गई है।
इन दिनों चर्चा में चल रहे रामगंज को साहित्य और संगीत का घर भी कहा जाता है। यह वो इलाका है जहां गजल और शायरी की एक से बढ़कर एक शख्सियत हुई हैं, जिन्होंने इस शहर को एक पहचान दी है। रामगंज में फिल्मी दुनिया के मशहूर गीतकार इकबाल हुसैन उर्फ हसरत जयपुरी का जन्म हुआ। यही पर देश और दुनिया में अपनी शायरी का जादू चलाने वाले शमीम जयपुरी भी पैदा हुए। यही नहीं, यही की गलियों में अंतरराष्ट्रीय स्तर के गजल गायक उस्ताद अहमद हुसैन, उस्ताद मोहम्मद हुसैन और मशहूर कव्वाल साबरी बंधु भी रहते हैं। कोरोना की वजह से यह लोग भी अपने घरों में कैद हैं।
रामगंज की गलियों का दीवाना
‘सौ साल पहले, मुझे तुमसे प्यार था, आज भी है और कल भी रहेगा…,’ ‘जाने कहां गए वो दिन, कहते थे तेरी राह में नजरों को हम बिछाएंगे…’ जैसे मशहूर गीत लिखकर कई दशक तक फिल्मी दुनिया में जयपुर का नाम रौशन करने वाले गीतकार और शायर हसरत जयपुरी का जन्म रामगंज में ही हुआ था। 15 अप्रैल, 1918 को जन्मे इकबाल हुसैन उर्फ हसरत जयपुरी को शायरी विरासत में मिली थी। उनके नाना फिदा हुसैन मशहूर शायर थे। हसरत जयपुरी यहीं घोड़ा निकास की फिरदौस मंजिल में बैठकर कभी अपनी माशूका की याद में शब्दों को फिरोया करते थे। हसरत जयपुरी इस शहर से बहुत प्यार करते थे, उन्होंने जयपुर पर भी एक गजल लिखी है, जिसे उस्ताद अहमद हुसैन, मोहम्मद हुसैन ने सुर दिया- ‘मुसाफिर हैं हम तो चले जा रहे हैं/ बड़ा ही सुहाना गजल का सफर है/ पता पूछते हो तो इतना पता है/ हमारा ठिकाना गुलाबी नगर है।’
शमीम जयपुरी को जयपुर से थी बेहद मोहब्बत
शायरी का वह बड़ा चेहरा जिसे रास नहीं आई मुम्बई और वह फिर अपने शहर वापस जयपुर आ गया। जी हां, फिल्म जगत में जयपुर से दो गीतकार हुए हैं, एक हसरत जयपुरी और दूसरे शमीम जयपुरी। इन दोनों ही शायरों ने जयपुर के सम्मान में अपने नाम के आगे जयपुरी लगा लिया। रामगंज के ‘नीलगरों के नाले’ के पास में रहने वाले शमीम जयपुरी का वास्तविक नाम फहीमुल हसन था। बाद में वह मेरठ चले गए और यहां पर उन्हें जिगर मुरादाबादी और तस्कीन कुरैशी का साथ मिला। शायद बहुत कम लोग जानते होंगे कि 1960 में आई ‘दिल भी तेरा हम भी तेरे’ फिल्म के सदाबहार गीतों को शब्दों में शमीम जयपुरी ने ही पिरोया था। ऐसा कहा जाता है उन्हें फिल्म इंडस्ट्री के तौर तरीके रास नहीं आए और वह जल्दी ही लौट आए। फिल्मी दुनिया के जानकार बताते हैं कि बेगम अख्तर अपने साजिन्दों को शमीम जयपुरी की तरन्नुम सुना दिया करती थीं और कहती थीं कि इसी धुन पर आपको बजाना है। ऐसा कहा जाता है शमीम जयपुरी की गजलों में जिगर मुरादाबादी की क्लासिक थी और तस्कीन कुरैशी का अंदाज था। शमीम मुशायरों के बड़े लोकप्रिय शायर माने जाते थे। वो खुद ही तरन्नुम में अपनी गजल पढ़ते थे। शमीम अपने नाम के साथ में ‘खाक पाए तस्कीन ओ जिगर’ (यानी तस्कीन और जिगर के पैरों की धूल) लिख कर फख्र महसूस करते थे।
गालिब के भाई का सुसराल रहा रामगंज
मिर्जा गालिब के भाई यूसुफ का ससुराल भी जयपुर के रामगंज में थी। यूसुफ अपने परिवार के साथ में रामगंज में ही रहते थे। उनके भाई का जब इंतकाल हुआ था, उस समय गालिब चाहकर भी दिल्ली से जयपुर नहीं आ पाए थे। दिल्ली शहर में भी उस समय वर्तमान जैसे ही हालात थे। भाई के जनाजे में न पहुंच पाने पर गालिब ने कहा था, ‘मेरा अकेला दीवाना भाई मर गया। उसके बच्चे, बीवी जयपुर में पड़े थे। भतीजी क्या कहती होगी कि मेरा भी कोई चाचा होता है। इस मुसीबत की ताब लाने को जिगर चाहिए था। मैं इसके सिवा कर भी क्या सकता था कि अपने छोटे भाई के लिए खुदा से दुआ करूं।’ उस समय दिल्ली पर अंग्रेजों के कब्जा करने के बाद हालात सामान्य नहीं थे।
साबरी बंधु भी कर्फ्यू की वजह से घर में कैद
रामगंज के कर्फ्यूग्रस्त इलाके में अंतरराष्ट्रीय स्तर के गजल गायक उस्ताद अहमद हुसैन, उस्ताद मोहम्मद हुसैन और मशहूर कव्वाल साबरी बंधु भी रहते हैं। रामगंज में राचौकड़ी गंगापोल में साबरी बंधुओं के मुखिया सईद साबरी परिवार के साथ रहते हैं। सईद साबरी ने ही अपने पुत्र फरीद साबरी और लता मंगेशकर के साथ में मिलकर ‘हिना’ फिल्म के लिए कव्वाली ‘देर न हो जाए कहीं देर न हो जाए…’ पेश की थी। देश और दुनिया में कव्वाली करने वाले साबरी बंधु को इन दिनों कोरोना ने घर में कैद रहने को मजबूर कर दिया है। इन दिनों वह भी सन्नाटे में बैठे हुए अपने परिवार के बच्चों को संगीत सिखा रहे हैं। सईद साबरी से संगीत की शिक्षा लेने के लिए पहले मोहल्ले के बच्चे आते थे, लेकिन अब कर्फ्यू की वजह से सब थम गया है। सईद साबरी ने बच्चों की खातिर नई धुन बनाई है, जिसमें वह गाते हैं ‘राम नाम रटते रहो जब तक घट में प्राण।’ बता दें सईद साबरी अपने कार्यक्रमों में मंच से यह गाते भी रहे हैं- ‘हाथों में गीता रखेंगे, सीने में कुरान रखेंगे मेल बढ़ाए जो आपस में, वही धर्म ईमान रखेंगे।’
उस्ताद अहमद हुसैन पढ़ रहे किताबें
रामगंज मोहल्ले में ही आमेर रोड पर उस्ताद अहमद हुसैन और उस्ताद मोहम्मद हुसैन का आशियाना है। कव्वाली से लेकर शास्त्रीयता पर आधारित गजल गायन का एक नया अंदाज पेश करने वाले हुसैन बंधुओं के सुर के बहुत लोग दीवाने हैं। दोनों ही भाइयों से समानांतर निकलने वाले सुरों का जादू श्रोताओं पर सिर चढ़कर बोलता है। कोरोना की वजह से आजकल दोनों भाई किताबों के बीच में अपनी जिंदगी बीता रहे हैं। उस्ताद अहमद हुसैन कहते हैं- ‘कोरोना की वजह से अब घर में ही रहना पड़ रहा है। पहले किसी काम के लिए वक्त निकालना पड़ता था, अब वक्त खुद चल कर आ गया है। जिन किताबों को पढ़ने के लिए पहले समय नहीं मिलता था, उनको भी पढ़ डाला है। यही नहीं, दो नई कंपोजीशन भी बनाई हैं।’ बता दें कि हुसैन बंधुओं ने यश चोपड़ा की फिल्म ‘वीर जारा’ में ‘आया तेरे दर पे दीवाना’ कव्वाली गाई थी।