अमरूद की खेती में मुनाफ़ा देख इंजीनियरिंग का कॅरियर छोड़ बने किसान

हरियाणा के जिंद जिले में रहने वाले नीरज ढांडा ने सॉफ्टवेयर इंजीनियर की शानदार लाइफ स्टाइल को छोड़ बन गए अमरूद के किसान। छत्तीसगढ़ के रायपुर जिले में बनी वीएनआर नर्सरी पहुंचे नीरज ढांडा भी नहीं जानते थे कि उस दिन उनकी जिंदगी ही बदलने वाली है। वहां उन्होंने जंबो अमरूद का उत्पादन देखा और सॉफ्टवेयर इंजीनियर का शानदार कॅरियर छोड़ने का फैसला कर लिया।
बचपन से थी खेती में दिलचस्पी
हरियाणा के जिंद जिले में संगतपुरा गांव में एक किसान परिवार में जन्मे नीरज भले ही इंजीनियर बन गए हों मगर उनकी चाह कुछ और करने की थी। वह अपना काम करना चाहते थे। हालांकि, उनके परिवार का कोई भी सदस्य यह नहीं चाहता था कि वह किसान बनें। मगर उनके परिवार के लोग बताते हैं कि नीरज बचपन से ही खेती करने की इच्छा रखते थे।
नीरज ने कम्प्यूटर इंजीनियर बनने के बाद सॉफ्टवेयर डेवलपर की नौकरी कर ली। वह नौकरी करने के लिए गुड़गांव और फरीदाबाद में शिफ्ट भी हो गए। हालांकि, उनके घर में कोई नहीं चाहता था कि वह पूर्ण कालिक किसान बनने की राह पर चलें। इसीलिए नीरज न चाहते हुए भी बेमन से नौकरी करते रहे। इसी कारण उन्हें अपने सॉफ्टवेयर डेवलपर के काम में नुकसान भी उठाना पड़ा। यह साल 2004 का समय था। उसके बाद उन्होंने यह तय कर लिया कि अब वे सिर्फ वही काम करेंगे जिसमें उनका दिल लगेगा।
ऑर्गेनिक खेती को दिया बढ़ावा
इसके कुछ दिनों के बाद ही उन्होंने दाल और सब्जी की खेती करनी शुरू कर दी। यही नहीं अपने फार्म पर उन्होंने इलाहाबाद के सफेदा अमरूद की खेती करनी भी शुरू कर दी। चूंकि वह ऑर्गेनिक तरीके से खेती करने पर जोर दे रहे थे इसीलिए उनकी फसल को बाजार में लोगों ने काफी पसंद किया। इससे उनकी हिम्मत बढ़ती गई। हालांकि, जब वह बाजार में अपनी फसल को लेकर पहुंचे तो उन्होंने पाया कि एक किसान को अपनी चीजों का दाम तय करने का अधिकार ही नहीं है। खासकर, सब्जी और फलों के बाजार में।

फिर तय करने लगे अपना दाम
इसके बाद नीरज ने फैसला किया कि वह अपने अमरूदों का दाम खुद तय करेंगे और इसके लिए उन्होंने 15 रुपये प्रति किग्रा का भाव निर्धारित कर दिया। हालांकि, शुरुआत में दलालों ने उन्हें काफी परेशान करने की कोशिश की। इसके बाद भी वे अपने फैसले पर टिके रहे और उन्होंने अपना बाजार बना लिया। धीरे-धीरे उन्होंने बाजार को समझते हुए अपने फलों को सही तरह से बेचना शुरू कर दिया। अब उनके पास छह किसान हैं। वे उनके साथ मिलकर ऑर्गेनिक खेती से अपनी जिंदगी को नई दिशा दे रहे हैं।
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