जज्बे की मिसाल हैं 83 साल की नर्मदाबेन, आपको भी मिलेगी प्रेरणा

83 साल की नर्मदाबेन हर सुबह 6 बजे उठती हैं और 2-3 किलो सब्जियां काटती हैं। इसके बाद इतनी दाल, सब्जी और चावल बनाती हैं कि 300 लोगों का पेट भरा जा सके। इसे बनाने के बाद वह सफाई से कंटेनर्स में इन्हें पैक करती हैं और इसके बाद वड़ोदरा के सयाजी हॉस्पिटल में अपने रिश्तेदारों और मरीजों के लिए वैन से ये खाना ले जाती हैं। नर्मदाबेन अस्पताल में उन लोगों को मुफ्त खाना खिलाती हैं जिनके पास इतने पैसे नहीं होते कि वो इलाज कराने के साथ ठीक-ठाक खाना भी खा सकें।
कहते हैं कि अगर दिल में कुछ अच्छा करने का जज्बा हो और इरादे मजबूत हों, तो चुनौती कोई भी हो, पर आपका रास्ता नहीं रोक सकती और कई बार दूसरों के लिए प्रेरणा बन जाते हैं। गुजरात के वडोदरा की रहने वाली नर्मदाबेन पटेल भी दूसरों के लिए प्रेरणा बन गई हैं। 83 साल की उम्र में वह जिस तरह गरीबों को खाना खिलाने का काम कर रही हैं वो युवाओं के लिए भी जज्बे की मिसाल की तरह है। साल 1990 में अपने पति रामदास भगत के साथ मिलकर उन्होंने ‘राम भरोसे अन्नशेत्रा’ पहल की शुरुआत की थी।

इस पहल के जरिये उन्होंने शहर में जरुरतमंदों को मुफ़्त खाना खिलाना शुरू किया। ourvadodara से बात करते हुए नर्मदा बेन बताती हैं, “मेरे पति यह शुरू करना चाहते थे। शुरुआत में हम खाना बनाकर स्कूटर पर बांटने जाते थे। वह स्कूटर चलाते थे और मैं उनके पीछे खाना पकड़ कर बैठती थी। फिर खाने के लिए काफी लोगों ने आना शुरू कर दिया और इसलिए हमने ऑटो-रिक्शा में जाना शुरू किया।”
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इसके बाद, ये संस्था बहुत तेजी से आगे बढ़ी। आस-पास के लोग उनके काम से प्रभावित हुए और इस काम में उनकी मदद करने लगे। इसके बाद नर्मदाबेन ने एक वैन किराए पर ले ली। इस प्रोजेक्ट का नाम है, राम भरोसे। ऐसा इसलिए क्योंकि आजतक इस काम के लिए किसी से मदद मांगने की जरूरत नहीं पड़ी। जो चाहता है, वह खुद ही मदद करने आ जाता है।
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जब आप नर्मदाबेन के घर में घुसेंगे तो आपको पूर्व राष्ट्रपति डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से मिले हुए सर्टिफिकेट्स और सम्मान दिखेंगे। इसके अलावा उन्हें और भी कई लोगों और संस्थाओं ने सम्मानित किया है। वह कहती हैं, “साल 2001 में मेरे पति अस्पताल में थे और वेंटीलेटर पर थे। डॉक्टर ने कहा कि वे ज्यादा नहीं जी सकते और इसलिए बेहतर है कि हम वेंटीलेटर हटा दें। पर उस समय, सबसे पहले मैं वैन में खाना रखकर जरूरतमंदों को खिलाने के लिए गयी, क्योंकि मुझे पता था कि सभी लोग मेरा इन्तजार कर रहे होंगे। इसलिए मैंने डॉक्टर से कहा कि मेरे आने तक का इन्तजार करें,” नर्मदा बेन ने बताया।

नर्मदाबेन सब्जी काटने से लेकर खाना बनाने तक हर काम खुद ही करती हैं। उनकी रसोई की दीवारों पर आपको भगवान की तस्वीरें लगी दिखेंगी। वह उनकी तरफ देखते हुए कहती हैं, इस काम को करते हुए न तो आजतक कभी मेरी उंगली कटी और न मैं कभी जली, क्योंकि भगवान मुझे ऊपर से देख रहे हैं। हर रविवार वह अस्पताल में नई मांओं के लिए शीरा बनाकर ले जाती हैं। क्योंकि हर परिवार में रविवार को कुछ खास बनता है इसलिए नर्मदाबेन भी इसदिन कुछ मीठा जरूर बनाती हैं।
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वह कहती हैं कि मेरे पति अगर सही होते तो वे भी मुझे यही करने के लिए कहते। अपने पति के जाने के बाद भी नर्मदा बेन इस काम को बाखूबी संभाल रही हैं। हर दिन ज्यादा से ज्यादा लोगों का पेट भरने के दृढ़-निश्चय के साथ वे उठती हैं। उनके चेहरे पर आपको हमेशा एक संतुष्टि-भारी मुस्कान मिलेगी, जो उन्हें यह काम करते हुए मिलती है।
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