आखिर मुस्लिम महिलाएं कब तक खुद को असहाय महसूस करेंगी

यूं तो दुनिया में महिलाओं का जीवन वैसे ही कठिनाई से भरा है। लेकिन अगर महिला मुस्लिम है, तो उसकी जिन्दगी की कठिनाइयां और बढ़ जाती हैं। मुस्लिम महिलाएं दुनिया के किसी भी कोने और समाज में रह रहीं हों, लेकिन वह खुद को अन्य महिलाओं के बराबर आजाद नहीं महसूस करती हैं।
लेकिन दुनिया भर की महिलाओं की स्थिति से कहीं बेहतर भारतीय मुस्लिम महिलाओं की है। लेकिन जब बात उनके संवैधानिक अधिकारों की होती है, तो उनका धर्म उनके आड़े आने लगता है। मौजूदा समय में ट्रिपल तलाक का मुद्दा किसी ज्वलंत उदाहरण से कम नहीं है।
शरिया कानून के तहत महिलाओं को कर दिया गया अधिकार विहीन
इसका सबसे बड़ा कारण शरिया कानून है, जिसके तहत मुस्लिम महिलाओं से सारे अधिकार छीन लिए गये हैं। इस आधुनिक युग में भी मुस्लिम महिलाओं को अपने अधिकार की लड़ाई लड़नी पड़ रही है। महिलाओं को तलाक के नाम पर गर्त में धकेलने का काम मुस्लिम समाज में हो रहा है। शरीयत के नियमों में कहीं भी मुस्लिम महिलाओं को आज़ादी नहीं मिली हुई है। एक पुरुष मुस्लिम एक झटके में तीन बार तलाक बोलकर महिला के जीवन को नर्क बनाकर आगे बढ़ लेता है।
इसके अलावा शरियत में निकाह हलाला सबसे घिनौना और पेचीदा काम है। हलाला में तलाकशुदा औरत को दोबारा पूर्व पति शादी करने से पहले किसी अन्य पुरुष के साथ शारीरिक संबंध बनाने पड़ते हैं। जो आधुनिक 21वीं सदी में किसी महिला के खिलाफ सबसे बड़ा कुकृत्य है।
शरिया के मुताबिक एक आम मुसलमान मर्द चार शादियां कर सकता है। लेकिन एक औरत बिना पति के मर्जी के दूसरी शादी नहीं कर सकती है। हालांकि कुरआन में एक मर्द को अपनी सभी बीबियों के साथ समान व्यवहार करने की बात लिखी हुई है। जो वास्तविकता में असंभव है।दुनिया के बाकी मुस्लिम देशों में तो महिलाओं के हालात बेहद बदतर हैं। जहां महिलाओं को धर्म के नाम पर बहुत सारे जुल्म का शिकार होना पड़ता है।
सऊदी अरब में बदतर है महिलाओं की जिंदगी
सऊदी अरब में महिलाएं कार नहीं चला सकती हैं। इसके अलावा उन्हें हमेशा बुर्कानशीं बनकर रहना पड़ता है। साथ ही वह बिना किसी पुरुष अभिवावक के बाहर नहीं जा सकती है। ये नियम सभी उम्र की महिलाओं पर लागू है। यही हाल इरान, सीरिया और अफगानिस्तान का भी है।
जहां महिलाओं के साथ घोर अन्याय हो रहा है। दुनिया के ज्यादातर मुस्लिम देशों में एक महिला के अनजान पुरुष से बात करने पर सजा देने का प्रावधान है। इसके पीछे धार्मिक आस्था का तर्क दिया जाता है और धर्म के ठेकेदार इसके लिए फतवा देने का काम करते रहते हैं।
यही नहीं खेलों में मुस्लिम पुरुष खिलाड़ी चलन में चल रहे आउटफिट पहन सकते हैं। जबकि महिला खिलाड़ी को हिजाब पहनकर ही खेलने की छूट है। आप दुनिया के किसी भी मुस्लिम देश की महिलाओं की बात करें वे अपने देश में बोझ मानी जाती हैं।
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