ताइक्वांडो में पदक जीतकर मां-बेटी ने बढ़ाया देश का मान

कुछ कर गुजरने की ना कोई उम्र होती है। ना ही किसी के कामयाबी के पीछे कोई किस्मत होती है। ऐसा कुछ कर दिखाया जमशेदपुर की शिल्पी दास ने। शिल्पी दास अपने 4 साल की बेटी को ताईकांडो सिखाने जाती थी लेकिन खुद बनी ताईकांडो की विशेषज्ञ। शिल्पी न सिर्फ ताईकांडो की विशेषज्ञ रही बल्कि ताईकांडो में इंटरनेशनल टूनामेंट में पदक भी जीती। साथ ही कई गोल्ड अब तक अपने नाम कर चुकी है। अब शिल्पी का मुख्य उद्येश्य है बच्चो को फ्री ट्रेनिंग दे कर महिलाओं को आत्मनिर्भर बनाना चाहती है।
मेहनत से बदल दी किस्मत
देश की आधी आबादी जो कि आज के दौर में किचन में या समाज की कुरीतियों का शिकार बनी और अपने को दबा कुचला महसूस कर रही है। मगर जमशेदपुर की एक मां ने जो कर दिखाया वो शायद जल्दी कोई नहीं कर सके। इस मां की लगन के साथ कुछ कर गुजरने की चाह ने समय की हर बाधा को पार करते हुए इतिहास बना दिया।
पदक जीतना था मकसद
भारत की गृहणियों के प्रेरणा स्रोत बनी चुकी शिल्पी दास ने 2 साल पहले अपने बेटे और बेटी के साथ ताईकांडो क्लब जा कर अपने बच्चो को अच्छी तालीम दिलाती थी। शिल्पी बहार बैठ कर ताईकांडो खेल देखा करती थी और फिर अपने परिवार के साथ जीवन जी घर का किचन संभालती थी मगर अपने दो घंटे का समय बर्बाद होता देख अपने बच्चो का प्रैक्टिस देखते हुए खुद भी बच्चों के साथ प्रैक्टिस करना शुरू कर दी। 2 साल की मेहनत के बाद इंटरनेशनल ताईकांडो टूनामेंट बैंकॉक में पदक जीत कर भारत का झंडा लहराई।
2 बच्चों की मां हैं शिल्पी
जमशेदपुर की शिल्पी दास दो बच्चों की मां हैं। 2 साल पहले तक खेल से उनका सिर्फ इतना नाता था कि वो बेटी को ट्रेनिंग दिलाने के लिए ताईक्वांडो क्लब जाती थीं। लेकिन अब शिल्पी खुद ताईक्वांडो की विशेषज्ञ खिलाड़ी हैं। एशियन ओपन ताईक्वांडो में गोल्ड मेडल जीत चुकी हैं। 30 साल की शिल्पी एक स्कूल में लड़कियों को सेल्फ डिफेंस भी सिखाती हैं।
मां ने कांस्य तो बेटी ने जीता स्वर्ण
ताईक्वांडो में एडवांस ब्लैक बेल्ट व अगले महीने में ब्लैक बेल्ट के लिए टेस्ट देनी की तैयारी कर रहीं, शिल्पी बताती हैं, कि ‘डेढ़ साल पहले तक मैं घर के काम करती। खेल से कोई जुड़ाव नहीं था। दिसंबर 2015 में चार साल की बेटी श्रीजिता को ताईक्वांडो सिखाने के लिए घर से 3 km दूर टेल्को रिक्रिएशन क्लब गई। वह ट्रेनिंग लेती और मैं उसे वापस घर ले जाने के लिए इंतजार करती। एक दिन सोचा कि जब इंतजार ही करना है तो क्यों मैं भी ताइक्वांडो सीखने लगूं। शुरुआत में बच्चों के साथ सीखने में कुछ अटपटा लगा, लेकिन जल्द ही सबसे घुलमिल गई। कुछ महीने सीखने के बाद टूर्नामेंट में हिस्सा लेने लगी। पहले जिला, फिर राज्य स्तरीय टूर्नामेंट जीतना शुरू किया और अब राष्ट्रीय ताइक्वांडो में ब्रॉन्ज जीता। जो कुछ समय बाद प. बंगाल के वर्धमान में पहली नेशनल कुंगफू चैंपियनशिप में और फिर कोलकाता में एशियन ओपन ताइक्वांडो में गोल्ड जीते। पिछले महीने इन्विटेशनल टूर्नामेंट में भाग लेने के लिए बैंकाक गई। वहां ब्रॉन्ज और बेटी ने अंडर 9 कैटेगरी में गोल्ड जीता। इस बीच मिक्स्ड बॉक्सिंग भी सीखना शुरू कर दिया। फिलहाल 40 छात्राओं को सेल्फ डिफेंस सिखा रही है।
सफलता का श्रेय गुरूदेव को
वही परिवार की गृहणी की कामयाबी पर सब लोग बहुत खुश हैं। शिल्पी के पति शिल्पी की इस कामयाबी पर गर्व कर रहे हैं। उन्होंने कहा कि बच्चो को सिखाने जाते-जाते मेरी बीवी पदक जीत ली और भारत का नाम रौशन कर दिया ये बहुत बड़ी बात है। इसके साथ ही शिल्पी इस कामयाबी के श्रेय अपने गुरु को देती है, जिन्होंने उन्हें बच्चों के साथ सिखने का मौका दी।
शिल्पी के गुरु सुनील प्रसाद बताते है की इस मां में प्रतिभा की कोई कमी नहीं है। कभी जो बैठ कर सिर्फ इस खेल को देखा करती थी और आज मास्टर बन चुकी है। इससे अनुमान लगाया जा सकता है की थोड़ा प्रोत्साहन दिया जाये तो ओलम्पिक जैसे खेल में हिस्सा ले सकती है और भारत का नाम रौशन कर सकती है।
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