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आज के समय में मेडिकल सेवाओं की जिस तरह मांग बढ़ती जा रही है, उसकी कीमतें भी आसमान छूने लगी हैं। इसे आप अर्थशास्त्र का सिद्धांत (मांग बढ़ने से कीमतों का बढ़ना) बता सकते हैं, लेकिन जीवन को बचाने के लिए जब इंसान के पास केवल पैसा ही विकल्प बन जाए तो यह समाज के लिए सबसे बड़ी विडंबना है।
आए दिन गरीब और मध्यम वर्ग के लोग पैसों की कमी की वजह से दम तोड़ रहे हैं। आपने भी अपने आस पास ऐसे कई उदाहरण देखे होंगे। अब सवाल ये उठता है कि इस सिस्टम से आप या हमने क्या सीखा? आम इंसान ऐसे मौकों पर उस जरूरतमंद की मदद कर देता है, ऐसा ही कुछ काम कर रहे हैं हैदराबाद के नामपल्ली के रहने वाले 43 साल के मोहम्मद शहजोर खान। शहजोर जो कर रहे हैं, वो सराहनीय है।
मोटरसाइकिल और कार का गैराज चलाने वाले 43 वर्षीय मोहम्मद शहजोर खान ने एक ऐसी एंबुलेंस बनाई है, जो बाइक से जुड़कर काम कर सकती है। इस बाइक एंबुलेंस को बनाने के पीछे जो कहानी है, वो शहजोर को हीरो बनाती है।
पिछले साल नवंबर में आंध्र प्रदेश में 53 साल के एक भिखारी रामुलू की स्टोरी खूब चर्चा में थी, जब रामुलू एंबुलेंस न मिलने पर अपनी पत्नी की लाश को ठेले पर लादकर 60 किलोमीटर तक ले गया था। उस समय किसी ने भी उसकी मदद नहीं की थी, हालांकि सोशल मीडिया में खबर वायरल होने के बाद में तमाम लोगों ने रामुलू के प्रति संवेदना प्रकट थी, लेकिन एक व्यक्ति ऐसा भी था जिसने संवेदना प्रकट करने के आगे भी सोचा और एक ऐसी एंबुलेंस बना दी जो बाइक के सहारे भी चल सकती है।
रामुलू और उसकी पत्नी कविता दोनों लेप्रोसी के मरीज थे और रोजी-रोटी चलाने के लिए भीख मांगकर अपना गुजारा करते थे। सही से इलाज न होने पर कविता ने हैदराबाद के लिंगामपल्ली रेलवे स्टेशन पर दम तोड़ दिया था। आंध्र प्रदेश के मेडक जिले के अपने पैतृक गांव में पत्नी का अंतिम संस्कार करने के लिए उसे गाड़ी की जरूरत थी, लेकिन पैसे न होने के कारण किसी ने उसकी मदद नहीं की। ऑटो वाले उससे 5,000 रुपए की मांग कर रहे थे, जबकि उसके पास हजार रुपये भी नहीं थे।
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इस घटना को सुनकर मोहम्मद शहजोर खान काफी दुखी हुए और उन्होंने कुछ करने के लिए ठान लिया। सिर्फ 335 दिनों में उन्होंने एक ऐसी एंबुलेंस बना डाली जो बाइक से जुड़कर काम कर सकती है। इस एंबुलेंस की लागत सिर्फ 1.10 लाख आई। हालांकि केबिन का खर्च ही लगभग 65 हजार आया। बाकी के पैसे एंबुलेंस के अन्य सामान खरीदने में लग गए। हीरो हॉन्डा सीडी डीलक्स बाइक से जुड़कर चलने वाली इस एंबुलेंस में वो सारी सुविधाएं हैं जो किसी आम एंबुलेंस में होती हैं। शहजोर ने कहा, 'रामुलू की पत्नी की खबर ने मुझे अंदर तक हिला दिया था और मैंने गरीबों की मदद करने के लिए इस एंबुलेंस को बनाया।'
शहजोर के पिता मॉडिफाइड बाइक बनाने में माहिर हैं। अपने पिता की विरासत को आगे बढ़ा रहे शहजोर ने दस लोगों की टीम के साथ मिलकर हीरो हॉन्डा बाइक से इस एंबुलेंस को जोड़ दिया है। इसमें एक वक्त पर बड़ी आसानी से एक मरीज को ले जाया जा सकता है। इसकी खास बात यह है कि भारी ट्रैफिक जाम में भी ये आसानी से निकल सकती है, जबकि नॉर्मल एंबुलेंस का निकलना काफी मुश्किल होता है।
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शहजोर खान बताते हैं, कि उन्हों इस बाइक एंबुलेंस का निर्माण भारतीय सड़कों को ध्यान में रखकर किया है। हालांकि कई सारे हॉस्पिटल और मेडिकल इंस्टीट्यूट्स ने पहले ही शहजोर को इस मॉडल के लिए अप्रोच किया, लेकिन उन्होंने सभी को मना कर दिया क्योंकि वह इसका व्यवसायिक इस्तेमाल नहीं चाहते हैं। वह गरीबों की मुफ्त में मदद करना चाहते हैं। फिलहाल मोहम्मद शहजोर खान इस बाइक को सिर्फ ग्रामीण इलाकों में मेडिकल सेंटर के लिए उपलब्ध करवाना चाहते हैं। उन्होंने कहा कि उन्हें ये भला काम करने की प्रेरण उनके पिता से मिली जो 1975 से विकलांगो के लिए मोडिफाइड बाइक बनाने का काम कर रहे हैं।