अमेरिका से लौटकर आईं माया बनी ‘पैडवूमेन’

अमेरिका से शोध कार्य पूरा करने के बाद भारत लौटकर महिलाओं को जागरूक करने की माया विश्वकर्मा ने ठानी और महिलाओं के प्रति अपना जीवन समर्पित कर दिया। एमपी में माया को पैड वूमेन के नाम से भी जाना जाता है। इसका प्रमुख कारण यह है कि माया ने उन महिलाओं को जागरूक करने की ठानी है, जिन महिलाओं ने पैड के बारे में सुना ही नहीं है। माया विश्वकर्मा ने अमेरिका से लौटकर नरसिंहपुर के एक छोटे से गांव में सैनेटरी पैड बनाने की फैक्ट्री डाली है और महिलाओं की मदद से सेनेटरी पैड भी बनाने शुरू कर दिए हैं। मकसद एक ही है पीरियड्स और इससे जुड़ी अन्य समस्याओं के प्रति ग्रामीण महिलाओं को जागरूक करना। शोध को पूरा करके भारत आईं माया ने महिलाओं के प्रति अपना जीवन समर्पित करने की ठान ली और आज इनकी चर्चा पूरे देश में हो रही है।
महिलाओं की स्थिति देख हो गई थी माया विचलित
माया ने यूनिवर्सिटी ऑफ कैलिफोर्निया, सैन फ्रांसिस्को में ब्लड कैंसर पर शोध कार्य किया है। इसके बाद जब वह भारत लौटीं तो उन्होंने आप पार्टी ज्वाइन कर ली और नरसिंहपुर पहुंचकर काम करना शुरू किया। यहां पर उन्होंने महिलाओं को ऐसी स्थिति में देखा जहां लोगों में जागरूकता का अभाव था तो उन्होंने अमेरिका के दोस्तों से चर्चा की और सैनेटरी नैपकिन बनाने का फैसला किया। इसके बाद वह नेक काम को सफल बनाने में जुट गईं और उन्होंने पूरी तरह से इस पर रिचर्स करना शुरू कर दिया। इसके लिए वह अरुणाचलम मुरुगनाथम से मिलने तमिलनाडु गई। वहां पर उन्होंने पैड के बारे में बहुत जाना। माया मुरुगनाथम से मिली तो उसके बाद उन्हें लगा कि इस काम से समाज की सेवा की जा सकती है।
समूह बनाकर महिलाओं को किया जागरूक
पीरियड्स के दौरान होने वाली समस्याओं के बाद भी महिलाओं द्वारा अनदेखी किए जाने के कारण हो रही बीमारियों के बारे में उन्होंने जागरूक करना शुरू किया। गांव-गांव कैंप लगाकर महिलाओं को जागरूक करने का फैसला लिया। माया विश्वकर्मा गांवों में जाकर महिलाओं के समूहों से मिल रही हैं। उन्हें पीरियड्स के बारे में बता रही हैं, उसके नुकसान और समस्याओं के बारे में बता रही हैं। माया की मानें तो महिलाओं से उनकी समस्याएं जानते हैं, इसके बाद धीरे-धीरे पीरियड्स और दूसरी समस्याओं पर बात करती हूं। जिस तरह से पीरियड्स की समस्याएं आ रही हैं, उसके पीछे साफ-सफाई ही है। हमने तय किया है कि ग्रामीण महिलाओं और ट्राइवल क्षेत्र की महिलाओं को सैनेटरी पैड के साथ ही जागरूक करना है।
और फिर अब खुद ही बना रही है पैड
माया ने इस समस्या को बहुत गंभीरता से लिया तथा महिलाओं को जागरूक करने के अलावा उन्होंने इस काम को रोजगार से जोड़ दिया और उन्होंने सेनेटरी पैड बनाने की फैक्ट्री लगाई। माया विश्वकर्मा ने इस काम को सुकर्मा फाउंडेशन के जरिए शुरू किया है। वह कहती हैं, ''इसके लिए हमने महिलाओं की एक टीम बनाई है। फैक्ट्री में वह काम कर रही हैं और पैड बनने शुरू हो गए हैं।" वह कहती हैं, शहरों में तो महिलाएं जागरूक होती हैं, लेकिन गांवों में नहीं। इसके लिए हम एक कैंपेन शुरू करने जा रहे हैं, जिससे ग्रामीण और आदिवासी महिलाओं को जागरूक किया जाएगा।
आम आदमी पार्टी से भी जुड़ी हैं
एक जनआंदोलन से उपजी आम आदमी पार्टी से भी वह जुड़ी हैं लेकिन इसके साथ ही उनके काम का ज्यादतर समय महिलाओं की इस सबसे बड़ी समस्या को सुलझाने में ही जाता है। उन्होंने ग्रामीण महिलाओं की हकीकत देखते हुए ऐसा फैसला लिया। माया ने ‘स्वराज मुमकिन है’ नाम से किताब भी लिखी।
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