मिलिए मंजू बरुआ से जिन्होंने तोड़ी 188 साल पुरानी परंपरा
हम सभी के दिन की शुरुआत चाय की चुस्कियों के साथ होती है। जब चाय की बात आती है तो सबको पता है कि अधिकतर चाय की खेती असम में होती है। आज हम आपको असम में चाय से जुड़ी 188 वर्ष की परंपरा तोड़ने वाली 43 वर्षीय महिला मंजू बरुआ के बारे में बता रहे हैं।
असम के टी एस्टेट्स के इतिहास में अभी तक अधिकारियों के रूप में पुरुषों की ही तैनाती हुई है जिन्हें वहां 'बड़ा साहब' कहा जाता है। लेकिन इन दिनों यहां एक महिला अधिकारी (बड़ा मैडम) की तैनाती हुई है जो इस वक्त चाय के इन बागानों की देखरेख कर रही हैं। साल 1830 में अंग्रेजों द्वारा बनाए गए इन बागानों के इतिहास में पहली बार यहां किसी महिला की मैनेजर के तौर पर तैनाती हुई है।
लोग मुझे बड़ा मैडम कहकर बुलाते हैं: मंजू
मंजू बरुआ असम के डिब्रूगढ़ में एपीजे टी के हिलिका टी स्टेट की मैनेजर हैं। 43 वर्षीय बरुआ ने वेलफेयर ऑफिसर के तौर पर अपने करियर की शुरुआत की थी। मंजू ने बताया कि अक्सर लोग मुझे बड़ा मैडम कहकर बुलाते हैं, यह बड़ा साहब की तरह ही है। चाय के बागानों में किसी बड़े अधिकारी को ऐसे ही बुलाते हैं। कई बार कुछ वर्कर मुझे मैडम की जगह सर भी बोलते हैं, मुझे अच्छा लगता है। बरुआ काम के दौरान करीब 633 हेक्टेयर के चाय बागान में अपनी बाइक से घूमकर ड्यूटी करती हैं। उन्होंने बताया कि एक चाय बागान में महिला मैनेजर का होना परंपरागत तरीकों में बदलाव जैसा तो है, लेकिन यह एक अच्छा बदलाव है।
चुनौती भरा है काम
मंजू बरुआ बताती हैं कि एक चाय के बागान में ज्यादातर काम बाहर का होता है और उसके लिए शारीरिक क्षमताओं का होना जरूरी है। यहां पुरुषों से अधिक महिला वर्कर काम करती हैं। चाय उद्योग में परिश्रम का बहुत महत्व है, इसलिए चाहे महिला हो या पुरुष दोनों के लिए चुनौती एक जैसी है। टी बोर्ड ऑफ इंडिया के एक अधिकारी ने बताया कि इन चाय के बागानों में इससे पहले महिलाएं वरिष्ठ असिस्टेंट मैनेजर और वेलफेयर ऑफिसर तो रही हैं, लेकिन बरुआ से पहले कोई मैनेजर के पद तक नहीं पहुंचा था। मंजू बरुआ पहली ऐसी महिला हैं जो मैनेजर पद पर तैनात हुई हैं।
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