महाराष्ट्र में बनेगी प्लास्टिक की 10, 000 किमी लंबी सड़क, होंंगी कई खासियत

महाराष्ट्र में हर साल हज़ारों टन प्लास्टिक का कचरा इकट्ठा होता है, जो सड़कों पर गंदगी तो फैलाता ही है, पर्यावरण और हमारी सेहत के लिए ख़तरनाक होता है। लेकिन महाराष्ट्र सरकार ने इससे निपटने का तरीका खोज लिया है।
महाराष्ट्र सरकार अगले 6 साल में पैदा होने वाली 50,000 टन प्लास्टिक का इस्तेमाल 10,000 किलोमीटर लंबी सड़क बनाने में करेगी। टाइम्स ऑफ इंडिया की रिपोर्ट के मुताबिक, सरकार के इस कदम से राज्य सरकार को एक किलोमीटर सड़क की मरम्मत में लगने वाले लगभग 2 लाख रुपये की बचत होगी यानि 10,000 किलोमीटर लंबी सड़क पर होने वाली मरम्मत में 20,000 करोड़ रुपये का जो खर्च आता है वो बच जाएगा। क्योंकि प्लास्टिक का इस्तेमाल करके बनाई गई सड़कें पारंपरिक तरीके से बनाई गई सड़कों के मुकाबले काफी मजबूत होती हैं।
इस तरह बनती हैं प्लास्टिक की सड़कें
प्लास्टिक को गर्म टार में पत्थर के चूने के साथ मिलाया जाता है। इससे बिटुमेन का इस्तेमाल कम हो जाता है। बिट्युमेन एक तरल बाइंडर है जो डामर यानि टार को बांधे रखता है, क्योंकि एक बार जब प्लास्टिक पिघलती है तो ये सड़क को ढकने के लिए एक तेल की कोटिंग बनाती है।
प्लास्टिक के कौन से आइटम्स का होता है इस्तेमाल
प्लास्टिक से बनने वाली सड़क के लिए प्लास्टिक के कैरी बैग्स, कप, फोम का सामान, ब्लैक बिन शीट्स और लैमिनेटेड प्लास्टिक का भी इस्तेमाल किया जा सकता है।
प्लास्टिक से सड़क बनाने से क्या है फायदा
अगर बाकी पारंपरिक साधनों से बनी सड़कों के मुकाबले प्लास्टिक की सड़कें टिकाऊ, पानी से खराब न होने वाली और कम मरम्मत की ज़रूरत पड़ने वाली होती हैं। इसके अलावा प्लास्टिक की सड़कों में गड्ढे होने के चांसेज भी कम होते हैं। सामान्य सड़कों की तुलना में ज्यादा ट्रांसपोर्ट लोड सहने में सक्षम होती हैं। साथ ही, इन सड़कों की गुणवत्ता के लिए हर तीन महीने नियमित रूप से जाँच की जाती है। यह भी ध्यान देना महत्वपूर्ण है कि यह पहली बार नहीं है कि राज्य इस तरह से एक परियोजना का प्रयास कर रहा है।
2016 में भी केंद्र से निर्देश मिलने के बाद राज्य सरकार ने रोड कॉन्ट्रैक्टर्स से डामर में प्लास्टिकम मिलाने के लिए कहा था लेकिन तब ये सिर्फ एक एक्सपेरिमेंट था। उस समय सेंट्रल रोड रिसर्च इंस्टीट्यूट ने पीडब्ल्यूडी (लोक निर्माण विभाग) को समझाया था कि जब डामर के साथ प्लास्टिक मिलाकर सड़क बनाई जाती है तो ये ज्यादा मजबूत होती है। राज्य राजमार्गों और नगरपालिका परिषद और निगम के आसपास के क्षेत्रों पर कई सड़क परियोजनाओं ने इस पद्धति का इस्तेमाल किया है।
2017-2018 में, लोक निर्माण विभाग ने सोलापुर, अकलुज, मालेगांव, सातारा, धुले, सांगली और कोल्हापुर में 5000 टन से अधिक प्लास्टिक कचरे के जरिए लगभग 1,000 किलोमीटर सड़कें फिर से बनाईं।
टाइम्स ऑफ इंडिया से बात करते हुए पीडब्ल्यूडी के सेकेट्री सीपी जोशी ने बताया कि कैसे पिछले प्रोजेक्ट में ठेकेदारों को सड़क के पास के 35-50 किलोमीटर के भीतर कस्बों में डंप प्लास्टिक कचरा लेने की अनुमति दी गई थी।
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