क्या मध्यप्रदेश को आदिवासी राज्य कहना सही है ?

आबादी के लिहाज से मध्यप्रदेश को आदिवासी राज्य कहा जाए तो भी कोई अतिश्योक्ति नहीं होगी। प्रदेश में देश की सबसे अधिक जनजातीय जनसंख्या है। देश की कुल आदिवासी आबादी का 14.70 प्रतिशत (वर्ष 2011 की जनगणना) यहां निवास करती है। देश की जनजातीय आबादी 10.4 करोड़ है और मध्यप्रदेश की 1.53 करोड़।
सामान्य तौर पर जनजातीय समुदाय जंगलों में निवास करते हैं, मगर अब स्थितियां बदल रही हैं। आदिवासी मैदानी इलाकों और शहरी क्षेत्र में भी बसने लगे हैं।

मध्यप्रदेश देश का ऐसा राज्य है, जहां हर पांचवा व्यक्ति अनुसूचित जनजाति वर्ग का है। आदिवासी बाहुल्य राज्य होने के चलते देश का एकमात्र जनजातीय संग्रहालय भी मध्यप्रदेश की राजधानी  भोपाल में स्थित है। इस जनजातीय संग्रहालय में आदिवासी कला और संस्कृति की अनोखी झलक देखने मिलती है, जहां हर साल देश-विदेश से लाखों लोग ट्राइबल कल्चर को देखने आते हैं। आइए आपको मध्यप्रदेश की राजधानी भोपाल में स्थित देश के एकमात्र जनजातीय संग्रहालय के बारे में बताते हैं।

भोपाल में स्थित जनजातीय संग्रहालय में आदिवासी कला और संस्कृति की एक अमिट छाप देखने को मिलती हैं। यहां आदिवासियों के इस्तेमाल की हर छोटी बड़ी चीज मौजूद हैं। उनके घर, घरों में उपयोग के बर्तन, खेती किसानी में उपयोग होने वाले औजार, कपड़े, खान-पान सब कुछ एक ही छत के नीचे मौजूद है। जनजातीय जीवन शैली को करीब से देखने की चाह रखने वालों के लिए ये म्यूजियम एक खुली किताब की तरह है, जहां बस कुछ ही मिनटों में आदिवासी कला संस्कृति से रूबरू हुआ जा सकता है।

जनजातीय संग्रहालय की स्थापना राजधानी भोपाल के श्यामला हिल्स पर 6 जून 2013 को भारत के तत्कालीन राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी द्वारा की गई थी। गया था। करीब 2 एकड़ में फैले इस संग्रहालय को 35 करोड़ 20 लाख रुपये के बजट में बनाया गया है। यहां प्रवेश के लिए एक मुख्य द्वार है। इसके परिसर में दो विशाल खुले मंच के साथ ही सभागृह गोष्ठी कक्ष, प्रदर्शनी कक्ष, छह दीर्घा बनाई गई हैं। इस संग्रहालय की स्थापना का मूल उद्देश्य मध्यप्रदेश की जनजातियों और उनकी जीवनशैली से आमजन को रुबरु कराना है। जनजातीय संग्रहालय का प्रतीक चिन्ह बिरछा रखा गया है। इसे धरती की उर्वरा शक्ति और जीवंतता का प्रतीक माना जाता है।

जनजातीय संग्रहालय में प्रदेश की बैगा, सहरिया, गोंड, भील, कोरकू, कोल और भारिया जनजातियों की झलकियां दिखने को मिलती हैं। संग्रहालय में बैगा घर, गोंड स्थापत्य, भील घर, सहरिया आंगन, मग रोहन, गोंड घर, पत्थर का घर, कोरकू घर बने हैं जो बताते हैं कि अलग-अलग आदिवासी समूह किस तरह के घरों में रहते हैं और उनकी दिनचर्या कैसी होती है। संग्रहालय में आदिवासी बच्चों के खेलों जैसें मछली पकड़ना, चौपड़, गिल्ली-डंडा, बुड़वा चक्ताक गोंदरा, पोशंबा, घर-घर, पंच गुट्टा, गेड़ी, पिट्ठू, गूछू हुड़वा भी बना है। भील, गोंड, और कोल है जबकि मध्य प्रदेश की सबसे छोटी जनजाति कमार  है। जनसंख्या के आधार पर भारत की सबसे बड़ी जनजातियां भील, गोंड, तथा संथाल है।

आदिवासी लोगों के लिए उनके तीज त्यौहार और देवस्थल काफी महत्व रखते हैं। संग्रहालय में जनजातीय देवलोक को काफी बारीकी से दिखाया गया है, जिसमें बाबा देव, पिठौरा, सहरिया देव गुड़ी, गातला, माड़िया खाम, मढ़ई, मेघनाद खाम्भ, सरग नसैनी, सनेही, महारानी और मरही माता, लिंगो गुड़ी, लोहरीपुर के राजा, रजवार आंगन हैं।

समय-समय पर होता है सांस्‍कृतिक कार्यक्रमों का आयोजन

यहां समय-समय पर कार्यशालाएं, सांस्‍कृतिक कार्यक्रम आदि भी आयोजित किए जाते हैं। इन आयोजनों का मुख्‍य उद्देश्‍य जनजातीय समाज की मान्‍यताओं और उनकी कला संस्‍कृति से लोगों का सीधा साक्षात्‍कार कराना है। ऐसे अनेक प्रादर्श यहां मूल रूप में प्रदर्शित किए गए हैं, जो जनजातीय संस्‍कृति में रोजमर्रा उपयोग किए जाते हैं।

यहां की प्रमुख दीर्घाओं में ये शामिल हैं। ‘सांस्‍कृतिक वैविध्‍य दीर्घा’ में मध्‍य प्रदेश की विशिष्‍टता को स्‍थापित करने, उसकी बहुरंगी, बहुआयामी संस्‍कृति को दर्शाने का उपक्रम है। ‘जीवन शैली दीर्घा’ में शीर्षक के अनुरूप आदिवासी जीवन शैली देखने को मिलती है। ‘कलाबोध’ में गीत, पर्व, मिथकों और अनुष्‍ठानों को समेटा गया है। ‘देवलोक दीर्घा’ में संकेतों और प्रतीकों के सहारे आदिवासी समुदाय द्वारा लिखे गए वितान की झलक देखी जा सकती है. ‘रक्‍कु दीर्घा’ में बचपन और उसके खेलों पर आधारित प्रदर्शनी है।

आस्था का केंद्र हरनौटी दीया

मध्यप्रदेश की गोंड जनजाति और उनकी उपजातियों में आस्था केन्दों पर दीप जलाने की परम्परा है। हिरनौटी कई दीयों के स्वरूपों में से एक है। गोंड समुदाय की उपजाति अगरिया जो मूलत: पत्थर से लोहा बनाने का काम प्राचीनकाल से करती आ रही है, उसके द्वारा यह विशाल दीया निर्मित किया गया है। संग्रहालय में जनजातियों के रचना कौशल, प्रतीक विधान और संज्ञान के बेजोड़ शिल्प मुख्य द्वार पर स्थापित किए गए हैं।

प्रदेश में 43 जनजातियों का वास

अनुसू चित जनजातियों की सूची संशोधन (1976) में 46 समुदायों के तहत मध्यप्रदेश को अधिसूचित किया गया। वर्ष 2003 में जारी अधिसूचना में कीर, मीना और पारधी जनजातियों को विलोपित कर दिया गया। ऐसे में अब कुल 43 अनुसूचित जनजाति समूह मध्यप्रदेश में अधिसूचित हैं।

मध्यप्रदेश में जनजातीय समुदाय को तीन क्षेत्रों से जाना जाता है—

1. मध्य क्षेत्र: इसके तहत नर्मदापुरम, बैतूल, छिंदवाड़ा, सिवनी, बालाघाट, मंडला, डिंडौरी, रायसेन आदि जिल हैं। इनमें गौंड, बैगा, कोल, कोरकू परधान, भारिया और मुरिया निवास करते हैं।
2. पश्चिम क्षेत्र: झाबुआ, आलीराजपुर, धार, खरगोन, बड़वानी और रतलाम जिलों से यह क्षेत्र पहचाना जाता है। इसमें भील, भिलाला, परितबा, बारेला और तड़नी आदिवासी रहते हैं।
3. चंबल क्षेत्र: श्योपुर, शिवपुरी, भिंड, मुरैना, गुना, दतिया, ग्वालियर आदि जिलों में सहरिया जनजाति का बसेरा है।

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