ये हैं देश की पहली महिला वकील जो सुप्रीम कोर्ट में बनेंगी जज

केंद्र सरकार ने वरिष्ठ वकील इंदु मल्होत्रा की सुप्रीम कोर्ट में बतौर जज नियुक्ति को मंजूरी दे दी है। केंद्र सरकान ने ये मंजूरी सुप्रीम कोर्ट के कोलेजियम व्यवस्था कि सिफारिश मानते हुए दी है। इंदु जस्टिस आर बानुमति, जस्टिस सुजाता मनोहर, जस्टिस रुमा पाल, जस्टिस ज्ञान सुधा मिश्रा और जस्टिस रंजना देसाई और फातिमा बीबी के बाद देश की छठी महिला जज होंगी। माना जा रहा है कि इंदु मल्होत्रा शुक्रवार को सुप्रीम कोर्ट जज के तौर पर शपथ ले सकती हैं।
सुप्रीम कोर्ट में शुरुआत के 39 वर्षों में कोई महिला जज नहीं रही। 1989 में फातिमा बीबी को सुप्रीम कोर्ट की जज बनाया गया। इसके बाद जस्टिस सुजाता मनोहर, जस्टिस रुमा पाल, जस्टिस ज्ञान सुधा मिश्रा और जस्टिस रंजना देसाई को सुप्रीम कोर्ट में जज नियुक्त किया गया। इंदु मल्होत्रा आजादी के बाद से अभी तक सुप्रीम कोर्ट की जज बनने वाली छठी महिला होंगी। फिलहाल जस्टिस जी रोहिणी और आर बानुमति सुप्रीम कोर्ट में महिला जज हैं।

इंदु मल्होत्रा का लगभग पूरा परिवार ही वकील है। उनके पिता ओपी मल्होत्रा वरिष्ठ वकील थे और उनके बड़े भाई और बहन भी वकील हैं। मल्होत्रा ने राजनीतिक विज्ञान में पोस्टग्रेजुएट की पढ़ाई की है और इससे पहले उन्होंने दिल्ली विश्वविद्यालय से ग्रेजुएशन की थी। उसके बाद उन्होंने 1983 में करियर की शुरुआत की थी। वो कई अहम फैसलों में जजों की पीठ में रही हैं।
सुप्रीम कोर्ट कोलेजियम ने 22 जनवरी को जस्टिस जोसेफ और मल्होत्रा की नियुक्ति की सिफारिश की थी। फरवरी के पहले हफ्ते में दोबारा सिफारिश मिलने के बाद कानून मंत्रालय ने दोनों की नियुक्ति को रोक दिया था क्योंकि वह केवल मल्होत्रा के नाम को स्वीकृति देना चाहता था। सूत्रों का कहना है कि अप्रैल के पहले हफ्ते में केंद्र सरकार ने इंदु मल्होत्रा की फाइल खुफिया ब्यूरो (आईबी) के पास भेजी थी। वहां से हरी झंडी मिलने पर केंद्र ने उनकी नियुक्ति को हरी झंडी दे दी है।
सूत्रों के मुताबिक जस्टिस जोसेफ के नाम की सिफारिश पर सरकार को लग रहा है कि कोलेजियम ने वरिष्ठता और क्षेत्रीय प्रतिनिधित्व को नजरअंदाज किया है। जस्टिस जोसेफ हाईकोर्ट के 669 जजों की वरिष्ठता सूची में 42वें नंबर पर हैं। दरअसल जस्टिस जोसेफ ने अप्रैल 2016 में उत्तराखंड में राष्ट्रपति शासन लगाने के केंद्र सरकार के फैसले को खारिज कर दिया था। इससे पहले कानूनी विशेषज्ञों ने एक नाम को मंजूरी देने और दूसरे को रोके रखने की सरकार की मंशा के खिलाफ अपनी राय दी थी।
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