आज हर क्षेत्र में आधी आबादी पुरुषों के साथ कंधा से कंधा मिलाकर चल रही है। महिलाओं की बढ़ती भागीदारी को देखते हुए अब रेलवे भी उनकी जिम्मेदारी को आगे बढ़ा रहा है। अब महिलाओं को खास तोहफा पूर्वोत्तर रेलवे ने दिया है। आठ मार्च को एक ट्रेन की जिम्मेदारी के साथ ही अब कारखाने की जिम्मेदारी सौंपी गई है। बता दें पूर्वोत्तर रेलवे ने आठ मार्च को एक ट्रेन को महिलाओं के हवाले कर दिया गया है।
ट्रेन के संचालन से लेकर सिग्नल, टिकट, सुरक्षा और स्वच्छता की जिम्मेदारी महिला कर्मियों के हाथों में दे दी गई है। यही नहीं, पूर्वोत्तर रेलवे ने जब महिलाओं को यांत्रिक कारखाने की जिम्मेदारी सौंपी है, तो अब तस्वीर बदल गई है। प्रबंधन ने महिलाओं को ट्रिमिंग शॉप का जिम्मा सौंपा, तो फिर कमाल ही हो गया। जो काम पुरुष समय ने नहीं कर पा रहे थे, वह काम महिलाओं ने कर दिया है। यही नहीं, महिलाओं ने पुरुषों से कहीं अधिक काम किया है। बता दें कारखाने के ट्रिमिंग शॉप यानी सज्जा गृह कार्य करने की जिम्मेदारी 34 महिलाओं को सौंपी। इन महिलाओं ने साख बचाने में जूझ रहे कारखाने को मजबूती दी है। यही नहीं, उत्पादन में गुणात्मक वृद्धि के लिए अन्य कर्मियों को प्रेरित भी किया है।
जनरल बोगियों की तैयारी होती है सीटें
पूर्वोत्तर रेलवे के ट्रिमिंग शॉप की जनरल बोगियों की सीटें तैयार की जाती है। यहां पर एक साल पहले तक एक दिन में 200 सीटें भी समय से तैयार नहीं हो पाती थी। लेकिन अब जब से महिला कर्मियों की यहां पर तैनात की गई है, तब से रोजाना और समय गुणवत्ता के साथ लगभग 300 सीटें तैयार की जा रही है। पूर्वोत्तर रेलवे की इस वर्कशॉप में दिसंबर 2018 तक ट्रिमिंग शॉप में पुरुष और महिला दोनों संयुक्त रूप से काम करते थे। उस समय तक उत्पादकता नहीं सही थी और गुणवत्ता को लेकर समस्या बनी हुई थी। सीटों में अक्सर खामियां रह जाती थी और उनको दूर करने के लिए दोबारा बनाना पड़ता था। कारखाने के प्रबंधतंत्र ने लाख प्रयास किए, लेकिन इसके भी गुणवत्ता में सुधार नहीं हुआ। यहां पर महिलाओं की समस्या को देखते हुए जनवरी 2019 में शॉप को महिलाओं के हवाले कर दिया गया। प्रबंधन ने आधी आबादी पर भरोसा जताया तो उन्होंने साबित भी कर दिखाया।
अब शॉप की बदल गई सूरत
यहां पर महिलाओं को एक साल पहले ही वर्कशॉप की जिम्मेदारी सौंपी गई थी। अब एक वर्ष के भीतर महिला कर्मचारियों ने शॉप की सूरत बदल दी है। इस वर्कशॉप में काम का इस तरह का माहौल तैयार हुआ है कि अब गुणवत्ता भी हो गई है। अब यहां पर अपने आप गुणवत्ता बढ़ गई है। यही नहीं अब सीटों की गुणवत्ता में इस तरह से सुधार हुआ हैकि अब सीटों को दोबारा नहीं बनाना पड़ रहा है। सुपरवाइजर रेमंड पौल बताते हैं कि अब सीटों को समय से बोगियों में लगाने में कोई समस्या नहीं होती है। अब पहले से बेहतर यहां पर सीटों को तैयार किया जा रहा है। बता दें यहां पर अनुकंपा के आधार पर नौकरी पाने वाली महिलाओं को प्राथमिकता के आधार पर रखा जाता है। जूनियर इंजीनियर कविता सिंह ने बताया कि प्रबंधन ने अवसर देकर महिलाओं का सम्मान बढ़ाया है। महिलाएं पूरी निष्ठा से काम को गति प्रदान कर रही है। पूर्वोत्तर रेलवे के सीपीआरओ पंकज कुमार सिंह ने बताया कि यांत्रिक कारखाना में काम करने वाली महिलाओं ने अपनी क्षमता साबित कर दिया है कि अगर लगन से काम किया जाए, तो फायदा जरूर होगा। यही नहीं, इससे रेलवे को भी फायदा हो रहा है।