अगर आपको लगता है कि छुआछूत के खिलाफ बना 6 दशक पुराना विधेयक, अस्पृश्यता (अपराध) अधिनियम, 1955 लोगों में कुछ बदलाव लेकर आया है, तो आप गलत हैं। किताबों में तो दलितों को समानता देने की बातें होती हैं, लेकिन हमारे समाज में अभी भी ये बुराई बीमारी की तरह फैली हुई है। राजस्थान के धौलपुर जिले की आईएएस नेहा गिरी का अपने इलाके में जब छूआछूत से सामना हुआ तब उन्होंने तय कर लिया वो इसे खत्म करेंगी।
मामला धौलपुर जिले की बसेड़ी ग्राम पंचायत का है। जहां नुनहेरा गांव में मनरेगा का काम चल रहा था। जब कार्य का निरीक्षण करने के लिए डीएम नेहा गिरी पहुंचीं तो उन्होंने देखा कि एक महिला अपने बच्चे के साथ काम पर लगी है, जबकि उससे हट्टा-कट्टा आदमी वहां पानी पिलाने का काम कर रहा है। इसे देखकर जब उन्होंने इसका कारण पूछा तब पता चला कि वह महिला वाल्मीकि समुदाय से आती है। इस समुदाय को अछूत माना जाता है इसलिए कोई उसके हाथ से पानी नहीं पीता।
उन्होंने वहां मौजूद लोगों को जमकर लताड़ लगाई और उस महिला के हाथों पानी भी पिया। उन्होंने गांव के लोगों को समझाया कि छुआछूत जैसी कोई चीज नहीं होती है और हर इंसान बराबर होता है। भारत में जाति व्यवस्था में वाल्मीकि समुदाय को निचले पायदान पर रखा जाता है। यहां तक कि दलितों में भी उन्हें सबसे नीचा माना जाता है। इसे दुर्भाग्य ही कहेंगे कि आधुनिक होते समाज में आज भी ऐसी कुप्रथाएं जारी हैं। कलेक्टर नेहा गिरी ने वाल्मिकी महिला को न केवल सामाजिक हक दिलाया बल्कि उसके अंदर आत्मविश्वास भी भरा।
2010 बैच की आईएएस अफसर नेहा गिरी इसके पहले बूंदी और प्रतापगढ़ जिले की कलेक्टर रह चुकी हैं। उनके पति इंद्रजीत सिंह भी आईएएस अफसर हैं और फिलहाल अलवर जिले में डीएम की जिम्मेदारी संभाल रहे हैं।