नेत्रहीन तारा करती हैं खेती, एक फैसले से बदल दी कई दिव्यांगों की जिंदगी

नेत्रहीन तारा बाई को एक समय में परिवार में बोझ समझा जाता था मगर आज वह अपने जैसों अन्य नेत्रहीनों के जीवन में रोशनी बन चुकी हैं। तारा बाई की कहानी भी अन्य नेत्रहीनों की जिंदगी जितनी ही मुश्किल और त्रासदी भरी है। मगर उनकी कहानी में बदलाव तब आया जब उन्होंने अपनी पहचान बनाने के लिए कुछ अलग करने की ठान ली।
अपने खेत की करती हैं निराई
बता दें कि छह महीने की उम्र में ही उनकी आंखों की रोशनी चली गई थी। शादी नहीं हुई और वह परिवार पर अपने को बोझ मानने लगीं लेकिन खेती के आधुनिक तरीके सीखकर वह आज परिवार को आर्थिक मदद पहुंचा रही हैं। यह बदलाव सिहोरा ब्लॉक के गांव जॉली की तारा बाई (50) की जिंदगी में आया है। तारा बाई लहसुन, अदरख, मिर्च के बीच से खरपतवार उखाड़ लेती हैं। वह सब्जियों को नुकसान पहुंचाए बिना ही उसकी सफलतापूर्वक निराई कर देती हैं।
अन्य दिव्यांगों का बनीं सहारा
यह नहीं वह पौधों की पत्तियों को छूकर बता देती हैं कि पौधा किस सब्जी का है। आज वह गांव के 12 दिव्यांगों के साथ समूह बनाकर छोटे-छोटे टुकड़ों में सब्जियां उगा रही हैं। इससे महीने में सभी 3 हजार से ज्यादा की कमाई कर रहे हैं। हालांकि, मात्र दो साल पहले तक वह 300 रुपये दिव्यांग पेंशन से अपनी जिंदगी काट रही थीं।
सब्जी ने बदली जिंदगी
जॉली गांव के दिव्यांगों के समूह में सुनीता बाई (सुनाई नहीं देता) ने स्थानीय मीडिया को बताया कि हमारे गांव में पहले भी सब्जियां लगाते थे, लेकिन बस अपने घर में खाने के लिए। हमने सोचा भी नहीं था कि ये सब्जियां हमारी आर्थिक मदद भी कर सकती हैं। लेकिन, अब तो गांव की सब्जी आसपास के बाजार सिहोरा, मझौली मंडी में बिकने जाती है। इस समय यहां भटे, लहसुन, अदरख, मिर्च की फसल तैयार है। आलू लगाए जा रहे हैं और भिंडी लगाने की भी तैयारी चल रही है।
खेती की सीखीं बारीकियां
दिव्यांगों को आत्मनिर्भर बनाने के लिए एनजीओ तरुण संस्कार ने एग्रीकल्चर कॉलेज में ट्रेनिंग भी दिलाई है। तारा बाई ने बताया कि पहले हम कहीं भी पौधे लगा देते थे लेकिन ट्रेनिंग के बाद हमें पता चला कि क्यारी उत्तर-दक्षिण दिशा में बनाना चाहिए। इससे पौधों पर धूप सीधी नहीं पड़ती। अच्छे बीज भी हमें एग्रीकल्चर से मिलते हैं। जॉली के साथ ही बुधुआ गांव में भी दिव्यांग सब्जी उगा रहे हैं। बुधुआ की ही जन्म से नेत्रहीन अनामिका के घर में सब्जी के साथ गेंदे के फूल की भी खेती हो रही है।
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