मुम्बई की मलिन बस्तियों में खुशियों के रंग भर रही 'चल रंग दे'

एक तरफ तो मुंबई को देश की आर्थिक राजधानी कहा जाता है दूसरी तरफ यहां की एक हकीकत ये भी है कि मुंबई की बड़ी आबादी मलिन बस्तियों में रहती है। मलिन बस्तियों की पहचान टिनों से ढके घर व गंदगी से होती है लेकिन मुम्बई की इस पहचान की रंगत को बदने का काम कर रही है 'चल रंग दे' नाम की संस्था।
मुम्बई की मलिन बस्तियों को इस समय इसके द्वारा सजाया और संवारा जा रहा है। असल्फा झुग्गी से मिली थीम के बाद अब मुम्बई की अन्य बस्तियों में रंग भरने का काम किया जा रहा है। मुम्बई की एक बस्ती में मकानों को रंगने के बाद अब संस्था देशभर के हजारों घरों को संवारने जा रही है। मलिन बस्तियों की सूरत को अब पूरे देश में बदलने की तैयारी चल रही है। ये टीम अब तक 4 झुग्गियों के 12 हजार घरों को कैनवास में बदल चुकी है। बदसूरत दीवारों और छतों की जगह खूबसूरत म्यूरल पेंटिंग ने ले ली है।
स्वेच्छा से आर्टिस्ट इस मुहिम से जुड़ रहे हैं। इस मुहिम को साल भर पहले देदीप्प रेड्डी ने ‘चल रंगे दे’ संस्था बनाकर शुरू किया था। दैदीप्य ने हॉर्वर्ड से पढ़ाई की है। अब डिजिटल मीडिया एजेंसी चला रही हैं। ‘चल रंग दे’ के संस्थापक ने बताया कि दैदीप्य रेड्डी ने कहा कि देश में मलिन बस्तियों के प्रति लोगों का नजरिया अभी भी बहुत गलत है। हम चाहते हैं कि लोगों का स्लम को देखने का नजरिया बदले। लोगों के अंदर स्लम के नाम से जेहन में निगेटिविटी और गंदगी की तस्वीर बस जाती है। उसमें रहने वाले लोगों की भी ऐसी ही तस्वीर बनती है। लेकिन यह सही नहीं है।
वास्तव में ये लोग गजब के हैं। वे खुश रहते हैं। हम चाहते हैं कि ‘चल रंग दे’ उनकी रियल्टी का आइना बने। उन्होंने कहा कि पिछले साल पहाड़ी पर बसी असल्फा झुग्गी को इसी थीम पर रंगने का आइडिया आया और ‘चल रंग दे’ बन गया। उनका कहना है कि हमारी मेहनत रंग ला रही है और अब आप आसमान से मुंबई को देखेंगे तो आपको बिल्कुल नई मुंबई दिखेगी। अभी मानसून शुरू होने पर काम रोक दिया गया है और जैसे ही बारिश का सीजन खत्म होगा। टीम फिर अपने काम में जुट जाएगी। हम चाहते हैं देशभर में ‘चल रंग दे’ को पहुंचाएं।

असल्फा बस्ती से शुरू हुआ था

चंल रंग दे का सफर पिछले साल से शुरू हुआ था। मुम्बई में पहाड़ी पर बसी असल्फा झुग्गी को इसी थीम पर रंगने का आइडिया आया और ‘चल रंग दे’ बन गया। बस्ती को रंगने का काम शुरू हो गया और सोशल मीडिया के जरिए करीब 750 वॉलंटियर जुड़े। जिन्होंने झुग्गी को बदलने में दिलचस्पी दिखाई और रंग रंगने में जुट गए। फंडिंग के लिए मुंबई मेट्रो समेत कई संगठन और लोग सामने आए। आइडिया के साथ झुग्गी के लोगों से मिले। यहां पर सबसे बड़ी समस्या ये थी कि कैसे करके रंगाई का काम होगा। लोगों ने उन्हें मना कर दिया था, लेकिन फिर बाद में मान गए।
अब ये होगा बस्तियों के वासियों को फायदा

टीम ने दीवारों और छतों पर म्यूरल पेंटिंग की। झुग्गी की छतें टीन की होती है। यह गर्मी में तपती है और बरसात में लीकेज से पानी टपकता है। इससे निजात दिलाने के लिए टीम छतों पर वाटरप्रूफिंग भी करती है। यह वाटरप्रूफिंग करीब 5 साल तक चलेगी। अब छतों पर पेंट से घर के अंदर का तापमान 3-5 डिग्री तक कम हो गया है। अब हमारी टीम ने खार की तीन झुग्गियों को बदलने का बीड़ा उठाया है। पिछले महीने इस मुहिम से करीब 3000 वॉलंटियर्स जुड़े हैं। इसमें बुजुर्ग भी हैं। ये सभी लोग समाज के लिए कुछ कर गुजरने की तमन्ना रखते है और वे लोग पूरी तरह से हम लोगों के साथ में जुटे हुए है। लोग कूची और पेंट उठाकर घरों की पुताई करने लगते हैं।
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