आने वाले हैं शिकारी मेरे गांव में…गीत वाले गीतकार राजेंद्र नहीं रहे

जीवन-मरण के फ़र्क़ में उलझा हुआ था मैं,

तुमने बिछड़के मौत का चेहरा दिखा दिया।।

आने वाले हैं शिकारी मेरे गांव में

जनता है चिंता की मारी मेरे गांव में

फिर वही चौराहे होंगे प्यासी आंख उठाए होंगे

सपनों भींगी रातें होंगी, मीठी-मीठी बातें होंगी

मालाएं पहनानी होगी, फिर ताली बजवानी होगी

दिन को रात कहा जाएगा, दो को सात कहा जाएगा

आने वाले हैं मदारी मेरे गांव में, 

जनता है चिंता की मारी मेरे गांव में 

आने वाले हैं शिकारी मेरे गांव में

जनता है चिंता की मारी मेरे गांव में। 

हर चुनाव में देश की जनता के साथ में होने वाले ऐसे हालातों को रूबरू कराने वाले प्रख्यात गीतकार एवं कवि राजेंद्र राजन अब इस दुनिया में नहीं रहे। जनता हर चुनाव में उनके वादे सुनती है और हलकान होती है, उसको बहुत ही आसानी के साथ में उन्होंने रखा था। आज उनका सहारनपुर में उनका बीमारी के चलते निधन हो गया। वह करीब 65 वर्ष के थे। स्वर्गीय राजेंद्र राजन के पुत्र प्रशांत राजन ने बताया कि पिता जी को पिछले कुछ समय से लंग्स में दिक्कत हो रही थी। इससे अस्‍पताल में भर्ती कराया गया था।

बुधवार को लग्‍स में परेशानी के चलते इलाज के लिए पहले निजी अस्‍पताल में भर्ती कराया गया था। जहां से फिर उन्हें राजकीय मेडिकल कॉलेज पिलखनी में भर्ती कराया गया। जहां रात करीब 3:00 बजे उन्होंने अंतिम सांस ली। उन्होंने कोरोना जांच कराई थी, जिसकी रिपोर्ट अभी तक नहीं आई, इसी वजह से अभी तक उनका शव परिवार को नहीं मिल पाया है। देश और दुनिया में हिंदी साहित्य का नाम ऊंचा करने वाले राजेंद्र राजन ने उत्तर प्रदेश के साथ ही सहारनपुर को एक पहचान दिलाई थी। मूलरूप से शामली के एलम कस्‍बा निवासी 65 साल के गीतकार राजेंद्र राजन ने कई सारे किताबें भी लिखी है। इसके अलावा कई गीतों को भी रचा है। वे 1980 में सहारनपुर में ही आकर बस गए थे।

40 वर्षों से साहित्‍य क्षेत्र में थे कार्यरत

वरिष्ठ कवि और गीतकार राजेंद्र राजन पिछले 40 वर्षों से साहित्‍य जगत में अपना नाम ऊंचा कर रहे थे। इनके लिखे कई गीत और ओर कविताएं काफी प्रचलित रहीं। चाहे वह  

केवल दो गीत लिखे मैंने

इक गीत तुम्हारे मिलने का

इक गीत तुम्हारे खोने का

या फिर अन्य कोई गीत लिखें राजेंद्र राजन जी ने। दूरदर्शन, आकाशवाणी से लेकर राष्ट्रपति भवन मंच पर भी राजन ने कविता पाठ किया था। अंतरराष्‍ट्रीय हिंदी समिति यूएसए से इनको अमेरिका के 16 शहरों में हुए कवि सम्‍मेलन में कविता पाठ करने का मौका मिला था। उन्हें हिंदी उर्दू एकेडमी से साहित्यिक पुरुस्‍कार, कन्‍हैया लाल मिश्र पुरस्‍कार, महादेवी पुरस्‍कार, घनाना पुरस्कार व साहित्‍य भूषण पुरस्‍कार भी मिल चुका है। 

गीतकार राजेंद्र राजन का एक ताजा गीत:

मौसम में पुरवाई जैसे 

सूरज में गरमाई जैसे 

ढकी-छुपी सी तुम हो मुझमें 

काया में परछाई जैसे 

नदिया को सागर का जैसे 

शब्दहीन उल्लास पुकारे 

किसी यौवना के पल-पल में 

उम्र, सखी-सी केश संवारे 

बचपन में तरुणाई जैसे 

होली में भौजाई जैसे 

ढकी-छुपी सी तुम हो मुझमें 

काया में परछाई जैसे 

मन आवारा निश्छल जैसे 

सुख-दुख में कुछ भेद न माने 

वो सबको ही अपना समझे 

भले-बुरे को क्या पहचाने 

कपटी मन चतुराई जैसे 

सागर में गहराई जैसे 

ढकी-छुपी सी तुम हो मुझमें 

काया में परछाई जैसे 

मन का पंछी दिशाहीन हो 

और गगन हँसता हो उस पर 

कहाँ ठिकाना उसे मिलेगा 

वृक्ष नही उगते हैं नभ पर 

शून्य सदन तन्हाई जैसे 

तुलसी में चौपाई जैसे 

ढकी-छुपी सी तुम हो मुझमें 

काया में परछाई जैसे।

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