गरीबों के लिए किसी 'भगवान' से कम नहीं हैं डॉ अंशुमन

किसी भी रोग से निजात पाने के लिए हम सीधे डॉक्टर के पास जाते हैं इसीलिए डॉक्टरों को 'भगवान' की संज्ञा दी जाती है, लेकिन ये डॉक्टर ज्यादा आमदनी के चक्कर में अपने कर्तव्यपथ से कितना भटक गए हैं ये किसी से भी छिपा नहीं है।
यही वजह है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने हाल ही में डॉक्टरों को सलाह दी है कि वे गरीबों को सस्ती जिनेरिक दवाएं लिखें। जहां दूसरे डॉक्टर दवा माफियाओं के साथ मिलकर अपनी तिजोरियां भरने में जुटे हैं वहीं मशहूर कैंसर सर्जन अंशुमन कुमार गरीबों का मुफ्त इलाज कर एक अनूठी मिसाल कायम कर रहे हैं। डॉ. अंशुमन कुमार हर गुरुवार को ग्रेटर नोएडा के कासना में जमीन पर दरी बिछाकर गरीबों का मुफ्त इलाज करते हैं साथ ही उनकी हर संभव मदद भी करते हैं।
एनबीटी की खबर के अनुसार दिल्ली स्थित धर्मशिला कैंसर अस्पताल के डायरेक्टर और चीफ कैंसर सर्जन डॉ अंशुमन यहां आने वाले मरीजों के लिए किसी भगवान से कम नहीं है।
जब दिहाड़ी मजदूर पहुंचा इलाज कराने
भवन निर्माण का कार्य करने वाले शिवपाल बताते हैं कि उनके पैरों में खून का फ्लो कम हो गया था जिससे उन्हें पैर उठाने में भारी तकलीफ हो रही थी। दिहाड़ी मजदूरी कर पेट पालने वाले शिवपाल को समझ में नहीं आ रहा था कि क्या करें? पैसों की तंगी की वजह से वह किसी बड़े डॉक्टर के पास नहीं जा सकते थे। तभी उन्हें पता चला कि उनके इलाके में एक बड़े डॉक्टर हफ्ते में एक बार आते हैं और फ्री इलाज करते हैं। शिवपाल डॉक्टर अंशुमन के पास पहुंचे। डॉ अशुंमन ने शिवपाल के मर्ज को अच्छी तरह समझा और धूम्रपान बंद करने की सलाह देने के साथ तमाम दवाएं दी।
गार्ड की बात सुन पसीज गया अंशुमन का दिल
डॉक्टर अंशुमन ने बताते हैं कि वह कासना स्थित सिविल सर्विसेज कॉलोनी में अपने फार्महाउस में अक्सर आते-जाते रहते हैं। कुछ महीने पहले वहां के गार्ड दिलीप ने बताया कि यहां आसपास काम करने वाले मजदूर, गार्ड और गरीब तबके के अन्य लोग बीमार होने पर इलाज नहीं करवा पाते क्योंकि इलाज के लिए पैसे नहीं है और मजदूरी छोड़कर जाएं तो फिर खाने के लाले पड़ जाते हैं। गार्ड की बातें सुनते ही डॉ अंशुमन का दिल पसीज गया और उन्होंने सप्ताह में एक बार गरीबों का इलाज करने की ठान ली।
डॉक्टर अंशुमन कहते हैं कि गार्ड की बातें सुनते ही उन्हें एहसास हुआ कि वाकई ऐसे लोगों को अगर कोई बड़ी या छोटी तकलीफ हो तो वह अस्पताल के चक्कर काटने को मजबूर होंगे और उनके सामने दिहाड़ी का संकट खड़ा हो जाएगा। अंशुमन ने बताया कि यह सही है कि इनके इलाज के लिए उनकी बड़ी-बड़ी डिग्री की जरूरत नहीं थी लेकिन वह किसी और का इंतजार क्यों करें उन्होंने खुद अपने अस्पताल और क्लीनिक से समय निकालकर गुरुवार शाम इन गरीब मरीजों को देने का फैसला किया। उन्होंने इन गरीबों का फ्री में इलाज करने की ठानी।
न अपॉइंटमेंट की जरूरत और न फीस की
डाक्टर अंशुमन की क्लिनिक में गरीब मरीजों को न अपॉइंटमेंट की जरूरत होती है और न ही फीस देने की। उन्होंने बताया कि वह यहां जमीन पर दरी बिछाते हैं और लोगों का शाम 5 बजे से लेकर जब तक अंधेरा न हो, इलाज करते हैं। इस दौरान वह सस्ती जिनेरिक दवा लिखते भी हैं और उन्हें फ्री में दवा भी देते हैं। फाइव स्टार क्लीनिक व अस्पताल से निकलकर सीधे इस परिस्थिति में इलाज करने के बारे में पूछे जाने पर अंशुमन ने बताया, जो मैने पाया है उसके तहत सामाजिक जिम्मेदारी है, वही जिम्मेदारी व्यक्तिगत तौर पर मैं निभाने की कोशिश कर रहा हूं। हर काम हम सरकार के भरोसे नहीं छोड़ सकते। अगर हममें से किसी में ये हुनर है कि वह दूसरे के काम आ सकते हैं तो उन्हें जरूर योगदान देना चाहिए। वह भी यही कर रहे हैं, इसका नाम उन्होंने समर्पण दिया है और यह भी कहा कि ये अनुभव से अनुभूति की ओर कदम है।
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