एम्स ने विकसित की कैंसर के मरीजों को दवा देने की नई तकनीक, बढ़ी बचने की संभावना

दिल्ली एम्स के डॉक्टरों ने कैंसर के मरीजों का इलाज करने के लिए एक नई तकनीक विकसित की है। इससे मरीजों के बचने के संभावना बढ़ी है। ये तकनीक पेट से जुड़े कैंसर जैसे- कोलोन कैंसर और कोलोरेक्टल कैंसर में ज्यादा प्रभावी साबित होगी। इसके तहत सर्जरी के दौरान कीमोथेरपी वाली दवाईयों को गर्म करके सीधे पेट में डाल दिया जाएगा। आमतौर पर कीमोथेरपी की दवाईयों को सर्जरी के बाद नसों में डाला जाता था ताकि कैंसर सेल्स को खत्म किया जा सके। इस नई तकनीक के जरिए डॉक्टर अब कीमोथेरपी की दवाइयों का एक बड़ा डोज मरीज के शरीर तक पहुंचा पाएंगे।
बचने की संभावना बढ़ी
टाइम्स आॅफ इंडिया के मुताबिक, एम्स के सर्जिकल ऑनकोलॉजी के हेड डॉ. एसवीएस देओ का कहना है कि इस नई तकनीक की मदद से मरीज के जीवित बचने की संभावना बढ़ जाएगी। इस तकनीक को हाइपरथेर्मिक इंट्रापेरिटनील कीमोथेरपी (HIPEC) कहते हैं। इस तकनीक को पश्चिमी देशों में प्रयोग के तौर पर पिछले 2 दशकों से ज्यादा से इस्तेमाल किया जा रहा है।
सफल हुआ ट्रायल
डॉ. देओ के मुताबिक, दिल्ली एम्स में HIPEC तकनीक का इस्तेमाल पहली बार साल 2013 में 35 साल की एक महिला पर किया गया था जो पेरिटनील कैंसर से पीड़ित थी। उस वक्त डॉक्टर्स इस तकनीक के नतीजे के बारे में आश्वस्त नहीं थे बावजूद इसके उन्होंने इसका इस्तेमाल किया क्योंकि वे उस महिला की जान बचाना चाहते थे। कीमोथेरपी की दवाइयों को मैन्युअली गर्म कर सर्जरी के तुरंत बाद मरीज के शरीर में हृदय और फेफड़ों की मशीन के जरिए पहुंचाया गया। वह महिला आज भी जीवित है। अचानक मिली उस सफलता के बाद इस तकनीक को ट्रायल बेसिस पर करीब 100 मरीजों पर इस्तेमाल किया गया। एम्स में स्थित HIPEC की स्टैंडर्ड मशीन से होकर गुजरे। इस मशीन में पहले से ही व्यवस्था की गई है जिसके तहत कीमोथेरपी की दवा को गर्म कर, तापमान को नियंत्रित कर उसे कैंसर पीड़ित मरीज के शरीर में पेरिटनील सतह के जरिए पहुंचाया जाता है।
मौत का आंकड़ा घटा
डॉ. देओ कहते हैं, इस तकनीक के इस्तेमाल से सर्जरी के दौरान होने वाली मौतों का आंकड़ा 10 प्रतिशत से घटकर 2-3 प्रतिशत पर आ गया है। साथ ही इस नई तकनीक के इस्तेमाल से मरीजों के ओवरवॉल बचने की संभावना भी 30 से 40 प्रतिशत तक बढ़ गई है।' एम्स के अलावा भारत के कुछ निजी अस्पताल भी HIPEC की सुविधा देते हैं लेकिन वहां यह बेहद महंगा है जबकि एम्स में यह सुविधा या तो फ्री है या फिर इसके लिए सब्सिडाइज्ड कीमत ली जाती है।
सभी तरह के कैंसर में नहीं हो सकता इस्तेमाल
हालांकि डॉक्टरों ने जोर देकर कहा कि इस तकनीक को सभी तरह के कैंसर मरीजों के लिए इस्तेमाल नहीं किया जा सकता। इसका इस्तेमाल सिर्फ उन्हीं कैंसर मरीजों के लिए किया जा सकता है जो पेट के कैंसर से पीड़ित हैं। साथ ही HIPEC को सिर्फ ऐसे अस्पताल या संस्थान में ही करवाना चाहिए जहां इस तकनीक का इस्तेमाल करने वाले डॉक्टर पूरी तरह से अनुभवी और कुशल हों क्योंकि दवा के डोज या तापमान में किसी भी तरह की गड़बड़ी मरीज के मौत का कारण बन सकती है। एम्स ने हाल ही में एक वर्कशॉप का भी आयोजन किया था जिसके जरिए युवा सर्जनों को HIPEC की समुचित ट्रेनिंग दी गई।
पेट से जुड़ा कोलोरेक्टल कैंसर पुरुषों में तेजी से फैल रहा है और इसकी मुख्य वजह खानपान की गलत आदते हैं। इसके अलावा महिलाओं में सबसे ज्यादा पाए जाने वाले कैंसर में गर्भाशय का कैंसर भी तीसरे नंबर पर है। डॉक्टरों की मानें तो इस तरह के कैंसर से पीड़ित मरीजों में HIPEC, उम्मीद की किरण की तरह काम कर सकता है।
संबंधित खबरें
सोसाइटी से
अन्य खबरें
Loading next News...
