पिता की याद में 13 लाख रुपये खर्च कर बना दी विश्वस्तरीय सड़क

हेरम्बा बारोदोलोई पथ पर आप चलेंगे तो लगेगा सिंगापुर जैसे किसी देश की सड़क पर चल रहे हैं, लेकिन ये सड़क सिंगापुर की नहीं बल्कि असम के डिब्रूगढ़ की है। और इस सड़क को इतना शानदार बनाने का श्रेय जाता है गौतम बारदालोई को, एक समाजसेवी का बेटा, जिनके नाम पर इस सड़क का नाम है।
डिब्रूगढ़ की ‘पहली विश्व-स्तरीय सड़क में प्रॉपर ड्रेनेज सिस्टम है, सोलर स्ट्रीट लाइट्स हैं और बगीचा भी। इंडियन एक्सप्रेस से बात करते हुए बोइरगिमोथ लोकैलिटी के लोग बताते हैं कि कुछ समय पहले तक यह सड़क कच्ची हुआ करती थी। बारिश में इतना कीचड़ भर जाता था कि निकलना मुश्किल होता था। इसमें छोटे-बड़े कई गढ्ढे थे, लेकिन आज इसे देखकर यकीन नहीं होता कि ये वही सड़क है।
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डिब्रूगढ़ के बोइरगिमोथ इलाक, जिसमें लगभग हजार लोग रहते हैं कि यह सबसे पुरानी सड़क है। साल 2008 में इस गली को गौतम के पिता हेरम्बा बारदोलोई का नाम दिया गया और संयोग से, उसी वर्ष शहर के इस महान समाजसेवी का निधन हो गया था।

इस तरह आया बदलाव
इंडियन एक्सप्रेस से बात करते हुए गौतम बताते हैं कि जिस वक्त मेरे पिता के नाम पर इस सड़क का नाम रखा गया उस समय ये सड़क बहुत बुरी हालत में थी। बारिश में घुटनों तक पानी भर जाता था, इसलिए मैंने 2013 में इसकी मरम्मत कराने के बारे में सोचा। गौतम बताते हैं कि मेरे पिता पत्रकार थे, समाज में उनकी बहुत इज्जत थी। उन्होंने साल 1968 में बाढ़ के दौरान अकेले एक मछुआरे समुदाय के पुनर्वास में मदद की। वह उन्हें मोहनघाट से निकाल कर नोतुन तेलेका साइरिंग मोटेक गांव ले गए। उन्होंने उनके लिए जमीन के कागजात तैयार करवाए, लाइब्रेरी बनवाई और एक प्रार्थना घर भी। हर साल बिहू उत्सव पर मेरी मां को आज भी उस गांव में झंडा फहराने के लिए बुलाया जाता है।

गौतम कहते हैं कि मैंने 2013 में इस सड़क के पुनर्निर्माण का काम शुरू किया था। मैं हॉन्गकॉन्ग में काम करता हूं और मेरी पत्नी, बेटा व मां यहां रहते हैं। इसलिए मैं समय-समय पर आकर काम देखतरा रहता हूं। 2013 की शुरुआत में कुछ स्थानीय लड़कों की मदद से उन्होंने सड़क को लगभग डेढ़ फीट ऊंचा करने के लिए रास्ता भरना शुरू किया। इसके बाद लोगों के घरों के सामने पीवीसी पॉवर ब्लॉक का भी इस्तेमाल किया। हालांकि, इस रास्ते को मॉडर्न सड़क में बदलने के लिए असल काम साल 2017 में शुरू हुआ।

लोगों ने भी की मदद
गौतम कहते हैँ कि मैंने सबसे पहले ड्रेनेज सिस्टम पर काम किया इसके न होने की वजह से हर साल बारिश में सड़क पर बहुत ज्यादा पानी भर जाता था। इसके बाद सड़क के दोनों तरफ पेड़ लगाना शुरू किया। कुछ लोगों ने सड़क को पेंट करने में भी काफी मदद की। वह कहते हैं कि इस 178 मीटर लम्बी सड़क के दोनों तरफ बगीचा लगाया है, जिसमें धनिया, हल्दी और पपीते जैसे पेड़ लगाए गए हैं।

इतना आया खर्च
सड़क की लागत के बारे में पूछने पर गौतम कहते हैं कि मैं एक विश्व स्तरीय सड़क बनाना चाहता था। इसकी लागत का सही अंदाजा तो मुझे नहीं है, लेकिन लगभग 13 लाख रुपये का खर्च इसमें आया है। वह कहते हैँ कि मैंने पांच साल में ये काम पूरा कर पाया। अब लोग सबसे पहले मुझसे पूछते हैं, ‘आपका कितना पैसा खर्च हुआ? क्या यह एक सामुदायिक पहल थी?’ जब मैं बताता हूँ कि मैंने अकेले किया है तो लोग चौंक जाते हैं, लेकिन यह चौंकने वाली बात नहीं है। मेरे पिता ने अपना पूरा जीवन सामाजिक सेवा में समर्पित किया। यह तो कम से कम मैं कर ही सकता था।
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