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किसी भी धर्म से बड़ा मानव धर्म होता है। शायद यही समझते हुए रमजान के पाक महीने में भी रोजदार आरिफ ने अपना रोजा तोड़ इंसानियत का परिचय देते हुए एकता की मिसाल पेश की। साथ ही मजहब के नाम पर इंसान और इंसानियत को बांटने वालों को भी सबक दिया।
उन्होंने मैक्स अस्पताल में जीवन की जंग लड़ रहे एक युवक को खून देने में जब रोजा आड़े आया तो आरिफ ने खुशी खुशी रोजा तोड़ा और युवक की जान बचा ली। महादान के रूप में युवक को रक्तदान किया। आरिफ खान देहरादून के नालापानी चौक सहस्रधारा रोड में रहते हैं। वे नेशनल एसोसिएशन फॉर पेरेंट्स एंड स्टूडेंट्स (एनएपीएसआर) के राष्ट्रीय अध्यक्ष हैं।
देहरादून शहर के मैक्स अस्पताल में भर्ती अजय बिजल्वाण (20 वर्ष) की हालत बेहद गंभीर है और आइसीयू में है। लीवर में संक्रमण से ग्रसित अजय की प्लेटलेट्स तेजी से गिर रही थीं और शनिवार सुबह पांच हजार से भी कम रह गई थीं। चिकित्सकों ने पिता खीमानंद बिजल्वाण से कहा कि अगर ए-पॉजिटिव ब्लड नहीं मिला तो जान को खतरा हो सकता है। काफी कोशिश के बाद भी डोनर नहीं मिला। इसके बाद खीमानंद के परिचितों ने इस संबंध में सोशल मीडिया पर पोस्ट कर मदद मांगी।
आरिफ ने बताया कि हर रोज की तरह शनिवार सुबह, उन्होंने व्हाट्सएप चेक किया। इस दौरान ग्रुप में एक मैसेज आया, जिसमें लिखा था कि उत्तरकाशी के चिन्यालीसौड़ निवासी अजय बिजल्वाण पुत्र खीमानंद मैक्स अस्पताल के आईसीयू में भर्ती है। वायरल फीवर के कारण उनकी प्लेटलेट्स पांच हजार से नीचे पहुंच गई। दस दिन पहले भी खून चढ़ाया गया था।
बाद में दिक्कत बढ़ने के कारण शुक्रवार शाम मैक्स में भर्ती करा दिया गया। अजय का ब्लड ग्रुप एपॉजीटिव है। उसे तत्काल खून नहीं मिला तो जान को खतरा हो सकता है। बकौल आरिफ, मैसेज पढ़कर उन्होंने अस्पताल से संपर्क कर ब्लड देने की इच्छा जताई और उन्होंने अजय के पिता को फोन किया। उन्होंने कहा कि वह रोजे से हैं, अगर चिकित्सकों को कोई दिक्कत नहीं है तो वह खून देने के लिए तैयार हैं। चिकित्सकों ने कहा कि खून देने से पहले कुछ खाना पड़ेगा, यानी रोजा तोड़ना पड़ेगा। खैर, आरिफ खान ने जरा भी देर नहीं की और अस्पताल पहुंच गए। उनके खून देने के बाद चार लोग और भी पहुंचे।
आरिफ खान ने बताया कि `अगर मेरे रोजा तोड़ने से किसी की जान बच सकती है तो मैं पहले मानवधर्म को ही निभाऊंगा। रोजे तो बाद में भी रखे जा सकता है, लेकिन जिंदगी की कोई कीमत नहीं`। उनका कहना है कि `रमजान में जरूरतमंदों की मदद करने का बड़ा महत्व है। मेरा मानना है कि अगर हम भूखे रहकर रोजा रखते हैं और जरूरतमंद की मदद नहीं करते तो अल्लाह कभी खुश नहीं होंगे। मेरे लिए तो यह सौभाग्य की बात है कि मैं किसी के काम आ सका`।