अपनी जिंदगी से तमाम शिकवे हैं तो एक बार संजीव की कहानी जरूर पढ़ लेना

कहते हैं इंसान में आगे बढ़ने की ललक हो तो कोई भी बाधा काम के रास्ते में नहीं आती है। ये बात मुजफ्फरनगर के संजीव कुमार पर सटीक बैठती है। संजीव की जिंदगी का संघर्ष इसलिए भी मायने रखता है क्योंकि दुर्भाग्य से वो जन्मजात दृष्टिहीन हैं। लेकिन उनकी उपलब्धियां समाज के उन लोगों के लिए नजीर हैं जो सबकुछ सही होने के बावजूद संघर्ष करने से घबराते हैं। शारीरिक रूप से अक्षम होने के बावजूद संजीव ने बीएड में टॉप किया है। लखनऊ के शकुंतला मिश्रा विश्वविद्यालय के दीक्षांत समारोह में उन्हें गोल्ड मेडल से नवाजा गया है।
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परिवार से विरासत में मिला संघर्ष
पूरी कहानी सुनने के बाद अगर ये कहा जाए कि संजीव को संघर्ष उनके परिवार से विरासत में मिला है तो गलत नहीं होगा। बताते चलें कि संजीव के कुल पांच भाई हैँ, जिसमें तीन जन्म से दृष्टिहीन हैं। साथ ही उनके पिता की भी हाल ही में मृत्यु हो चुकी है, जिसके चलते परिवार पर मुसीबतों का पहाड़ टूट पड़ा था। परिवार के इन हालातों में तीसरे नंबर के भाई शिव कुमार ने मोर्चा संभाला और शुरुआत मजदूरी से की। अब वह दूसरा कार्य कर तीनों भाइयों की पढ़ाई का खर्चा उठाते हैं। तीनों भाई पढ़ाई में अच्छे हैं। दो भाई भी मेडल हासिल कर चुके हैं। संजीव सरकारी शिक्षक बनकर अपने परिवार के लोगों को सभी सुविधाएं उपलब्ध कराना चाहते हैं।
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अपनी सफलता का श्रेय दोस्तों को देते हैं संजीव
संजीव अपनी सफलता का जिक्र करते बताते हैं कि ये सब उनके दोस्तों के सहयोग के बिना असंभव था। उनके दोस्तों से हमेशा मदद की। क्लास में अगर कोई चैप्टर या चार्ट समझ में नहीं आता था तो दोस्त बाद में उसे समझाते थे। दोस्तों के साथ ही टीचर्स का भी सपोर्ट रहा, जरूरत पड़ने पर टीचर्स क्लास के बाद भी उन्हें समझा देते थे। जिससे लेसन क्लियर करने में काफी मदद मिलती थी। संजीव ने बताया कि उनकी लाइब्रेरी में ब्रेल लिपि में भी कई किताबें हैं, जिसके चलते उन्हें आगे बढ़ने में मदद मिली। संजीव के अनुसार सुनकर याद करने की क्षमता अच्छी होने के कारण दोस्तों व टीचर्स से सुना पाठ भी उन्हें आसानी से याद हो जाता था।
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