900 से ज्यादा लोगों की नसबंदी कर चुकी गायत्री सिंह की कहानी, उन्हीं की जुबानी
देश में बढ़ती जनसंख्या पर काबू पाने के लिए एक रास्ता परिवार नियोजन भी है। पर इस परिवार नियोजन के लिए भी सबसे कम प्रयोग किए जाने वाले उपायों में से एक है पुरूष नसबंदी। इस बात का की पुष्टि राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण एनएफएचएस-8 में हुई है। पर इससे जुदा एक बात लखनऊ की प्रसूति रोग विशेषज्ञ डॉक्टर गायत्री सिंह ने कर दिखाई है। क्योंकि वो पिछले 16 माह में 900 से ज्यादा नसबंदी कर चुकी हैं। इसके लिए उन्होंने विशेष ट्रेनिंग भी ली है।
पुरूष नसबंदी को करना आसान नहीं
गायत्री सिंह ने बताया पुरूष नसबंदी को करना आसान नहीं था क्योंकि समाज में एक अलग तरह का माहौल था। साथ ही एक महिला का पुरूष नसबंदी करना भी समाज के लोगों को अजीब सा लगता है। मैं समाज के इस रूख का सामना करने के लिए तैयार थी। पर जब मैंने काम करना शुरू किया तो इस तरह की किसी भी दिक्कत का मुझे सामना नहीं करना पड़ा।
ट्रेनिंग बतौर प्रसूति रोग विशेषज्ञ हुई
गायत्री सिंह ने बताया कि उनकी ट्रेनिंग बतौर प्रसूति रोग विशेषज्ञ हुई है और वो अभी बक्खी का तालाब एरिया में अपना क्लीनिक चला रही हैं। उन्होंने बताया कि पुरूष नसबंदी करने की शुरूआत तब शुरू की जब वो उत्तर प्रदेश सरकार की हौसला साझेदारी योजना की वर्ष 2015 में भागीदार बनीं। इस योजना के तहत प्राइवेट क्लीनिक को नसबंदी करने के लिए अधिकृत किया गया था।
पहल पर किसी ने भी सवाल नहीं उठाए
हौसला साझेदारी योजना में अधिकृत होने के बाद मैं नसबंदी करने के लिए पांच दिनों की ट्रेनिंग भी ली। नसबंदी करने की मेरी पहल पर किसी ने भी सवाल नहीं उठाए और न ही कोई सवाल पूछा। यही नहीं मुझे यह करता हुआ देखकर कई प्रसूति रोग विशेषज्ञ डॉक्टरों ने भी नसबंदी करने की ट्रेनिंग ली है।
पिछले साल उत्तर प्रदेश में 8,012 लोगों की नसबंदी की गई
परिवार नियोजन कार्यक्रम, राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन, उत्तर प्रदेश के महाप्रबंधक डॉक्टर इरफान वजीथ ने कहा कि ऐसा नहीं है कि इससे पहले किसी महिला डॉक्टर ने लोगों की नसबंदी नहीं की। बल्कि सामाजिक परिस्थितियों की वजह से ऐसा बहुत ज्यादा नहीं हो पा रहा है।
वैसे भी उत्तर प्रदेश में पुरूषों की नसबंदी सामान्य नहीं है। पिछले साल उत्तर प्रदेश में 8,012 लोगों की नसबंदी की गई। ज्यादा नसबंदी न हो पाने के पीछे एक वजह और भी लोगों में फैले भ्रम भी हैं। साथ ही लोग इसे सामाजिक प्रतिष्ठा से भी जोड़ कर देखते हैं। नियमों के मुताबिक एक सर्जन हर 30 पुरूष या महिलाओें की प्रति दिन नसबंदी कर सकते हैं।
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