26 साल तक सरकार ने नहीं सुनी फरियाद तो किसानों ने खुद बनाई नहर

जब उम्मीदों की उपेक्षा हर सीमा को तोड़ देती है तो कुछ ऐसा ही होता है जो उदाहरण बन जाता है और उत्तर प्रदेश के बरेली में कुछ ऐसी ही तस्वीर देखने को मिल रही है। बरेली जिले के बहेरी इलाके में अंग्रेजों के समय बनी नहर साल 1990 में टूट गई। लेकिन तब से लेकर आज तक यहां के लोग सरकार से उम्मीद लगा कर बैठे रहे कि नहर फिर से बनाया जाएगा और फसलों की सिंचाई कि दिक्कतें दूर हो जाएगी।
लेकिन 26 साल गुजर गए। सरकार ने कभी भी किसानों के इस मांग की तरफ ध्यान तक नहीं दिया। सरकार की इस उदासीनता के बाद किसानों ने आपसी मदद से ही नहर निर्माण करने का फैसला किया। फिर क्या था, करीब 70 हजार रुपए जमा हुए और मिट्टी और बालू के बोरे का इस्तेमाल कर कच्ची नहर का निर्माण शुरू किया गया। 98 फीट लंबी और 20 फीट चौड़ी यह नहर आज बनकर तैयार हो जाएगी।
1990 के बाद से नहर का निर्माण बंद
चीफ डिवेलपमेंट ऑफिसर एस एस अवस्थी का कहना है, 'अंग्रेजों के शासनकाल के समय से लेकर 1990 तक जिला प्रशासन, रबी फसल के सीजन में हर बार यहां कच्ची नहर का निर्माण करवाता था। हर साल मानसून के वक्त यह नहर क्षतिग्रस्त हो जाती थी और ठंड के मौसम में इसे दोबारा बनाया जाता था। लेकिन बढ़ती लागत को देखते हुए 1990 के बाद से नहर का निर्माण बंद करवा दिया गया। यहां पर एक पक्की नहर के निर्माण के लिए हमने राज्य सरकार को 2014 में ही प्रस्ताव भेज दिया था। लेकिन यह मामला अब तक लंबित है।'
अवस्थी आगे कहते हैं, 'गांववालों ने हमें सूचना दी थी कि टेहरा गांव के लोगों के साथ मिलकर उन्होंने खुद ही नहर का निर्माण शुरू कर दिया है। मैं जल्द ही नहर का निरीक्षण करने जाउंगा। जिला प्रशासन जल्द ही इस मामले को दोबारा उठाएगा।' टेहरा गांव के किसान रामपाल सिंह की मानें तो, 'पानी की कमी के कारण हमारे इलाके की फसलों की गुणवत्ता दिन-प्रतिदिन खराब होती जा रही थी। हमने जिला प्रशासन और नेताओं के सामने इस संदर्भ में कई बार गुहार लगाई लेकिन हमारी आवाज अनसुनी कर दी गई।'
लेकिन गांव वालों की कोशिश रंग लाई और नहर में पानी इकट्ठा भी होने लगा। इससे एक बात तो साबित हो जाती है कि हमें किसी से उम्मीद उतनी ही करनी चाहिए जिससे हमारी क्षति ना हो। अगर हौसला और लगन हो तो कुछ भी मुमकिन हो सकता है।
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