जानवरों को बचाने के लिए अपनी जान पर खेल गई ये महिला अधिकारी
आजकल के जमाने में लोग इंसानों को बचाने के लिए आगे नहीं आते, ऐसे में अगर कोई जंगल के जानवरों को बचाने के लिए अपनी जान पर खेल जाए तो उसकी तारीफ करना तो बनता है।
पश्चिम बंगाल के मिदनापुर जिले में एडिशनल डिविजनल फॉरेस्ट ऑफिसर (ADFO) पुरबी महतो ने ऐसा ही किया। आदिवासियों से जानवरों की रक्षा करने के लिए वह अपनी जान पर खेल गईं। उत्तर प्रदेश के आईजी नवनीत सिकेरा ने अपने फेसबुक पेज पर पुरबी महतो के बारे में जानकारी शेयर की है। इस फेसबुक पोस्ट में उन्होंने लिखा -
क्या आप अनुमान लगा सकते हैं कि यह महिला जो जमीन पर बैठी हजारों लाठी लिए लोगों के सामने हाथ जोड़कर भीख़ माँग रही है यह कौन है ?
यह महिला जिला मिदनापुर की एडिशनल डीएफओ पुरबी महतो हैं और जो कर्त्तव्य पालन के लिए आदिवासियों के सामने हाथ जोड़कर बैठ गयीं। मिदनापुर जिले के लालगंज आदिवासी क्षेत्र में एक परम्परा है जिसमें हाथों में डण्डे-लाठी, खुखरी , नुकीले हथियार लिए हजारों आदिवासी शिकार के लिए जंगल में जाते हैं और हज़ारों बेगुनाह जानवर मार दिए जाते हैं , इस बार भी नियत दिन हजारों आदिवासियों को महा शिकार के लिए निकलना था लेकिन वन विभाग की पूरबी ने तय कर लिया था वह इसे रोकेंगी।
उन्होंने पूरे प्रयास किये, महीनों पहले से जागरूकता अभियान चलाये , कानून का भय भी दिखाया लेकिन अंत दिन कुछ भी काम न आया। पांच हजार से अधिक आदिवासी हथियार लेकर जंगल की ओर बढ़े जा रहे थे। पूरबी महतो ने माहौल भांपते हुए जनजाति के बुजुर्गों से एक भावनात्मक अपील की। वह जमीन पर हाथ जोड़कर बैठ गयीं और बहुत मार्मिक अपील की। उन्होंने कहा कि अपने हथियार उठाओ और मुझे भी मार दो लेकिन जब तक मेरी सांस है , मैं आपको आगे नहीं जाने दूँगी।
पूरबी महतो की यह भावनात्मक अपील काम कर गई और बुजुर्गों के निर्णय पर सभी आदिवासी वापस लौट गए। दिल्ली से दूर इस नायिका को बहुत पहचान नहीं मिली। 29 मार्च के टेलीग्राफ अखवार में मुझे यह छोटी सी खबर दिखी तो मुझे लगा कि पूरबी महतो का यह कार्य एक महानायिका का कार्य है। आईये हम सब मिलकर उनको सलाम भेजें और इतना भेजें की उन तक पहुँच जाए।
इस महानायिका पूरबी महतो को मेरा सलाम।
टेलीग्राफ की रिपोर्ट के अनुसार, पूरबी महतो ने आदिवासियों से कहा, “अगर आप अभी भी शिकार के लिए जाना चाहते हैं तो आप जा सकते हैं लेकिन उससे पहले आप अपने डंडों और कुल्हाड़ी से मेरी हत्या कर दीजिए।”
एक आदिवासी समूह का नेतृत्व कर रहे दिनेन हैमब्राम नाम ने टेलीग्राफ से कहा कि यह महा शिकार त्योहार हमारी परंपरा है लेकिन वह महिला आंखों में आंसू लिए हमारे बुजुर्गों के पैरों को छूकर विनती करने लगी कि हम शिकार न करें और इसीलिए पहली बार ऐसा हुआ है कि हम बिना शिकार किए अपने घर वापस लौट गए। वहीं इस मामले पर टेलिग्राफ से बातचीत के दौरान पूरबी महतो ने कहा कि मेरे पिछले 17 साल के करियर में मैंने ऐसा पहली बार किया है।
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