गरीब बच्चों को मुफ्त शिक्षा देने के लिए ट्रेन में 'भीख' मांगता है ये प्रोफेसर

आपने अक्सर ट्रेन, बस या सार्वजनिक स्थानों पर हाथों में कुछ सामान लिए लोगों को उसे बेचते हुए देखा होगा। इसी तरह मुंबई के एक पूर्व प्रोफेसर हाथ में अपने कार्यों के सबूत लेकर लोगों से मदद मांगता है। गरीब बच्चों को पढ़ाने के लिए आपने कई तरह के प्रयासों के बारे में सुना होगा। लेकिन संदीप देसाई का यह प्रयास हमारी व्यवस्था पर चोट के साथ मानवता की मिसाल भी दे जाता है।
मुंबई की लोकल ट्रेनों में मांगते हैं 'भीख'
मुंबई के रहने वाले प्रोफेसर संदीप देसाई की आवाज हफ्ते के कई दिन मुंबई की लोकल ट्रेनों में सुनाई पड़ती है। देश के नामी-गिरामी मैनेजमेंट संस्थानों में पढ़ाने वाले प्रोफेसर संदीप देसाई का सपना है मुंबई और उसके आसपास के इलाकों में हर ग़रीब बच्चे को शिक्षित करना। हालांकि शिक्षा जैसे महान काम के लिए मदद मांगने को भीख तो नहीं कहा जा सकता है। लेकिन आपको हम बता दें, संदीप को रेलवे पुलिस कई बार भीख मांगने के जुर्म में पकड़ चुकी है।
क्या है संदीप की कहानी?
संदीप देसाई मुंबई में रहते हैं, पेशे से एक मैराइन इंजीनियर थे लेकिन अपने बीमार पिता की सेवा के लिए नौकरी छोड़ी और मुंबई आकर मैनेजमेंट संस्थानों में पढ़ाना शुरु किया। दिल्ली मुंबई सहित देश के कई मैनेजमेंट संस्थानों में बच्चों को पढ़ाने के दौरान उन्हें एहसास हुआ कि भारत में आज भी संपन्न और सशक्त वर्ग ही शिक्षा का लाभ उठाने में सक्षम है। भारत में पहले गुरुकुल की परंपरा थी और अमीर हो या ग़रीब सभी के बच्चे गुरुकुल में निशुल्क पढ़ते थे। मैं जानता हूं कि ये परंपरा चलाना अब संभव नहीं लेकिन ग़रीब पूरी तरह शिक्षा से वंचित रहें यह ठीक नहीं।
मां से मिली प्रेरणा
उनकी मां खुद एक टीचर थीं और उन्होंने ही उन्हें इस काम के लिए प्रोत्साहित किया। इसके बाद संदीप ने गरीब बच्चों को पढ़ाने के लिए एक छोटा सा स्कूल शुरू किया। पहले स्कूल की नींव पड़ने के साथ ही मैंने अपनी कमाई से श्लोका मिशनरीज नाम की एक संस्था बनाई। माता-पिता के गुज़रने के बाद हर महीने अपनी कमाई का ज़्यादातर हिस्सा इन बच्चों की शिक्षा के लिए देने लगे।
2005 में स्कूल स्थापित किया
इस ट्रस्ट के जरिए उन्होंने अपने साथियों की मदद से मुंबई के गोरेगांव (ईस्ट) में 2005 में एक स्कूल स्थापित किया। इस इलाके में स्लम इलाके के कई सारे बच्चे स्कूल नहीं जा पाते थे। उनके लिए आसानी से शिक्षा की व्यवस्था उपलब्ध हो गई थी। धीरे-धीरे स्कूल में पढ़ने वाले बच्चों की संख्या 700 से ज्यादा हो गई और क्लास 8वीं तक पढ़ाई होने लगी। हालांकि यह स्कूल 2009 में बंद हो गया, क्योंकि उस साल शिक्षा का अधिकार कानून पास हुआ था और इस कानून के तहत प्राइवेट स्कूलों को गरीब बच्चों के लिए 25 प्रतिशत सीटें आरक्षित करने की व्यवस्था कर दी गई थी।
ट्रेन में यात्रियों से मांगते हैं मदद
पहले तो संदीप देसाई को कॉर्पोरेट सोशल रिस्पॉन्सिबिलिटी के तहत कई कंपनियों ने पैसे दिए लेकिन धीरे-धीरे उनके स्कूल का दायरा बढ़ता गया और उन्होंने राजस्थान के उदयपुर और बिहार में भी ऐसे ही स्कूल खोले। जिसके लिए संदीप को और पैसों की जरूरत पड़ने लगी। इस जरूरत को पूरा करने के लिए संदीप मुंबई की लोकल ट्रेनों में यात्रियों से मदद मांगने लगे। वह बताते हैं कि यहां से उन्हें अच्छे-खासे पैसे मिल जाते हैं। संदीप कहते हैं कि अगर आप किसी को स्कूल भेजकर शिक्षित करते हैं, तो आप उसे जिंदगी भर के लिए अपने पैरों पर खड़ा करते हैं।
आज उन्हें हर महीने 5 लाख रुपये मिल जाते हैं। संदीप कहते हैं कि देश के नेताओं और जनप्रतिनिधियों ने उनकी कोई सहायता नहीं की है। ग्रामीण इलाकों में स्कूल चलाने के लिए उन्हें किसी तरह की मदद नहीं मिली। यहां तक कि स्कूल बनवाने के लिए पानी भी उन्हें खुद से खरीदना पड़ा।
सलमान खान भी करते हैं मदद
आपको बता दें, संदीप के इस नेक कार्य में बॉलीवुड सुपरस्टार सलमान खान भी उनकी मदद को आगे आए। सलमान ने उनसे कहा है कि जब तक वो एक्टिंग करते रहेंगे उनकी मदद करते रहेंगे। संदीप के स्कूल में बच्चों को मुफ्त शिक्षा के साथ ही खाने और कपड़े भी मिलते हैं। महाराष्ट्र के यवतमाल में सदाकड़ी, नईझर गांवों में उनके स्कूल हैं। संदीप कहते हैं, 'मेरे स्कूल में पानी और बिजली का पानी कनेक्शन भी नहीं मिला। हमने जेनरेटर के लिए खुद से व्यवस्था की।'
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