नक्सल प्रभावित बस्तर को उसकी खोई हुई पहचान दिलाने में जुटे ये युवा
भारत का सर्वाधिक नक्सल प्रभावित प्रदेश छत्तीसगढ़ है। जहां की कई प्रसिद्ध जगह नक्सल हिंसा के चलते देश-विदेश में अपनी पहचान खोते जा रहे हैं। इन्हीं में से एक जिला बस्तर है जो अकूत प्राकृतिक वैभव से संपन्न होने के बाद भी अपनी असली पहचान पाने को जूझ रहा है। बस्तर जिले को उसकी खोई हुई पहचान दिलाने और इसकी देश-दुनिया में साकारात्मक तस्वीर को सामने लाने में युवाओं का एक दल जी जान से जुटा हुआ है जिसका नाम 'दंडक दल' है।
शहर के पढ़े-लिखे युवाओं और आदिवासियों के करीब 50 लोगों का यह 'दंडक दल' सिनेमा, वृत्तचित्र और सोशल मीडिया के जरिए देश-दुनिया के सामने बस्तर की सुंदर व सकारात्मक तस्वीरें प्रस्तुत करने में सफल हो रहा है। इस दल की कोशिश रंग लाती दिख रही है। इस दल ने पुरातात्विक धरोहरों, मंदिरों व सांस्कृतिक मूल्यों पर आधारित 25 से अधिक लघु वृत्तचित्र बनाने के साथ ही बस्तर की पहली हल्बी भाषा में फिल्म 'मोचो मया' बनाकर यह टीम इतिहास रच चुकी है। इनके द्वारा स्वच्छता पर बनाए गए वृत्तचित्र 'सुनो मन' को बीते वर्ष केंद्र सरकार द्वारा प्रथम पुरस्कार प्रदान किया गया था इस दल ने दरभा के जंगलों में पांच गुफाओं की खोज के साथ-साथ एक जलप्रपात भी खोजा है। दल के लोग जंगलों में नई-नई चीजों की खोज करते हैं। उनका सपना है कि बस्तर की पहचान नक्सलवाद से नहीं बल्कि पर्यटन से हो।
'दंडक दल' की इस तरह हुई शुरुआत
गांव में युवाओं को रोजगार मिले इन सबको जोड़ने और प्रेरित करने का 'दंडक दल' के संस्थापक सदस्य अविनाश प्रसाद को जाता है। अविनाश बताते हैं कि एक दिन दोस्तों के साथ चाय पी रहे थे। बातों ही बातों में बस्तर पर चर्चा छिड़ गई। यहां की नकारात्मक छवि को लेकर सभी ने चिंता जताई। इसी बीच बात निकली कि क्यों न इसके लिए कुछ किया जाए। फिर क्या था, हेमंत कश्यप, रजनीश पाणिकर, गुफा विज्ञानी जयंत विश्वास व भूगर्भशास्त्री जितेंद्र नक्का के साथ दंडक दल का गठन हो गया। धीरे-धीरे आदिवासी युवाओं को भी जोड़ना शुरू किया, इससे मनचाही राह मिल गई।
ऐसे जुड़े युवा
दंडक दल में दरभा, तीरथगढ़, कोटमसर, मांझीपाल, कोलेंग, चित्रकोट, दंतेवाड़ा, बारसूर, बड़े डोंगर, बीजापुर व हांदावाड़ा समेत अन्य इलाके के 50 से अधिक युवा इस दल में हैं। हल्बी फिल्म 'मोचो मया' में बिना पारिश्रमिक लिए ही स्थानीय कलाकारों ने सहयोग किया। छत्तीसगढ़ फिल्म इंडस्ट्री ने इसके निर्माता-निदेशक को पुरस्कृत किया। आर्थिक दिक्कतों के बावजूद यह दल पूरी तरह सक्रिय है। आज इस दल में कविता, आरती शर्मा, फातिमा, फूलवति बघेल, मुन्ना बघेल, उमेश कश्यप, मोतीराम, कमल कुमार, यशपाल, चंद्रशेखर, पदमनाथ कश्यप, हरेराम, शिवशंकर, लूमन बघेल, पूरन नाग, जागृति नाग आदि शामिल हैं।
ढूंढीं चार दुर्लभ गुफाएं
दंडक दल के सदस्यों ने ग्रामीणों की मदद से बीते कुछ वर्षों में डूमरकरपन, जोंदरी करपन, मेंडरापारी व हरिगुफा की खोज की है। ये गुफाएं कांगेरघाटी राष्ट्रीय उद्यान क्षेत्र में संभाग मुख्यालय से करीब 45 किलोमीटर के दायरे में स्थित हैं। इसी दल ने बारसूर क्षेत्र के मनोरम जलप्रपात हांदावाड़ा, शिवगंगा नदी व घाटी के ऊपर स्थित लघु प्रपात को पर्यटन विभाग के संज्ञान में लाने का काम किया और सोशल मीडिया पर दुनिया को इनके दीदार कराए। पर्यटन विभाग अब इनके संरक्षण की योजना बना रहा है। हांदावाड़ा में दल के सदस्यों को नक्सल धमकी भी मिली, मगर परवाह नहीं। इस दल ने बारसूर इलाके में ही इंद्रावती नदी घाट के छोटे छिंदनार में मगरमच्छों के नैसर्गिक वास पर वृत्तचित्र बनाया।

बस्तर जिले का मनोरम दृष्य। नोट- सभी फोटो बस्तर दर्शन के फेसबुक पेज की
पर्यटन की यहां ढेर संभावनाएं: अविनाश
नक्सल समस्या को लेकर दुनिया के सामने बस्तर की जो छवि बन गई है, उससे तकलीफ होती है। यहां की वादियां, नदियां, यहां के जंगल व वन्यजीव, चारों तरफ फैली हरियाली, यहां की लोक परंपरा, लोकोत्सव, हर चीज से हमें प्रेम है। पर्यटन की यहां ढेर संभावनाएं हैं। दंडक दल का मकसद बस्तर की बिगड़ी हुई छवि को बदलना है।
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