बदलाव की कहानी: 'अब लोग मुझे मेरे पति के नहीं बल्कि मेरे नाम से जानते हैं'
आज से दस बरस पहले जब हमारी शादी हुई थी तो गाँव की सभी औरतें सिर्फ घर का चूल्हा चौका करती थीं या फिर खेतों में पति की थोड़ी बहुत मदद। हमारी खुद की कोई पहचान ही नहीं थी यहां तक कि हमारा नाम तक कोई नहीं जानता था क्योंकि हमें 'फलां की बीबी' या 'फलां की अम्मा' के नाम से पुकारते थे। लेकिन अब लोग मुझे मेरे नाम से जानते हैं, पहचानते हैं और सम्मान भी देते हैं। ये कहना है 35 वर्षीय सुषमा देवी का, जो रायबरेली जिले के एक छोटे से गाँव में रहती हैं।
सुषमा ने स्वयं सहायता समूह की मदद से सिलाई सेंटर शुरू किया और अब वो गाँव की बाकी महिलाओं और लड़कियों को ट्रेनिंग भी देती हैं। अब ये जगह एक छोटी सी बुटीक में बदल गई हैं। सुषमा ने बताया, “मैंने सिलाई सीख रखी थी और अगर आपको किसी चीज की जानकारी है तो उसका फायदा उठाना चाहिए। मैंने पहले घर में ही आस-पास के लोगों के कपड़े सिलने शुरू किए। धीरे-धीरे कस्टमर बढ़ते गए तो मुझे लगा कि एक दुकान खोल देनी चाहिए।”
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शुरुआत में दो लड़कियां सिलाई सीखने आई फिर धीरे -धीरे महिलाएं भी घर का काम खत्म करके दोपहर को आने लगी। काम बढ़िया चलने लगा और कमाई भी होने लगी। दुकान खोलने के लिए मैंने स्वयं सहायता समूह से पैसे उधार ले लिए थे और धीरे-धीरे करके चुका भी दिए। इस समूह से अभी करीब 20 महिलाएं जुड़ी हैं, हम हर महीने मीटिंग करते हैं और थोड़े-थोड़े पैसे जमा करते हैं। अगर किसी को इकट्ठा पैसों की जरूरत होती है तो वो समूह से ले लेता है और हर महीने थोड़ा-थोड़ा करके लौटाता रहता है।
सुषमा का सिलाई सेंटर
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अब जब मेरे पति या बच्चों को कभी पैसों की जरूरत पड़ती है तो मैं उन्हें अपनी कमाई से पैसे दे सकती हूं, मुझे बहुत खुशी होती है। कम से कम मैं अब आत्मनिर्भर हूं, खुद कमा सकती हूं और अपना घर भी चला सकती हूं।
पिछले कुछ वर्षों में उत्तर प्रदेश समेत कई राज्यों में स्वयं सहायता समूहों की चलन तेजी से बढ़ा है और इसने ग्रामीण महिलाओं की न केवल जिंदगियां संवारी हैं बल्कि उन्हें आर्थिक रूप से भी मजबूत बनाया है। अब ये महिलाएं घर की दहलीज लांघकर मीटिंग करने जाती हैं और कई बड़ी-बड़ी परेशानियों को एक साथ बैठकर झट से सुलझा लेती हैं। समूह से जुड़कर ग्रामीण महिलाएं स्वालंबी बन रही हैं। कई महिलाओं ने अपना खुद का रोजगार भी शुरू किया और आज घर के खर्च चलाने में पति की मदद कर रही हैं एक रिपोर्ट के मुताबिक भारत में इस समय लगभग 61 लाख सहायता समूह चल रहे हैं, जिनमें ज्यादातर महिलाओं के ही हैं।
सुषमा बताती हैं, “अब जब मेरे पति या बच्चों को कभी पैसों की जरूरत पड़ती है तो मैं उन्हें अपनी कमाई से पैसे दे सकती हूं, मुझे बहुत खुशी होती है। कम से कम मैं अब आत्मनिर्भर हूं, खुद कमा सकती हूं और अपना घर भी चला सकती हूं। ”
क्या है स्वयं सहायता समूह
स्वयं सहायता समूह ग्रामीण गरीबों का समूह है जो अपनी इच्छा अनुसार संगठित होकर सदस्यों को गरीबी रेखा से ऊपर उठाना चाहते हैं। समूह से जुड़े सदस्य छोटी रकम जमा करने को तैयार होते हैं जो बाद में बचत कोष में बदल जाती है। इसका उद्देश्य सबसे निचले स्तर के लोगों को संगठित कर गरीबी को मिटाना है।
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