पिता की सारथी बनी 13 साल की बेटी, गुरुग्राम से दरभंगा साइकिल पर बैठाकर लाई
कोरोना वायरस (Coronavirus) की वजह से इस समय लोगों की जिंदगी बहुत ही दिक्कत में चल रही है। लॉकडाउन (Lockdown) ने लाखों लोगों की रोजी-रोटी ले ली है, तो वहीं अब शहरों से मजदूरों पालयन भी जारी है। लॉकडाउन (Lockdown) की वजह से इस समय गरीबों पर बहुत दिक्कत आई है, उन्हें दो वक्त की रोटी का जुगाड़ करना बहुत ही मुश्किल हो गया है। शहर में इस तरह की आई दिक्कत से प्रवासियों को अपना ही गांव याद आया है।
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इस कोरोनाकाल (Coronavirus) में हर कोई अपने गांव (Village) पहुंचना चाह रहा है। सरकार ने प्रवासी मजदूरों (Migrant Laboures) को उनके घर तक पहुंचाने के लिए व्यवस्था भी की, लेकिन वह नाकाफी साबित हुई है। अब दूसरे राज्यों में फंसे हुए मजदूर पैदल, ट्रक, मोटर गाड़ी या फिर अन्य किसी तरह से अपने घर पहुंचना चाह रहे हैं। सरकार की तरफ से चलाई गई श्रमिक ट्रेनें (Special Train) सभी प्रवासियों (Migrants) का सहारा नहीं बन पा रही है।
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लॉकडाउन (Lockdown) की वजह से गरीबों पर पड़ रही मार का एक उहाहरण बिहार (Bihar) के दरभंगा (Darbhanga) जिले में भी देखने को मिला है। यहां से कमाने के लिए गुरुग्राम (Gurugram) गए एक व्यक्ति के पास जब कुछ नहीं बचा, तो उसने साइकिल से ही गांव चलने की ठानी। लेकिन बीमार होने की वजह से वह साइकिल (Cycle) से 1200 किलोमीटर का सफर नहीं तय कर सकता था। ऐसी स्थिति में उसकी 13 साल की बेटी सहारा बनी और अपने बीमार पिता साइकिल (Cycle) पर बैठाकर गुरुग्राम (Gurugram) से गांव तक लेकर चली आई। इस बेटी की कहानी अब सोशल मीडिया पर खूब वायरल हो रही है, हर कोई उस बहादुर बेटी की तारीफ कर रहा है।
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1200 किमी साइकिल (Cycle) से तय किया सफर
बिहार के दरभंगा (Darbhanga) जिले में रहने वाली 13 साल की ज्योति कुमारी (Jyoti Kumari) अपने बिहार पिता मोहन पासवान को गुरुग्राम से साइकिल से बैठाकर गांव तक लेकर आई है। गुरुग्राम (Gurugram) से दरभंगा (Darbhanga) के सिंहवाड़ा स्थित अपने गांव सिरहुल्ली लेकर आई इस बेटी की सेहत को देखकर पिता खुद चिंतित थे, लेकिन 1200 किलोमीटर का सफर इस दुबली पतली बच्ची ने अपने हौसलों से संभव कर दिया। गुरुग्राम से यह बेटी अपने पिता को परिस्थिति में लेकर चली जब उनके पास कोई सहारा नहीं बचा था।
धंधा बंद होने की वजह से जहां खाने-पीने के लिए भी पैसे नहीं बचे थे, तो वहीं रूम मालिक भी बाहर निकालने की तीन बाहर धमकी दे चुका था। इस तरह की स्थिति उत्पन्न होने पर दोनों से संकल्पित किया कि वहां (गुरूग्राम) मरने से अच्छा है कि हम रास्ते में मरें। ज्योति ने बताया कि इस संकल्प के साथ हमने पापा से कहा कि चलो साइकिल (Cycle) से ही चले, मेरी इस बात को पापा नहीं मार रहे थे, लेकिन हम पापा को लाने के लिए जबरदस्ती किए।" गुरुग्राम (Gurugram) से शुरू हुआ सफर आसान नहीं रहा इस दौरान रास्ते में कई तरह की परेशानियों का सामना भी करना पड़ा, लेकिन ज्योति (Jyoti) ने हिम्मत नहीं हारी और अपने पिता को घर तक लेकर चली आई।
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खत्म हो गए थे पैसे, अब यह आ गई थी स्थिति
एनसीआर (NCR) में स्थित गुरुग्राम में रहकर ज्योति के पिता मोहन पासवान ई-रिक्शा चलाते थे। ई-रिक्शा चलाकर अपने परिवार का पेट पालने वाले मोहन पासवान (Mohan Paswan) का एक हादसे में पैर का घुटना टूट गया था। कुछ ही महीने पहले हादसा होने की वजह से अभी जख्म भी नहीं भरा था और वह ठीक तरह से चल भी नहीं पा रहे हैं। मोहन की पहले से ही हालात खराब थी, वह अब इस संकट से ऊभर पाता कि लॉकडाउन (Lockdown) लग गया। कोरोना की वजह से लॉकडाउन (Lockdown) लगने से परिवार पूरी तरह से परेशान हो गया। इस संकट में जो भी जमा किए थे, वह राशन पानी में ही खत्म हो गया। अब पैसा खत्म होने की वजह से भूखे मरने की नौबत आ गई थी। ऐसी स्थिति में मोहन पासवान (Mohan Paswan) और उनके परिवार के सामने एक ही रास्ता था घर लौटना। इस दौरान ही ई-रिक्शा मालिक भी किराए के पैसे देने के लिए दबाब बनाने लगा था। यही नहीं, मकान मालिक रूम छोड़ने और किराया देने के लिए दबाव बना रहा था।
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इस वजह से साइकिल चलाने को हुई मजबूर
अपने पिता को साथ लेकर अपने गांव सिरहुल्ली लाने वाली ज्योति ने ऐसे ही हिम्मत दिखाई। गुरुग्राम में रहते हुए जब यह स्थिति बनीं, तो उसने पिता से कहा कि यहां भूखे मरने से अच्छा है चलिए गांव चलते हैं। बेटी ने भले ही मोहन पासवान (Mohan Paswan) को भरोसा दिया, लेकिन वह अपनी बेटी के साथ सफर करने को तैयार नहीं था। इसकी वजह यह थी कि उसी उम्र महज 13 साल की थी और वजन भी बहुत कम महज 20-30 किलोग्राम ही था।
दरभंगा (Darbhanga) दिल्ली से 1200 किलोमीटर दूर था। ऐसे में पिता ने एक ट्रक वाले से बात की, तो उन्होंने वहां तक सफर करने के लिए 6 हजार रुपये की मांग की। ट्रक ड्राइवर की इस मांग से मोहन पासवान (Mohan Paswan) का हौसला टूट गया। पिता की इस स्थिति को देखते हुए उसने साइकिल से घर आने का फैसला लिया। हालांकि, मोहन पासवान (Mohan Paswan) ने ज्योति से फिर पूछा कि तुम कैसे इतनी दूर मुझे बैठाकर साइकिल (Cycle) चला पाओगी। इस पर ज्योति का जवाब था कि मैं आपको लेकर घर जा सकती हूं।
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सात दिनों में तय हुआ दरभंगा तक का सफर
कई तरह की विषम परिस्थितियां जानने के बाद भी मोहन पासवान (Mohan Paswan) अपनी बेटी ज्योति के साथ में सफर पर निकल पड़ा। दरभंगा (Darbhanga) आने के लिए उन्होंने 10 मई को गुरुग्राम (Gurugram) से चलना शुरू किया। उन्हें गांव तक आने में सात दिन लगे और 16 मई को वह अपने गांव पहुंच गए। सात दिनों के सफर के दौरान उन्हें बहुत सारी समस्याओं का सामना करना पड़ा, लेकिन इसके बाद भी बेटी ने हौसला नहीं हारा।
ज्योति (Jyoti) ने बताया कि रास्ते में लोगों ने मदद कि हमें खाना खिलाया और पानी भी पिलाया। सफर के दौरान लोगों ने हौसला भी बढ़ाया। ज्योति (Jyoti) ने बताया कि लोगों की भारी भीड़ की वजह से मुझे बहुत ही दिक्कत हो रही थी। उसने बताया कि सफर के दौरान रात में वह किसी पेट्रोल पम्प के आस पास रूकती थी और सुबह वहीं से आगे के सफर पर निकल पड़ते थे। ज्योति (Jyoti) ने बताया कि "सबने हमारी मदद की, जिसने भी हमारी कहानी वह चौंक जाता था। लेकिन चौंक कर वो भी क्या करते, और हम भी क्यों कर सकते थे।"
ज्योति (Jyoti) ने बताया कि ईश्वर की कृपा से हम लोग शनिवार को कमतौल थाना क्षेत्र के टेकटार पंचायत के सिरहुल्ली गांव स्थित अपने घर पहुंच गए। इस मुसीबत की घड़ी में अपने पिता को गांव तक लाने पर हर तरफ अब बेटी की तारीफ हो रही है। गांव पहुंचने पर लोगों ने इस बच्ची का हौसला बढ़ाया और प्रशंसा भी की। अब यहां पर पिता और बेटी (Jyoti) को क्वांरटाइन किया गया है। दोनों को सिरूहल्ली में स्थित राजकीयकृत मध्य विद्यालय में रखा, जहां दोनों का मेडिकल चेकअप हुआ है और अब 14 दिन के लिए क्वारंटीन किए गए हैं।
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