छोटू चपरासी जो बन गया 10 करोड़ की कंपनी का मालिक
कोरोना (corona) काल में अगर आप फ्रस्टेट हो रहे हैं, भविष्य की चिंता में बाल भी कम हो रहे हैं तो आपको पॉजीटिव खबर (positive news) की एक खुराक की तुरंत जरूरत है। हम आपकी आज ऐसे शख्स से मुलाकात कराएंगे जिसकी कहानी आपकी उदास जिंदगी में पॉजीटिविटी का इंजेक्शन लगा देगी। इस शख्स ने चपरासी (peon) जैसे छोटे से काम से जिंदगी की शुरुआत कर आज बड़ा मुकाम हासिल कर लिया है।
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बात हो रही छोटू शर्मा (chotu sharma) की जो कुछ साल पहले तक एक कंप्यूटर इंस्टीट्यूट में चपरासी (peon) थे और आज 10 कराेड़ रुपये की दो कंपनियों (companies) के मालिक हो गए हैं जिसका सालाना टर्नओवर (turnover) 10 करोड़ रुपये से अधिक है। चंडीगढ़ के छोटू शर्मा ने साबित कर दिया है कि अगर किसी काम को मेहनत और लगन से किया जाए तो किस्मत भी कदम चूमती है।
हिमाचल प्रदेश (himachal pradesh) के एक छोटे से गांव से चंडीगढ़ (chandigarh) पहुंचे छोटू शर्मा ने अपनी जिंदगी को तो बदला ही, आज 150 से अधिक परिवारों का पेट भी भर रहे हैं। उनकी दोनों कंपनी में 150 से अधिक लोग काम रहे हैं। कंपनी का काम कोरोना (corona) की वजह से पैदा हुई मंदी के दौर में भी बढ़ियां चल रहा है। छोटू ने भविष्य को लेकर भी कई योजनाएं बना रखी हैं।
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न घर था, न था काम
हर बड़े आदमी की तरफ छोटू शर्मा की भी जिंदगी की शुरुआत तंगहाली में हुई। हिमाचल प्रदेश (himachal pradesh) के कांगड़ा के एक छोटे से गांव में जन्मे छोटू (chotu) के पास कोई प्रोफेशनल डिग्री नहीं थी। बीए (BA) करने के बाद छोटू (chotu) नौकरी की तलाश में चंडीगढ़ (chandigarh) पहुंच गए। अब बीए डिग्री होल्डर को तो कोई नौकरी (job) देता नहीं। छोटू को भी कई जगह धक्के खाने पड़े। छोटू को समझ में आ गया था कि अगर नौकरी चाहिए तो उनको प्रोफेशनल डिग्री हासिल करनी ही होगी। वो पढ़ना तो चाहते थे, लेकिन इसके लिए उनकी जेब में पैसे नहीं थे।
जब कुछ समझ नहीं आया तो छोटू ने कड़ा फैसला लिया। उसने कॅरियर बनाने के लिए चंडीगढ़ (chandigarh) के एपटेक कंप्यूटर सेंटर (aptech computer centre) में चपरासी (peon) की नौकरी कर ली। यह तो उनके सफर का पहला स्टेशन था। उनकी मंजिल तो कुछ और थी।
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नौकरी और पढ़ाई चली साथ
छोटू (chotu) ने एपटेक (aptech) को इसीलिए चुना था ताकि वह अपनी आगे की पढ़ाई भी इसी की बदौलत चालू रख सकेंगे। वो ऑफिस में काम तो करते, लेकिन पढ़ाई पर भी पूरा ध्यान देते। सैलरी कम थी। रहने की जगह नहीं थी, लेकिन इससे उनका जज्बा कम नहीं हुआ। कभी भूखे सोए तो कभी सख्त जमीन पर रात बितानी पड़ी, लेकिन इससे उनकी हिम्मत कम नहीं हुई।
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एपटेक (aptech) में उन्होंने पढ़ाना भी शुरू कर दिया। क्लास में भी बैठने लगे और टीचर्स से अलग से भी सीखना शुरू कर दिया। इसी बीच छोटू (chotu) ने माइक्रोसॉफ्ट (microsoft) सर्टिफाइड सॉफ्टेवयर कोर्स डेवलेपर का कोर्स पूरा कर लिया। उनके अंदर टीचिंग स्किल भी आ गई थी। वो कठिन से कठिन टॉपिक को भी आसान भाषा में एपटेक के स्टूडेंट्स को समझा देते थे।
जिस कंपनी में छोटू (chotu) चपरासी (peon) का काम कर रहे थे, वहां पर उनको पढ़ाने का चांस भी मिल गया। कोर्स पूरा होने के बाद उनको क्लास लेने को कहा गया तो वह तुरंत राजी हो गए। उन्होंने शाम को एपटेक (aptech) में पढ़ाना शुरू कर दिया। दिन में टाइम मिलता तो कुछ स्टूडेंट्स को ट्यूशन देना भी शुरू कर दिया। कई साल बाद मौका आया जब छोटू(chotu) की जेब में कुछ रुपये थे। दिन में भागदौड़ बहुत हो जाती थी, इसलिए छोटू ने अपनी कमाई से पहली साइकिल खरीदी। इस साइकिल ने आगे बढ़ने की उनकी रफ्तार को और बढ़ा दिया।
पैसे बचाए और खोला इंस्टीट्यूट
जैसा हमने पहले बताया था कि एपटेक छोटू के जिंदगी का पहला स्टेशन था। यहां से उन्होंने सफर शुरू किया था। उनको तो बहुत आगे जाना था। कुछ साल की नौकरी के बाद छोटू के पास इतने रुपये इकट्ठा हो गए थे कि वह रिस्क ले सकते थे। छोटू ने एपटेक (aptech) की जॉब छोड़ी और एक कंप्यूटर खरीद लिया। उन्होंने दो कमरों के एक फ्लैट को किराए पर ले लिया और अपना कंप्यूटर इंस्टीट्यूट (computer centre) खोल लिया। तब तक उनका काफी नाम हो चुका था। उनसे पढ़ने के लिए पहले ही साल 80 स्टूडेंट्स पहुंच गए। उन्होंने छह महीने के भीतर ही कई और कंप्यूटर भी खरीद लिए।
अब पैसे भी आने लगे थे। कहते हैं न जब जेब में पैसे हों तो दिमाग और भी तेज चलता है। छोटू के साथ भी यही हुआ। कंप्यूटर इंस्टीट्यूट उनके सफर का दूसरा स्टेशन बना। उनको तो इससे भी आगे जाना था। देखते ही देखते उन्होंने चंडीगढ़ में कई कंप्यूटर इंस्टीट्यूट (computer centre) खोल दिए। उन्होंने अपने इंस्टीट्यूट को नाम दिया सीएस इन्फोटेक। यह था साल 2007। अब उनकी जिंदगी की गाड़ी पूरी रफ्तार में आ चुकी थी। 2007 के आखिर तक छोटू के इंसटीट्यूट्स में 1000 से ज्यादा स्टूडेंट्स हो गए थे।
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खोली सॉफ्टवेयर कंपनी
दो साल के भीतर ही छोटू ने सॉफ्टवेयर इंडस्ट्री (software industry) में कदम रखा। 2009 में उन्होंने मोहाली (mohali) में जमीन खरीदी और अपनी सॉफ्टवेयर कंपनी (software company) की शुरुआत की। कंपनी को उन्होंने नाम दिया सीएस सॉफ्ट (cs soft)। उनकी कंपनी में इस वक्त 150 से अधिक लोग काम कर रहे हैं। उनकी कंपनी से बड़ी-बड़ी कंपनियां सॉफ्टवेयर (software) का काम करवाती हैं। चंड़ीगढ़ में छाेटू को ‘गुरु ऑफ माइक्रोसॉफ्ट टेक्नोलॉजी’ कहा जाता है।
उनकी सॉफ्टवेयर कंपनी (software company) तो दौड़ ही रही है, उनका कंप्यूटर इंस्टीट्यूट भी रोज नए कीर्तिमान बना रहा है। उनके इंस्टीट्यूट का प्लेसमेंट भी 100 प्रतिशत है। उनके यहां से पढ़े स्टूडेंट्स माइक्रोसॉफ्ट (microsoft) , टीसीएस (tcs), एकेंचर और इन्फोसिस (infosys) में नौकरी कर रहे हैं। कई स्टूडेंट्स ऐसी कंपनियों में हैं जिसका सालाना टर्नओवर 500 करोड़ रुपये तक है।
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हिमाचल सरकार ने दिया पुरस्कार
छोटू शर्मा (chotu sharma) की दोनों कपंनियों का सालाना टर्नओवर 10 करोड़ रुपये से अधिक का हो गया है। उनकी प्रसिद्धि हिमाचल प्रदेश (himachal pradesh) की सरकार तक पहुंची। 2007 में ही उनको हिमाचल प्रदेश के तत्कालीन मुख्यमंत्री प्रेम कुमार धूमल ने ‘हिमाचल गौरव पुरस्कार’ प्रदान किया। हमें विश्वास है कि आपको छोटू शर्मा (chotu sharma) की कहानी से जरूर प्रेरणा मिली होगी।
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